मोदी की 'चौकीदारी' पर सवाल उठाते राहुल को मिशेल खामोश कर पाएगा क्या?
दुबई से मिशेल के प्रत्यर्पण को मोदी सरकार की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है. कूटनीति के हिसाब से ये वाकई बड़ी कामयाबी है. क्या राजनीति के हिसाब से भी ये उतनी ही बड़ी कामयाबी साबित होने जा रही है?
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क्रिश्चियन मिशेल जेम्स का प्रत्यर्पण भारत के लिए बड़ी कामयाबी है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की अगुवाई में चले ऑपरेशन 'यूनिकॉर्न' पर आखिरी मुहर ऐसे वक्त लगी जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी दुबई में मौजूद रहीं. देश के अंदर सवालों के घेरे में आयी सीबीआई के अधिकारी ही मिशेल को भारत लेकर आये.
अब तो ये भी साफ हो चुका है कि मिशेल भले ही भारी कूटनीति की बदौलत हाथ लगा हो - लेकिन वो केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के लिए बहुत बड़ा राजनीतिक हथियार है. एक ऐसा हथियार जिसके पीछे दूरगामी सोच भले ही हो - ट्रायल तो शुरू हो ही चुका है.
राज कितना खोल पाएगा मिशेल?
राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के आखिरी दिन सोनिया गांधी का नाम लेकर कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला. फिर उन्हें सुनने आयी भीड़ से मोदी ने सीधे सीधे पूछा - 'जमानत पर छूटे हुए ऐसे लोगों को राजस्थान सौंप देंगे क्या? नहीं ना?'
सिर्फ राजदार या राज खुलेंगे भी?
एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने तरीके से क्रिश्चियन मिशेल जेम्स का जिक्र एक ऐसे राजदार के रूप में किया जिसकी जद में जाने कितने लोग आने वाले हैं, अभी कहना मुश्किल है.
1. ये हथियारों का सौदागर था.
2. ये हेलीकॉप्टर की खरीद बिक्री में दलाली करता था.
3. ये हिंदुस्तान के नामदारों के यार दोस्तों का ख्याल रखता था.
4. ये दलाली का काम करता था और फरार था.
5. आपने अखबारों में पढ़ा होगा - भारत सरकार उसे दुबई से उठा लाई. ये राजदार कई राज खोलेगा - न जाने बात कितनी दूर तक जाएगी?
मिशेल राजदार तो है लेकिन क्या राज वही है जिसकी ओर प्रधानमंत्री इशारा कर रहे हैं. क्या मिशेल की पोटली में किसी नामदार के नाम की भी पर्ची है? अब तक मिशेल ऐसे किसी नामदार के नाम से इंकार करता रहा है, लेकिन कस्टडी के बाद भी क्या वो अपनी बात पर कायम रह पाएगा?
कूटनीति सफल, पर राजनीति का क्या...
प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस नेतृत्व की सरकारों खासकर यूपीए के शासनकाल की चर्चा करते हुए बताया कि उनके दौर में बहुत से राग दरबारी हुए, एक चायवाला उनको अदालत के दरवाजे पर ले गया.
मिशेल को भारत लाने वाली अपनी सरकार के लिए मोदी ने कहा - 'ये ईमानदारी की जीत है.' कांग्रेस में सरकार चलाने वालों के लिए बोला - 'ये लोग जमानत पर बाहर निकले हैं.'
जब माहौल बन गया तो मोदी मुद्दे पर आये और कनेक्ट हो चुके लोगों से पूछा, 'आपके मोहल्ले में... आपके गांव में... किसी को जमानत हुई हो तो उसका सम्मान होता है क्या... उसके घर कोई रिश्ता लेकर जाता है क्या... तो फिर आप लोग ऐसे जमानती लोगों को राजस्थान देंगे क्या?'
क्या राहुल गांधी को रोक पाएगा मिशेल?
रैली में 2014 के चुनाव प्रचार का हवाला देते हुए मोदी ने कहा, '2014 में मेरी सभाओं में आपने सुना होगा... मैंने कहा था हेलिकॉप्टर कांड... देश में वीवीआईपी हेलिकॉप्टर और वो चिट्ठी तो मालूम होगी... मैडम सोनिया जी की चिट्ठी है... वीवीआईपी हेलिकॉप्टर...'
लोगों को मोदी लोगों को ऐसे समझा रहे थे जैसे मिशेल के प्रत्यर्पण से भी मुश्किल छिपायी हुई फाइलें ढूंढना रहा - लेकिन साढ़े चार साल में उनकी सरकार ने ऑगस्टा वेस्टलैंड से जुड़ी वो फाइलें खोज ही डाली - और उसी की बदौलत राजदार हाथ लग सका. 57 साल के मिशेल को इंटरपोल के नोटिस जारी करने के दो साल बाद 2017 में दुबई में गिरफ्तार किया गया था. गिरफ्तारी के फौरन बाद ही भारत ने मिशेल के प्रत्यर्पण करने की मांग शुरू कर दी थी.
बगैर किसी लाग लपेट के प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी तरह साफ कर दिया है कि मिशेल का प्रत्यर्पण सिर्फ कूटनीतिक सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए है. देश के भीतर दाखिल हो जाने के बाद मिशेल महज एक राजनीतिक हथियार है. निश्चित तौर पर ये हथियार 2019 के चुनाव के अचूक हथियारों में से एक हो सकता है. फिलहाल तो इसे राजस्थान की चुनावी जंग में ही ट्रायल पर झोंक दिया गया है. हफ्ते भर में ही मालूम भी हो जाना है कि होनहार बिरवान के पात कितने चिकने हैं?
राजस्थान से ही राहुल गांधी ने 'चौकीदार' को 'चोर' बताना शुरू किया था. राहुल गांधी ने राजस्थान में ही नारा गढ़ा था - 'गली गली में शोर है, चौकीदार चोर है.' बाद के दिनों में राहुल गांधी अपनी सभाओं में खुद सिर्फ 'चौकीदार...' बोलते - और उनकी समर्थक भीड़ '...चोर है' आवाज लगाती.
राफेल की काट में केंद्र की बीजेपी सरकार मिशेल को राजस्थान में वोटिंग के ऐन पहले लाने में कामयाब रही है. राजस्थान की वसुंधरा सरकार को बचाने में बीजेपी को कितना फायदा मिलेगा ये जानने के लिए अब ज्यादा इंतजार की जरूरत नहीं है.
चौकीदार शब्द खुद मोदी ने ही अपने लिए इस्तेमाल किया था और राहुल गांधी उसका इस्तेमाल करते हैं. जिस चौकीदार पर राहुल गांधी चोरी का इल्जाम लगा रहे हैं अब वही चौकीदार ललकारते हुए कह रहा है कि बिचौलिया हाथ लग गया है - अब असली चोर भी पकड़े जाएंगे.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का खुला इल्जाम है कि राफेल डील के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने करीबियों को फायदा पहुंचाया. करीबियों के रूप में राहुल गांधी अंबानी का नाम लेते रहे हैं.
मिशेल को इसलिए इतना महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि उसके जरिये उस कोड के खुलासे हो सकते हैं जो डील का हिस्सा माने जाते हैं - मिशेल के जरिये कोड को डिकोड करने की कोशिश होगी - और उसमें यूपीए सरकार के नेताओं और अफसरों के नाम आ सकते हैं.
समझा जाता है कि हेलिकॉप्टर सौदे के दौरान मिशेल ने कुछ लोगों रिश्वत दी थी. ऐसे लोगों के नाम मिशेल ने कोड-वर्ड में लिखे थे. माना जाता है कि डिकोड होने पर भारत के कुछ नेताओं और अफसरों के नाम उजागर हो सकते हैं.
सवाल ये है कि जो मिशेल अब तक जिस बात से इंकार करता रहा है उसे इकरार कर लेगा - क्योंकि अब वो सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के कब्जे में है?
फिर सवाल ये भी उठता है कि क्या मिशेल के राज इतने गहरे हैं कि राहुल गांधी को पीछे हटने या खामोश होने के लिए मजबूर कर सकते हैं?
कूटनीति तो सफल रही, लेकिन राजनीति?
इंडिया टुडे ने दुबई जेल से ही क्रिश्चियन मिशेल का एक इंटरव्यू किया था. तब भी मिशेल अपने उस बयान पर कायम रहा जिसमें उसका कहना रहा कि डील में यूपीए सरकार का नेतृत्व शामिल नहीं था. हां, मिशेल ने ये दावा भी किया था कि एक डील साइन करने के लिए कहा गया था जिसमें कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ बातें थीं, लेकिन उसने उस डील को ठुकरा दिया.
मिशेल के प्रत्यर्पण के बाद क्या राहुल गांधी की रणनीति बदल सकती है?
कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनका प्रसंग अलग होते हुए भी एक जैसी लगती हैं. अलग अलग होने के बाद भी कुछ वाकये ऐसे होते हैं जो बेहद करीब नजर आते हैं. भाव इतना करीब होता है कि प्रसंग खुद अप्रासंगिक लगने लगता है.
पूर्व सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलु ने आरटीआई के संदर्भ में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक चिट्ठी लिखी है. इस चिट्ठी में एक लाइन है - 'दुनिया भर में ऐसे झूठे मुकदमों का ट्रेंड दिख रहा है, जो जीतने की नीयत से नहीं किये जाते. इनका मकसद लोगों को किसी संस्थान या शख्स के खिलाफ बोलने से रोकना है...'
दुबई कोर्ट के प्रत्यर्पण के पक्ष में दिये गये फैसले को सितंबर में क्रिश्चियन मिशेल ने चुनौती देते हुए इसे राजनीतिक मामला बताया था. मिशेल की दलील थी कि प्रत्यर्पण की स्थिति में उसके साथ ‘अमानवीय व्यवहार’ हो सकता है - और भारत में ‘राजनीतिक हस्तियों से संबंध स्वीकारने के लिए’ दबाव डाला जा सकता है.
कोर्ट ने मिशेल की दलील को सिरे से खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा था - 'इस दलील को अस्वीकार किया जाता है क्योंकि प्रत्यर्पण का आवेदन राजनीतिक, धार्मिक या नस्लभेदी नहीं है.'
जैसी अपेक्षा थी, बातें भी वैसी ही होने लगी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से साफ है कि मिशेल के भारत आने के बाद देश की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ने वाली है. मिशेल देश की मौजूदा राजनीति के लिए वो मोहरा है जिससे जांच किसी नतीजे पर पहुंचे न पहुंचे सियासी पड़ाव तो पार किये ही जा सकते हैं.
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