मुस्लिमों के प्रति रवैये को लेकर मोदी सरकार के सामने 'धर्म' संकट
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर मूडीज की रिपोर्ट ने सत्ताधारी बीजेपी नेताओं को जहां पीठ थपथपाने का भरपूर मौका दिया, वहीं अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था 'ह्यूमन राइट्स वॉच' की ताजा रिपोर्ट उनके पांव के नीचे से जमीन खिसका देने वाली है.
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पश्चिम बंगाल में रोहिंग्या शरणार्थियों के कैंप को लेकर आज तक के खुलासे से पहले वहां के दो सम्मेलन सबसे ज्यादा चर्चित रहे - ममता बनर्जी का ब्राह्मण सम्मेलन और बीजेपी का मुस्लिम सम्मेलन. पश्चिम बंगाल में इसी साल पंचायत चुनाव होने वाले हैं और 2019 में बेहतर प्रदर्शन के लिए बीजेपी उससे पहले ऐसे तरह तरह के एक्सपेरिमेंट कर लेना चाहती है. वैसे सम्मेलन से खास खबर तो यही आयी कि बीजेपी सारे नेता स्टेज पर जमे रहे लेकिन ज्यादातर कुर्सियां खाली पड़ी रहीं.
यूपी चुनाव के बाद बीजेपी बीजेपी को लगा कि वो थोड़ा ध्यान दे तो मुस्लिम वोट बैंक भी साधा जा सकता है. यही सोच कर उसने पश्चिम बंगाल में मुस्लिम सम्मेलन प्लान किया. इससे पहले भी नगर निगमों के चुनाव में भी बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.
मुस्लिम सुदाय को लेकर मोदी सरकार के रवैये पर रिपोर्ट...
मुश्किल ये है कि बीजेपी के ऐसे तमाम हथकंडे अपनाने के बावजूद न तो मुस्लिम समुदाय उसकी बातों में आ रहा है, न ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं. मुस्लिम समुदाय के प्रति सत्ताधारी बीजेपी के रवैया अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था 'ह्यूमन राइट्स वॉच' को तनिक भी रास नहीं आया है. संस्था की 2018 की वर्ल्ड रिपोर्ट में इस मोर्चे पर मोदी सरकार को नाकाम बताया गया है.
मुस्लिम समुदाय पर मौन क्यों?
मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर अंतर्राष्ट्रीय संस्था मूडीज रिपोर्ट पर बीजेपी नेताओं की खुशी आसमान छू रही थी. तकरीबन यही हाल रहा जब देश के दूसरे नेताओं की तुलना में मोदी की लोकप्रियता को लेकर PEW की रिपोर्ट आयी. अमित शाह ने तो ट्वीट की बौछार कर दी थी.
Moody's believes that the @narendramodi Government's reforms will improve business climate, enhance productivity, stimulate foreign and domestic investment, and ultimately foster strong and sustainable growth. @MoodysInvSvc
— PMO India (@PMOIndia) November 17, 2017
India’s largest ever increase in Ease of Doing Business rankings, Pew study ascertaining PM @narendramodi ji’s popularity, Moody’s upgrade are all reflections of Modi Govt’s hard-work and reform process.
— Amit Shah (@AmitShah) November 17, 2017
तीन तलाक पर मोदी सरकार की कोशिश चाहे जितनी भी अच्छी रही हो, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था 'ह्यूमन राइट्स वॉच' की टिप्पणी बीजेपी नेताओं के पांव के नीचे से जमीन खिसका देने वाली है. संस्था ने अल्पसंख्यकों पर हुए हमले रोकने और उसके बाद उसकी भरोसेमंद जांच कराने में मोदी सरकार को नाकाम बताया है.
'ह्यूमन राइट्स वॉच' की रिपोर्ट को समझें तो उसका कहना है कि सत्ताधारी बीजेपी के कई नेताओं ने लोगों के बुनियादी अधिकारों की कीमत पर हिंदुत्व का वर्चस्व कायम करने के साथ ही कट्टर राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया है.
'ह्यूमन राइट्स वॉच' ने भविष्य में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों पर नकेल कसने के लिए गंभीर प्रयास और जिम्मेदार तत्वों पर कार्रवाई पर जोर दिया है.
2017 - पहलू खान, जुनैद खान और...
भारतीय मीडिया ने भी साल 2017 को तमाम बातों के अलावा पहलू खान और ईद से पहले जुनैद खान की ट्रेन में पिटाई जो उनकी मौत की वजह बनी को सबसे बुरी घटनाओं के रूप में याद किया.
ये जरूर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरक्षा के नाम पर उत्पात करने वालों के खिलाफ कम से कम तीन प्रमुख मौकों पर सख्त बयान दिया. पहली बार तो उनके कहने का आशय था कि गोरक्षा के नाम असामाजिक तत्व अपना खेल खेल रहे हैं. मोदी की नजर में ऐसे तत्व दिन में गोरक्षा का चोला पहन कर घूमते हैं और रात में असामाजिक कार्यों में मशगूल रहते हैं. प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों को इनका डॉजियर तैयार करने की भी सलाह दी थी. गुजरात के साबरमती में भी प्रधानमंत्री मोदी ने सवाल किया - 'हम कैसे लोग हैं जो गाय के नाम पर इंसान को मारते हैं.' ऐसी ही बातें मोदी ने दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक से पहले कही थी.
वैसे मोदी के बयानों का किसी पर असर पड़ा हो ऐसा नहीं लगा. जिस दिन मोदी गुजरात में इंसानियत की दुहाई दे रहे थे, रांची में सरेआम एक शख्स को पीट पीट कर मार डाला गया. और तो और राजस्थान में सत्ताधारी बीजेपी के विधायक ज्ञानदेव आहूजा की राय तो ऐसी है कि सुन कर ही मन थर्रा उठता है - 'अगर लोग गौ-तस्करी करेंगे तो मरेंगे ही.'
पहलू खान के केस में भी ज्ञानदेव का ज्ञान अपनेआम में नमूना है, कहते हैं, "पहलू खान कोई किसान नहीं था. उस पर गौ-तस्करी के तीन केस पहले से हैं, उसके बेटों पर केस थे गौ-तस्करी के. वो इसलिए मरा क्योंकि वो जनता के बीच से भागा, जनता को गुस्सा आया कि वो भागा क्यों."
इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट में नफरत वाले अपराधों के आंकड़ों का जिक्र है. रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में नफरत वाले कुल 37 मामले दर्ज हुए. ऐसे मामलों में 152 लोग शिकार हुए और उनमें से 11 को अपनी जान गंवानी पड़ी. दिलचस्प बात ये रही कि 65 फीसदी ऐसे केस उन राज्यों में दर्ज किये गये जहां बीजेपी की सरकारें हैं.
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