क्या कांग्रेस नेताओं से मोदी की तारीफ सुन पाएंगे राहुल गांधी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर राहुल गांधी का नजरिया हमेशा बदलता रहा है. कभी वो हिंदुस्तान के PM के सम्मान की बात करते हैं तो कभी 'चौकीदार चोर है' जैसे नारे लगाते हैं - मोदी पर कांग्रेस नेताओं की ताजा राय पर क्या कहेंगे?
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कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति एकतरफा नफरत से बचने की सलाह दी है. धारा 370 पर कई कांग्रेस नेताओं के आलाकमान से अलग राय जाहिर करने के बाद ये नया स्टैंड है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति राहुल गांधी का नजरिया कभी एक जैसा नहीं रहा है. मोदी को लेकर राहुल गांधी अपना स्टैंड लगातार बदलते रहे हैं. मोदी पर हमले को लेकर भी राहुल गांधी हिट एंड ट्रायल का तरीका अपनाते नजर आते हैं.
सवाल है कि मोदी की आलोचना में इमानदारी बरतने की बात से क्या राहुल गांधी सहमत हो पाएंगे?
मोदी प्रधानमंत्री हैं, 'खलनायक' नहीं!
जम्मू-कश्मीर को लेकर धारा 370 हटाये जाने का विरोध कर कांग्रेस को बुरी तरह मुंह की खानी पड़ी है. ये ऐसा मसला रहा जिस पर बहुत सारे कांग्रेस नेता नेतृत्व की लाइन के खिलाफ खुल कर बोल चुके हैं. गुलाम नबी आजाद के साथ राहुल गांधी और सोनिया गांधी के चलते प्रियंका गांधी वाड्रा भी समर्थन में डटी रहीं, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं ने तो CWC की मीटिंग में ही विरोध शुरू कर दिया. ये सारे नेता धारा 370 को लेकर जनभावनाओं का हवाला दे रहे थे. उस मीटिंग में भी सिर्फ पी. चिदंबरम ही रहे जो गुलाम नबी आजाद की दलीलों को अपने तरीके से बचाव करते रहे.
फ्रांस दौर पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धारा 370 को लेकर कांग्रेस पर बड़ा कटाक्ष किया है. बगैर कांग्रेस का नाम लिये, मोदी ने कहा - भारत में अब टेंपररी कुछ नहीं रहा, जो टेंपररी था उसको हमने निकाल दिया... जो टेंपररी था, उसे निकालने में 70 साल लग गए... इस पर हंसा जाये या फिर रोया जाये.'
प्रधानमंत्री मोदी के प्रति नजरिये में बदलाव को लेकर पहली सलाह सीनियर कांग्रेस नेता जयराम रमेश की ओर से आयी है - और खास बात ये है कि उनकी बात को न सिर्फ शशि थरूर बल्कि अभिषेक मनु सिंघवी ने भी सही ठहराया है. अभिषेक मनु सिंघवी चिदंबरम केस में सीबीआई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पैरवी कर रहे हैं. हालांकि, सिंघवी के ही साथी वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल प्रधानमंत्री मोदी के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट के जज के खिलाफ भी हमलावर हैं, जिन्होंने चिदंबरम की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी.
कांग्रेस नेताओं का कोरस, 'मोदी खलनायक नहीं हैं.''
शशि थरूर की कांग्रेस को सलाह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर अच्छा काम करते हैं तो उसकी तारीफ करनी चाहिये. थरूर भी जयराम रमेश और सिंघवी से इत्तेफाक जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'खलनायक' की तरह पेश करने को गलत बताया है.
1. शशि थरूर : शशि थरूर इस बार मोदी को लेकर कांग्रेस के दूसरे सीनियर नेताओं के साथ कोरस ज्वाइन किया है. थरूर ने ट्विटर पर एक सवाल के जवाब में लिखा है, 'अगर आप जानते हों तो मैं 6 साल पहले से ही ये कहता आ रहा हूं कि जब नरेंद्र मोदी अच्छा कहें या अच्छा करें तो उनकी तारीफ होनी चाहिए. इससे जब PM मोदी गलती करेंगे तो हमारी आलोचना को विश्वसनीयता मिलेगी.'
. As you know, I have argued for six years now that @narendramodi should be praised whenever he says or does the right thing, which would add credibility to our criticisms whenever he errs. I welcome others in Oppn coming around to a view for which i was excoriated at the time!
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) August 23, 2019
शशि थरूर का प्रधानमंत्री मोदी से पुराना झगड़ा रहा है. जब 2014 के चुनावों से पहले मोदी ने कहा था - '50 करोड़ की गर्लफ्रेंड' देखी है क्या?' बाद के दिनों में दोनों एक दूसरे की तारीफ भी करते रहे हैं. मोदी ने भी थरूर के ब्रिटेन से हर्जाना मांगने को लेकर तारीफ की थी. थरूर मोदी पर बयानों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व के कोपभाजन का शिकार भी होते रहे हैं.
2. अभिषेक मनु सिंघवी : शशि थरूर की ही तरह कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी ट्विटर को अपनी राय के लिए माध्यम बनाया है, लिखते हैं - 'मैंने हमेशा कहा है कि मोदी को खलनायक की तरह पेश करना गलत है. सिर्फ इसलिए नहीं कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं, बल्कि ऐसा करके एक तरह से विपक्ष उनकी मदद करता है.'
Always said demonising #Modi wrong. No only is he #PM of nation, a one way opposition actually helps him. Acts are always good, bad & indifferent—they must be judged issue wise and nt person wise. Certainly, #ujjawala scheme is only one amongst other good deeds. #Jairamramesh
— Abhishek Singhvi (@DrAMSinghvi) August 23, 2019
3. जयराम रमेश : मोदी विमर्श का ये सिलसिला जयराम रमेश ने ही शुरू किया और फिर उन्हें दूसरे सीनियर नेताओं का साथ मिलने लगा है. एक बुक रिलीज के कार्यक्रम में जयराम रमेश की बातों का मतलब यही रहा कि मोदी सरकार में खामियां ही खामियां हैं, ऐसा भी नहीं है. जयराम रमेश ने अपने हिसाब से कांग्रेस नेतृत्व को आगाह किया है कि अगर मोदी को हर वक्त विलेन के रूप में पेश किया जाएगा तो उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता.
जयराम रमेश ने अपनी बात को और भी साफ करते हुए कहा, 'वो ऐसी भाषा में बात करते हैं जो उन्हें लोगों से जोड़ती है. जब तक हम ये न मान लें कि वो ऐसे काम कर रहे हैं जिन्हें जनता सराह रही है और जो पहले नहीं किए गए, तब तक हम इस शख्स का मुकाबला नहीं कर पाएंगे.'
जयराम रमेश की ही तरह अभिषेक मनु सिंघवी ने भी मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना की तारीफ की है - और सिर्फ गलतियों पर अटैक करने की बात कही है.
राहुल गांधी कोई एक नजरिया क्यों नहीं रखते
जयराम रमेश ने अपनी राय के पक्ष में ठोस दलील भी रखी है. जयराम रमेश कांग्रेस नेतृत्व को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो इस बात को स्वीकार कर ले कि 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार ने जो काम किया है उसी की बदौलत बीजेपी केंद्र की सत्ता में लौटी है. जयराम रमेश के मुताबिक देश के 30 फीसदी वोटर ने नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी करायी है.
जयराम रमेश ने बीजेपी के वोट शेयर बढ़ने का भी हवाला दिया है, कहते हैं - 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 37.4 फीसदी वोट मिले जबकि एनडीए को कुल मिलाकर 45 प्रतिशत वोट हासिल हुए. सही बात है, पांच साल के शासन के बाद अगर कोई पार्टी पहले से भी ज्यादा सीटें जीतती है तो इसे स्वीकार तो करना ही होगा.
देखा जाये तो अब तक कभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर राहुल गांधी की राय एक जैसी नहीं रही है. कभी वो हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री होने के नाते उनके सम्मान की बात करते हैं, तो कभी 'चौकीदार चोर है' के नारे लगाने लगते हैं - आखिर राहुल गांधी इस मामले में इतने कन्फ्यूज क्यों रहते हैं?
1. धारा 370 खत्म करना देश के साथ गद्दारी : राहुल गांधी ने धारा 370 पर मोदी सरकार के फैसले को संविधान का उल्लंघन तो बताया ही, इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर खतरे की आशंका भी जतायी. कांग्रेस ने संसद के दोनों ही सदनों में इस प्रस्ताव का विरोध किया था.
राहुल गांधी का कहना रहा, 'राष्ट्रीय अखंडता को बनाये रखने के लिए जम्मू-कश्मीर के एकतरफा टुकड़े नहीं किए जा सकते. इसके लिए संविधान को ताक पर रख कर चुने हुए प्रतिनिधियों को जेल में नहीं डाला जा सकता. देश लोगों से बनता है न कि जमीन और जमीन से. कार्यकारी शक्तियों का दुरुपयोग हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है.'
2. चौकीदार चोर है : राहुल गांधी ने अपने फेवरेट स्लोगन 'चौकीदार चोर है' को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने नाम के इस्तेमाल के लिए तो माफी मांगी थी, लेकिन साफ साफ कह दिया कि वो बीजेपी से कतई माफी नहीं मांगने वाले.
चुनाव नतीजे आने के बाद भी राहुल गांधी ने जनादेश के आदर की तो बात की, लेकिन दोहराया कि वो अपनी बात पर पूरी तरह कायम हैं कि 'चौकीदार चोर है'.
कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा सार्वजनिक करते हुए भी राहुल गांधी ने दोहराया कि वो 'चौकीदार चोर है' के अपने पुराने रूख पर पूरी तरह कायम हैं.
3. विकास पागल हो गया है : 2017 में गुजरात विधानसभा के चुनावों से पहले से ही कांग्रेस ने एक मुहिम चला दी - 'विकास गांडो थायो छे'. हिंदी में समझें तो 'विकास पागल हो गया है'. दरअसल, ये राहुल गांधी को राजनीति में रीलांच करने के सैम पित्रोदा के प्लान का एक हिस्सा रहा. ये कैंपेन तब कांग्रेस की सोशल मीडिया देख रहीं दिव्या स्पंदना ने शुरू किया और ये खूब चला. इतना चला कि बीजेपी परेशान हो उठी. आखिर में प्रधानमंत्री मोदी को खुद आगे आना पड़ा और एक कहना पड़ा - 'हूं छु विकास, हूं छु गुजरात'.
फिर क्या था कांग्रेस को फौरन ही बैकफुट पर आना पड़ा. प्रधानमंत्री मोदी ने गुजरात की जनता को समझा दिया कि मैं ही विकास हूं और मैं ही गुजरात हूं. अब कांग्रेस अगर अपने स्लोगन को जारी रखती तो गुजराती अस्मिता पर चोट मानी जाती.
राहुल गांधी को 'विकास पागल है' नारा वापस लेने के लिए मजबूरन अपनी टीम को आदेश देना पड़ा. तब राहुल गांधी की ओर से दलील दी गयी थी कि चूंकि नरेंद्र मोदी हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस प्रधानमंत्री पद का सम्मान करती है इसलिए स्लोगन रोक दिया गया है.
मोदी को लेकर सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं, सोनिया गांधी से लेकर मणिशंकर अय्यर तक एक से एक खतरनाक बयान आते रहे हैं - लेकिन सच तो ये भी है कि सभी को बारी बारी यू-टर्न ही लेना पड़ा है. एक अवधि के बाद सभी को खामोशी अख्तियार करनी पड़ी है - क्योंक हर बार दांव उल्टा ही पड़ा है. गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान ही सोनिया गांधी ने एक बार नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों के लिए 'मौत का सौदागर' तक कह दिया था, लेकिन चुनावी हार के बाद वो पीछे हट गयीं. 2016 में पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने मोदी को लेकर 'खून की दलाली' करने का इल्जाम लगाया था, जब यूपी चुनाव में कांग्रेस की बुरी शिकस्त हुई तो चुप होग गये. एक बार गुजरात चुनाव में ही मणिशंकर अय्यर ने मोदी को 'नीच किस्म का आदमी' कह डाला था. राहुल गांधी इस बात से खासे नाराज हुए और माफी मंगवाने तक ही नहीं रुके बल्कि अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करायी.
लेकिन 2019 के आम चुनाव में हार के बाद भी राहुल गांधी अपने स्लोगन 'चौकीदार चोर है' से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं - क्या अपने ही सीनियर साथियों का सलाह को राहुल गांधी तवज्जो देंगे? वैसे भी राहुल गांधी राजनीति के साम, दाम, दंड और भेद जैसे अपने सारे हथियार आजमा चुके हैं लेकिन कुछ भी चल नहीं पा रहा. अमेठी तो हाथ से निकल ही गयी, अध्यक्ष पद भी जिम्मेदारी लेते हुए छोड़ना पड़ा है. अगर देश की राजनीति में बने रहना है तो 'हुआ तो हुआ' से काम तो नहीं चलने वाला - वैसे भी अभी तो कांग्रेस नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों का 'जेल भरो आंदोलन' चल ही रहा है.
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