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Updated: 11 जनवरी, 2017 04:51 PM
अशोक उपाध्याय
अशोक उपाध्याय
  @ashok.upadhyay.12
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उत्तर प्रदेश में जब-जब भाजपा के होने वाले मुख्यमंत्रियों के नामों की चर्चा होती है, तो गोरखपुर से इसके सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. उनका पूर्वांचल में अपना जबरदस्त जनाधार है और वो पांच बार से लगातार चुनाव जीत रहें हैं. ऐसा कहा जाता है कि चुनाव में लहर किसी की हो गोरखपुर में हमेशा योगी आदित्यनाथ की ही लहर होती है.

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ऐसा लग रहा है कि भाजपा योगी आदित्यनाथ से धीरे-धीरे किनारा कर रही है

वो भाजपा के उन गिने चुने नेताओं में हैं जो अपना चुनाव जीतने के लिए न तो अटल बिहारी वाजपेयी पर निर्भर रहा करते थे और न ही नरेंद्र मोदी पर. उनकी छवि एक उग्रवादी हिन्दू नेता की है. उनके समर्थक मानते हैं कि योगी के प्रभाव क्षेत्र में गोरखपुर एवं बस्ती मंडल की कम से कम 60 विधान सभा की सीटें आती हैं. पर हाल के घटनाचक्रों से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि भाजपा उनको इस मुख्यमंत्री पद के दौड़ से बाहर कर रही है.

नजर डालते हैं ऐसे लक्षणों पर जो इस ओर इशारा कर रहे हैं कि गोरखपुर के सांसद से पार्टी धीरे-धीरे किनारा काट रही है.

राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बोलने नहीं दिया गया

योगी आदित्यनाथ को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बोलने का मौका नहीं दिया गया. खबरों के अनुसार गुस्से में वो बैठक छोड़कर चले गए. आदित्यनाथ की संस्था हिंदू युवा वाहिनी ने एक अंग्रेजी वेबसाइट स्क्रॉल को बताया कि उन्होंने पार्टी की बैठक में हिस्सा नहीं लिया एवं लखनऊ चले गए. इस बारे में जब  मीडिया ने योगी आदित्यनाथ से पूछा तो उन्होंने पहले वो इसको हंसते हुए टालने की कोशिश की पर यह कह गए कि ये सब बातें निराधार हैं और शरारतपूर्ण हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार योगी ने पार्टी के हाई कमान पर कटाक्ष भी किया और कहा कि हम लोग उत्तर प्रदेश के चुनाव में हैं और लोग भारतीय जनता पार्टी को समाजवादी पार्टी बनाने में लगे हैं.

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उत्तर प्रदेश के चुनाव समिति में भी नहीं

भाजपा ने राज्य में होने वाले चुनाव के लिए जिन 27 लोगों की चुनाव समिति बनाई, उसमें भी उनका आदित्यनाथ का नाम शामिल नहीं हैं. उनकी जगह गोरखपुर से पार्टी ने शिव प्रताप शुक्ला और रमापतिराम त्रिपाठी को वरीयता दी है, जो कि उनके विरोधी खेमे के माने जाते हैं. दूसरे दलों से पार्टी में आने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य, रीता बहुगुणा जोशी और ब्रजेश पाठक को भी उत्तर प्रदेश की चुनाव समिति का सदस्य बनाया गया है. दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह का नाम भी इस समिति में है. ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव समिति में नहीं रखकर योगी आदित्यनाथ के कद को छोटा करने का प्रयास किया गया है.

उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष नहीं बनाया गया  

पिछले साल लक्ष्मीकांत वाजपेयी के बाद महंत आदित्यनाथ को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा जोरों पर थी. पर ऐन वक्त पर पांच बार के सांसद योगी के नाम को नजरअंदाज करते हुए पहली बार सांसद बने केशव प्रसाद मौर्या को अध्यक्ष बना दिया गया.

केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया

पिछले वर्ष जुलाई में जब प्रधान मंत्री मोदी के मंत्रिमंडल का विस्तार होना था, तो संभावित मंत्रियों में योगी आदित्यनाथ का नाम भी लिया जा रहा था. इस विस्तार में 19 नए चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया पर उनमें आदित्यनाथ नहीं थे. उत्तर प्रदेश से तीन नए सांसदों को टीम मोदी में शामिल किया गया .

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मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार भी नहीं

अभी तक भाजपा ने उत्तर प्रदेश में किसी भी नेता को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. और लगता है कि पार्टी बिना मुख्यमंत्री उम्मीदवार के ही चुनाव लड़ेगी. पर अगर पार्टी प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करती भी है तो ये गोरखपुर के सांसद होंगे इसकी संभावना क्षीण ही लगती है.

प्रचार सामग्रियों से आदित्यनाथ का नाम गायब

भाजपा ने 248 बाइक्स को पार्टी वर्कर्स में बांट दिया है. सबसे हैरानी की बात यह है कि योगी के गढ़ गोरखपुर में बाइक और सड़कों पर लगे पोस्टर में उनको तरजीह देने की बजाय पार्टी ने उन्हें दरकिनार कर दिया है. इन बाइक पर अन्य नेताओं की फोटो लगी हुई है. क्या ये केवल मामूली चूक है या सोची समझी रणनीति का हिस्सा है?

पूर्वांचल के बड़े नाम सांसद योगी को इस तरह से दरकिनार करना कई अटकलों को जन्म दे रहा है. जब-जब योगी को पार्टी में तवज्जो नहीं मिली उन्होंने पार्टी के खिलाफ खुलेआम आवाज उठाई. 2007 के विधान सभा चुनाव में तो योगी आदित्यनाथ ने अपने भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे. वो उनके हिन्दू युवा वाहिनी के बैनर तले लडे थे और कई क्षेत्रों में भाजपा की हार सुनिश्चित कर दी थी. 2017 चुनाव से ठीक पहले अब योगी एवं भाजपा हाई कमान के अगले कदम पर राजनीतिक विशेषज्ञों पर लोगों की नजर बनी रहेगी. भाजपा उत्तर प्रदेश में सत्ता से 14 वर्षों से वनवास में है. देखना ये होगा की कहीं योगी आदित्यनाथ नरेन्द्र मोदी एवं अमित शाह के इस वनवास समाप्त करने के प्रयास में ग्रहण न लगा दें.

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लेखक

अशोक उपाध्याय अशोक उपाध्याय @ashok.upadhyay.12

लेखक इंडिया टुडे चैनल में एडिटर हैं.

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