केजरीवाल कहीं नत्था की फौज प्रमोट तो नहीं कर रहे?
जिस ऑडियो की चर्चा है उसमें ग्रेवाल के जहर खाने की बात है. ये बातचीत ग्रेवाल और उनके बेटे के बीच है. क्या इसमें भी कोई साजिश है? आखिर कौन है जो ग्रेवाल को आत्महत्या के लिए उकसा रहा था और बाद के लिए सबूत भी इकट्ठा कर रहा था.
-
Total Shares
एक पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर राजनीति चरम पर है. राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल में तो जैसे होड़ मची हुई है. पूर्व सैनिक के लिए राहुल को पुलिस हिरासत में इतनी बार जाना पड़ा है कि उनके पूरे राजनीतिक जीवन में शायद ही कभी ऐसा मौका आया हो.
अरविंद केजरीवाल ने तो पूर्व सैनिक के परिवार को एक करोड़ रुपये देने का एलान कर दिया है, जबकि राम किशन ग्रेवाल न तो दिल्ली के रहने वाले हैं और न ही दूर दूर तक उनका दिल्ली सरकार से कहीं जुड़ा भी है.
शहादत पर फालतू बहस
केजरीवाल के एक करोड़ के एलान के साथ ही शहादत को लेकर बहस छिड़ गयी है. कुछ ऐसी ही बहस तब भी छिड़ी थी जब केजरीवाल की ही एक सभा में राजस्थान के किसान गजेंद्र सिंह ने फांसी लगा ली थी.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि शहीद वो होता है जो सीमा पर अपनी जान कुर्बान करता है. खट्टर के मुताबिक आत्महत्या करने वाला शहीद नहीं हो सकता. खट्टर के साथी मंत्री अनिल विज ने भी मुख्यमंत्री के बयान को एनडोर्स किया है - जो आत्महत्या करता है उसे शहीद नहीं कहा जा सकता. हरियाणा सरकार ने ग्रेवाल के परिवार को 10 लाख की मदद का एलान किया है.
इसे भी पढ़ें: एक आदत है लाशों पर सियासत लेकिन ये जरूरी भी है
केजरीवाल ने एलान तो कर दिया है लेकिन ग्रेवाल परिवार को एक करोड़ मिलना आसान नहीं है. जो पेंच गजेंद्र के मामले में आड़े आया था इसमें भी बरकरार है.
एक करोड़ की मदद किस किस को? |
दरअसल, ऐसे मुआवजे सिर्फ दिल्ली के निवासियों के लिए निर्धारित हैं. मौजूदा नियमों के तहत एक करोड़ की आर्थिक मदद दिल्ली पुलिस, फायर सर्विस, सशस्त्र बल और अर्ध सैनिक बल के लोगों की ड्यूटी के दौरान मौत होने पर उनके परिवारों को दिया जाता है. ग्रेवाल के केस में कैबिनेट का अप्रूवल जरूरी होगा. तब गजेंद्र के परिवार को सरकार की बजाए सत्ताधारी दल की ओर से दस लाख रुपये दिये गये थे.
अगर खट्टर के नजरिये से देखें तो देश के अंदर ड्यूटी पर मौत की तो छोड़ ही दीजिये किसी ऑपरेशन में जान की बाजी लगाने वाला भी शहीद नहीं कहा जा सकता.
मालूम नहीं भगत सिंह को खट्टर साहब किस कैटेगरी में रखना चाहेंगे? शहादत की जो सर्वमान्य समझ पैदा की गयी है उससे परे भी सबके अपने अपने दावे हैं.
सड़क पर संघर्ष... |
अब सिमरनजीत सिंह मान को ही लीजिए. बड़े दिनों बाद एक बार फिर वो शहादत की लड़ाई में कूद पड़े हैं. द वीक मैगजीन में छपी है कि मान ने 1, सफदरजंग रोड पर शहीदी गंज के लिए 700 स्क्वॉयर यार्ड अलॉट करने की मांग की है. मान उस परिसर में सतवंत सिंह और बेअंत सिंह के नाम से मेमोरियल बनवाना चाहते हैं. ये वे ही सतवंत और बेअंत हैं जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी थी. खालिस्तानी समर्थक सतवंत और बेअंत को भी शहीद मानते हैं. इसलिए मान उसी परिसर में गुरुद्वारा की मांग कर रहे हैं जहां उन्होंने अपनी करतूतों को अंजाम दिया.
नत्था को रिवॉर्ड?
जब बीजेपी ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर ढिंढोरे पीटे तो OROP पर विपक्ष हंगामा क्यों न करे? मौसम भी तो चुनावों का है. यूपी से लेकर पंजाब तक. लोक सभा चुनाव में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी ने भी पूर्व सैनिकों की रैलियां की थीं. यही वीके सिंह उन रैलियों के लीड रोल में हुआ करते थे.ये बात अलग है कि अब वीके सिंह ग्रेवाल को कांग्रेसी बता रहे हैं. कह रहे हैं, ग्रेवाल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ कर सरपंच बने थे. सरपंच को टिकट? मालूम नहीं बीजेपी कितने सरपंचों को टिकट देती है?
मौत तो ग्रेवाल की भी रोहित वेमुला जैसी दिखती है. दोनों साथियों के साथ धरने पर बैठे थे - बीच में ही गायब हुए और खुदकुशी कर ली. ग्रेवाल के मामले में तो एक ऑडियो की भी चर्चा है.
जिस ऑडियो की चर्चा है उसमें ग्रेवाल के जहर खाने की बात है. ये बातचीत ग्रेवाल और उनके बेटे के बीच है. क्या इसमें भी कोई साजिश है? आखिर कौन है जो ग्रेवाल को आत्महत्या के लिए उकसा रहा था और बाद के लिए सबूत भी इकट्ठा कर रहा था. क्या बेटे को इस बात की जरा भी चिंता नहीं थी? उसका बाप खुदकुशी की बात कर रहा है - और वो उस बातचीत को रिकॉर्ड करने में व्यस्त रहा. ये सब कुछ स्वाभाविक तो नहीं लगता.
कहीं ये मामले फिल्म पीपली लाइव के नत्था जैसे तो नहीं रहे? नत्था का किरदार बताता है कि कैसे मुआवजे की रकम के लिए एक जीते जागते इंसान को मार डाला जाता है - और उसके बाद मीडिया से लेकर नेता तक हर कोई अपना बिजनेस चमकाने में जुट जाता है.
क्या ग्रेवाल और गजेंद्र सिंह की मौत में कोई तुलना हो सकती है? क्या गजेंद्र, ग्रेवाल और रोहित वेमुला की मौत में कुछ कॉमन है?
इसे भी पढ़ें: OROP पर किस मुंह से सियासत कर रहे हैं राहुल गांधी
मौत हमेशा दुखद होती है. मौत अंतिम सच तो है लेकिन असमय मौत हर किसी को खटकती है. चाहे वो ग्रेवाल हों, गजेंद्र हों या फिर रोहित वेमुला सबकी मौतें झकझोर कर रख देती हैं.
ये मौतें नेताओं को भी परेशान करती होंगी. शायद तब जब वे अकेले होते होंगे. कैमरे के सामने तो जो कुछ वे कर रहे हैं वो उनकी व्यावसायिक मजबूरी भी तो है.
चाहे वो दस लाख हो या एक करोड़, किसी भी रकम से मौत की भरपाई नहीं हो सकती, लेकिन पीड़ित परिवार के लिए ये सब बहुत बड़ा संबल होता है.
जब टीना डाबी ने ने यूपीएससी की परीक्षा टॉप की थी तो दलित छात्रों के सामने सवाल उठाया गया था कि वे किसके जैसे बनना चाहेंगे - रोहित वेमुला या टीना डाबी जैसे. इस सवाल के पीछे भी यही बात थी कि किसी भी सूरत में आत्महत्या को महिमामंडित नहीं किया जाना चाहिये. ग्रेवाल के परिवार को एक करोड़ दिया जाना तो ठीक है लेकिन उनकी मौत पर ऐसी सियासत ठीक नहीं है.
ये कहीं से भी ठीक नहीं है कि वीके सिंह ग्रेवाल की मौत के बाद उन्हें कांग्रेसी बता कर अपनी राजनीति चमकायें या बीजेपी की ओर से आगे आकर कोई केजरीवाल की सभा में गजेंद्र की मौत पर फिर से सवाल उठाये. या केजरीवाल इस मामले में सिर्फ इसलिए हंगामा करें क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार पर हमले के लिए ये कारगर हथियार है.
मनोहरलाल खट्टर, अनिल विज, वीके सिंह, मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल से लेकर राहुल गांधी तक - हर कोई ग्रेवाल को चुनावी मौसम में अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहा है. ऐसे में क्या केजरीवाल का एक करोड़ देना औरों को आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा नहीं है? क्या इससे समाज में किसी न किसी को पकड़ कर नत्था बनाने की होड़ नहीं शुरू हो जाएगी?
आपकी राय