येदियुरप्पा ही कर्नाटक के CM बनें और अभी, ये जरूरी भी तो नहीं
कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस पूरा हो चुका है. एचडी कुमारस्वामी सत्ता से बेदखल हो चुके हैं. जरूरी तो नहीं कि मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ही होंगे और अभी ही CM बन जाएंगे - क्योंकि मुख्यमंत्रियों को लेकर मोदी-शाह तो चौंकाते ही हैं.
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कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार के गिर जाने के बाद सीधे सीधे तो यही लगता है कि बीजेपी फौरन सरकार बनाएगी. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बनेंगे ही, ये भी हर कोई मान कर चल रहा है - लेकिन क्या बिलकुल ऐसा ही होने जा रहा है?
ध्यान देने वाली सबसे बड़ी बात ये है कि बीएस येदियुरप्पा को अभी बीजेपी आलाकमान से ग्रीन सिग्नल मिलना बाकी है. खुद येदियुरप्पा ने भी शुरू से यही कहते आ रहे हैं कि कुमारस्वामी सरकार नहीं बचने वाली - और हुआ भी वही है. पहले की तरह येदियुरप्पा ने ये तो कहा नहीं कि वो मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं.
देखा जाये तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले हमेशा चौंकाने वाले ही होते हैं - कम से कम मुख्यमंत्रियों के मामले में तो बहुत सारे उदाहरण हैं. पिछले पांच साल में महाराष्ट्र और हरियाणा से लेकर यूपी तक, एक ही परंपरा नजर आती है.
अब तक एक सवाल का जवाब नहीं मिला है - क्या बीजेपी सरकार बनाएगी ही?
या फिर BJP दूसरे विकल्पों पर विचार करेगी - और आखिर में दूसरे रास्ते पर चलने का फैसला करेगी?
क्या येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बनेंगे?
मई, 2018 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले ही बीजेपी नेता येदियुरप्पा ने बतौर मुख्यमंत्री अपने शपथ की तारीख और मुहूर्त दोनों बता दिया था. ऐसे में जबकि सारे घटनाक्रम येदियुरप्पा की स्क्रिप्ट के मुताबिक ही चल रहा था, पहले से शपथग्रहण की कोई तारीख नहीं बतायी गयी है. ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि पूरी स्क्रिप्ट येदियुरप्पा ने ही लिखी थी या किसी ने उसकी एडीटिंग भी की थी - और आखिर में पास करने के लिए सेंसर बोर्ड की भूमिका में कौन कौन था?
येदियुरप्पा ने वैसे मिशन की कामयाबी के बाद बेंगलुरु के RSS दफ्तर पहुंच कर आशीर्वाद ले लिया है - लेकिन दिल्ली के रूख का इंतजार कर रहे हैं, 'मैं संघ परिवार के वरिष्ठ नेताओं का आशीर्वाद लेने के लिए यहां आया था. मैं दिल्ली से निर्देश का इंतजार कर रहा हूं, किसी भी समय हम विधायक दल की बैठक बुल सकते हैं और फिर राजभवन जाएंगे.'
ये तो सही है कि येदियुरप्पा की जगह कर्नाटक में कोई और बीजेपी नेता होता तो जरूरी नहीं कि गठबंधन सरकार इतनी जल्दी चली जाती. ये भी सही है कि गठबंधन में वर्चस्व और मनमर्जी की गुंजाइश न होने से एक दूसरे को पटखनी देने की कवायदें भी चलती रहती थीं - और आखिरकार बीजेपी को इसी बात का फायदा भी मिला. सरकार की कमजोर कड़ी विधायक अंततः मिल ही गये.
लेकिन क्या कर्नाटक में येदियुरप्पा ही अकेले ऐसे नेता जो बीजेपी को सत्ता में बनाये रख सकते हैं?
आखिर बीजेपी कब तक येदियुरप्पा को ढोएगी?
बिलकुल ऐसा भी नहीं है. जब येदियुरप्पा को लोकायुक्त कोर्ट के फैसले के बाद जेल जाना पड़ा था तो येदियुरप्पा ने डीवी सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया था. तकरीबन वैसे ही जैसे तमिलनाडु में ओ. पन्नीरसेल्वम और बिहार में जीतनराम माझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला. येदियुरप्पा के जेल से लौट कर आने के बाद भी सदानंद गौड़ा मुख्यमंत्री बने रहे. जब हटे भी तो बीजेपी ने जगदीश शेट्टर को हरी झंडी और येदियुरप्पा को रेड सिग्नल दिखा दिया. डीवी सदानंद गौड़ा फिलहाल केंद्र की मोदी सरकार 2.0 में मंत्री हैं.
कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी येदियुरप्पा से भी उनके बीते वक्त को देखते हुए पीछा छुड़ाना चाहती है? वैसे तो दूसरे दलों से बीजेपी में आये बहुतेरे नेताओं का बीता कल येदियुरप्पा से भी बुरा रहा है. येदियुरप्पा में एक खामी और भी है - येदियुरप्पा की उम्र और वो भी 75 पार.
खबर ये भी आ रही है कि बीजेपी कर्नाटक में सरकार बनाने की जल्दबाजी में कतई नहीं है. सूत्रों के हवाले से आयी खबर बता रही है कि बीजेपी अभी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी और उसके बाद ही आगे की रणनीति तैयार होगी.
ये तो यही बता रहा है कि बीजेपी नेतृत्व के मन में कुछ न कुछ अलग तो चल ही रहा है - क्या है वो?
क्या बीजेपी चुनाव में उतरना चाहेगी?
कुमारस्वामी ने अपनी किस्मत को कोसते और खुद को एक्सीडेंटल सीएम बताते हुए कुर्सी तो भारी मन से छोड़ दी, लेकिन जाते जाते ये भी कहा कि बीजेपी की सरकार भी ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है. बात में दम तो है. अगर बीजेपी के पास येदियुरप्पा हैं तो कांग्रेस के पास भी डीके शिवकुमार हैं जो विश्वासमत पर बहस के बीच भी विरोधी विधायकों को ऑफर देने का मौका नहीं चूकते.
कर्नाटक में फिर से विधानसभा चुनाव कराने की वकालत करते हुए, कुमारस्वामी बोले - ‘पहला बम तो मंत्रालय का बंटवारा होते ही फूटेगा.’ बात तो बिलकुल सही है.
कांग्रेस और जेडीएस विधायकों ने पार्टी तो मंत्री बनने के लिए ही छोड़ी होगी. आखिर अपने अपने दलों में उन्हें दिक्कत ही क्या थी. विधायक तो बने ही हुए थे. वैसे भी कौन नेता चुनाव मैदान में उतरना चाहता है जब तक कि कोई मजबूरी न हो. अगर बीजेपी इस्तीफा देने वाले बागी विधायकों की डिमांड पूरी करती है तो क्या बीजेपी के अंदर इससे कोई असंतोष नहीं होगा? ऑपरेशन लोटस के तहत बीते मौके पर बीजेपी विधायकों में असंतोष देखने को मिल चुका है. बहुमत से दूर रह जाने के बाद जब बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों की मदद और बदले में मंत्री मदद का एक्सचेंज ऑफर दिया तो माना गया कि थोड़ा पाने के लिए पार्टी मुट्ठी भर विधायकों की बंधक बन गयी. जाहिर है बीजेपी नेतृत्व इस बार ऐसा कुछ करने से पहले दो बार जरूर सोचेगा.
एक चर्चा ये भी है कि बीजेपी को बागी विधायकों को अयोग्य ठहराये जाने की फिक्र सता रही है. माना जा रहा है कि सरकार बनाने की सूरत में बीजेपी पहले विधायकों की अयोग्यता के खिलाफ अदालत से स्टे ऑर्डर लेना चाहेगी. ऐसा होने पर विधायकों को मंत्री बनाये जाने के रास्ते की बाधा दूर रहेगी. मगर, जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों को विश्वास मत के दौरान विधानसभा में मौजूदगी से छूट दी थी, कहीं ऐसे विधायकों को मंत्री बनाये जाने पर रोक लगा दी तो? दरअसल, दलबदल निरोधक कानून के तहत अयोग्य ठहराये गये विधायक बगैर चुनाव जीते मंत्री नहीं बनाये जा सकते. बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती ये भी है.
बीजेपी के हिसाब से देखें तो कर्नाटक और जम्मू-कश्मीर की स्थिति मिलती जुलती लगती है. जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने पॉलिटकल व्यक्ति को गवर्नर बनाया था तो वहां भी एक खास सोच काम कर रही थी. ऐसा भी तो नहीं कि महबूबा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद सूबे में सरकार बनाने की कोशिशें नहीं हुईं - लेकिन जैसे ही महबूबा और उमर अब्दुल्ला कुछ ज्यादा एक्टिव नजर आये सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी - क्योंकि बीजेपी ने चुनाव और तब तक गवर्नर के जरिये राष्ट्रपति शासन कायम रखने का फैसला बेहतर समझा.
तो क्या कर्नाटक में भी वैसा ही कुछ होने जा रहा है? क्या कर्नाटक में भी सरकार बनाने की जगह केंद्र की मोदी सरकार राष्ट्रपति शासन के जरिये कुछ वक्त गुजारना चाहेगी?
अगर ये रास्ता अपनाया गया तो अगला पड़ाव विधानसभा चुनाव ही दिखायी देखता है. बीजेपी के लिए नया चुनाव एक तीर से कई निशाने साधने वाले लगते हैं - जरूरी नहीं कि येदियुरप्पा भी CM चेहरा बने रहें, जरूरी नहीं कि बाकी विधायकों को मंत्री बनाया जाये क्योंकि चुनाव जीतने के बाद ही ये नौबत आएगी और फिर तो नये सिरे से सब कुछ नया नया होगा. हर झंझट से मुक्ति - मुद्दा यही है कि क्या बीजेपी ऐसे ही सरकार चलाना चाहेगी या चुनाव में उतरना चाहेगी?
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