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Updated: 07 जुलाई, 2019 04:05 PM
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बीजेपी नेता येदियुरप्पा के लिए ग्रीन सिग्नल तो हो चुका है लेकिन थोड़े बहुत सियासी कोहरे की वजह से साफ साफ देखने में मुश्किल हो रही है. येदियुरप्पा भी इसीलिए अभी इंतजार करने को कह रहे हैं. दिलचस्प बात ये है कि येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने में बड़ी भूमिका सिद्धारमैया निभा रहे हैं.

बेंगलुरू में चर्चा तो पहले से ही रही कि ताजा सियासी उलटफेर के सूत्रधार कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता और पूर्व मुख्‍यमंत्री सिद्धारमैया ही हैं. अब तो बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने भी खुलेआम कह दिया है कि सिद्धारमैया ही मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को सत्ता से बेदखल करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं.

येदियुरप्पा के मददगार क्यों बन रहे सिद्धारमैया?

कर्नाटक संकट में सिद्धारमैया के रोल को लेकर दलील तो दुश्मन का दुश्मन दोस्त वाली दी जा रही है, लेकिन खेल उसके काफी आगे का लग रहा है. ये पुराने दुश्मन से अच्छा नया दुश्मन है वाली थ्योरी है - और उससे आगे दुश्मन के गले लग कर दोस्त बनाने जैसी लग रही है.

इस्तीफा देने वाले विधायक रमेश जारकिहोली, महेश कुमटल्‍ली, बीसी पाटिल, प्रताप गौड़ा पाटिल, बी वासवराज और एसटी सोमशेखर को सिद्धारमैया का समर्थक बताया जा रहा है. तीन समर्थक विधायक तो सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री बनाये जाने की रट लगाये हुए हैं.

कांग्रेस विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल ने तो आज तक से बातचीत में साफ कर दिया है कि इस्तीफा देने के बाद वो बीजेपी ज्वाइन करने जा रहे हैं. मुंबई में मौजूद प्रताप गौड़ा का दावा है कि वो अब बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे और जब तक इस्तीफा मंजूर नहीं होगा वहीं जमे रहेंगे.

प्रताप गौड़ा ने तो पूरी तस्वीर ही साफ कर दी है. ये बात अलग है कि सिद्धारमैया लगातार राजनीतिक बयान जारी कर रहे हैं कि कांग्रेस विधायक इस्तीफा नहीं देंगे - और कुमारस्वामी सरकार भी बनी रहेगी. अगर प्रताप गौड़ा के दिखाये रास्ते पर आगे बढ़ें तो सिद्धारमैया के हिमंत बिस्वा सरमा बनने में ज्यादा वक्त नहीं बचा है. 2016 के असम विधानसभा चुनावों से पहले हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस के कद्दावर नेता हुआ करते थे. कांग्रेस नेतृत्व की अनदेखी से खफा होकर हिमंत बिस्वा सरमा ने बीजेपी ज्वाइन कर ली - और आज नॉर्थ-ईस्ट एनडीए के संयोजक है. असम के बाद आस पास के इलाके में चुनावों में भगवा लहराने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका है.

ये तो पुराने बही-खाता का हिसाब-किताब है

सिद्धारमैया कांग्रेस में आने से पहले जेडीएस में हुआ करते थे. एक दौर था जब सिद्धारमैया पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और जेडीएस अध्यक्ष के बेहद करीबी हुआ करते थे. जैसे मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस में ममता बनर्जी के खास हुआ करते रहे. जब देवगौड़ा ने लालू प्रसाद की तरह साफ कर दिया कि वारिस तो बेटा ही होगा, तो सिद्धारमैया ने रास्ता बदल लिया.

siddaramaiah for yeddyurappa as cm?कर्नाटक कांग्रेस में असम जैसा पेंच फंसा है!

सिद्धारमैया शुरू से ही जेडीएस के साथ गठबंधन को राजी नहीं थे. गठबंधन की बात चूंकि बड़े लेवल पर हुई थी इसलिए कुछ बोलने का स्कोप भी नहीं बचा था. चुनाव नतीजों के बाद मायावती ने देवगौड़ा को सोनिया गांधी के साथ गठबंधन की सलाह दी थी. गुलामनबी आजाद के जरिये कांग्रेस नेतृत्व तक संदेश पहुंचाया गया. देवगौड़ा को राहुल गांधी से बात करने में परहेज रहा, इसलिए सोनिया गांधी आगे आयीं. सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद जब येदियुरप्पा ने मैदान छोड़ा तो एचडी कुमारस्वामी को गवर्नर वजूभाई वाला ने सरकार बनाने को कहा. एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण के मौके पर पूरा विपक्ष उमड़ पड़ा था और ममता बनर्जी, सोनिया गांधी और मायावती की मुस्कुराती तस्वीर खूब वायरल भी हुई.

बताते हैं कि कुछ ही दिन पहले सिद्धारमैया ने राहुल गांधी को बताया था कि जेडीएस के साथ गठबंधन कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. सिद्धारमैया का कहना रहा कि सरकार में जेडीएस के दबदबे के चलते कांग्रेस विधायकों के काम नहीं हो रहे और उनमें काफी असंतोष है.

कहते हैं राहुल गांधी का रिएक्शन 'हुआ तो हुआ' जैसा ही रहा. आलाकमान की ये बेरूखी सिद्धारमैया को ठीक नहीं लगी और वो मौके का इंतजार करने लगे. मौका भी मिल ही गया - जैसे ही सीएम कुमारस्वामी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दिनेश गुंडुराव देश से बाहर निकले सिद्धारमैया के सपोर्टर काम पर लग गये.

क्योंकि इंतजार का फल मीठा होता है

सवाल ये है कि क्या सिर्फ कुमारस्वामी से बदला लेने के लिए सिद्धारमैया ये सब कर रहे हैं?

नहीं. पूरी तरह तो ऐसा नहीं है. सत्ता के स्थानीय गलियारे करीब करीब इसी ओर इशारा कर रहे हैं. पता चला है कि सिद्धारमैया की नाराजगी कुमारस्वामी से तो है ही, मल्लिकार्जुन खड्गे भी अरसे से उनकी आंख की किरकिरी बने हुए हैं.

फिर क्या सिद्धारमैया एक ही तीर से दो-दो निशाने साध रहे हैं?

जवाब है - बिलकुल सही.

पिछले साल मार्च में कांग्रेस विधायक उमेश जाधव ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. उमेश जाधव के इस्तीफे की वजह कोई और नहीं बल्कि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड्गे ही रहे. किसी जमाने में मल्लिकार्जुन खड्गे के शिष्य रहे उमेश जाधव के साथ भी मल्लिकार्जुन खड्गे ने वैसा ही भेदभाव किया जैसा देवगौड़ा ने कभी सिद्धारमैया के साथ किया था. उमेश जाधव ने सीधे सीधे मल्लिकार्जुन खड्गे तो नहीं बल्कि उनके बेटे प्रियांक खड्गे की वजह से कांग्रेस छोड़ दी थी. उमेश जाधव कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार में एंट्री चाह रहे थे और स्थानीय कांग्रेस नेता भी इसके पक्ष में थे, लेकिन मल्लिकार्जुन खड्गे के अड़ जाने के चलते मामला लटक गया.

बेटे के मोह के चलते मल्लिकार्जुन खड्के को कीमत भी चुकानी पड़ी. आम चुनाव में बीजेपी के टिकट पर उमेश जाधव मल्लिकार्जुन खड्गे को चैलेंज किया और शिकस्त दे दी. वरना, लोक सभा में नेता बनाने के लिए कांग्रेस को पश्चिम बंगाल से अधीर रंजन चौधरी को नहीं लाना पड़ता. इस बीच मल्लिकार्जुन खड्गे को मुख्यमंत्री बनाये जाने की भी जोरदार चर्चा रही. हालांकि, मल्लिकार्जुन खड्गे ने इसे महज अफवाह करार दिया है.

माना जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड्गे के मशविरे के चलते ही राहुल गांधी सिद्धा रमैया की सलाह दरकिनार करते रहे - और हालत ये हो गयी कि सिद्धारमैया को राजनीति की नयी रणनीति अपनानी पड़ी.

कांग्रेस को संकट से उबारने के लिए हर आड़े वक्त में काम आने वाले डीके शिवकुमार को मोर्चे पर उतारा गया. दिल्ली में इमरजेंसी मीटिंग के बाद कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल भी बेंगलुरू पहुंचे - लेकिन सारी कवायद बेकार. हमेशा की तरह एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व ने देर कर दी.

कर्नाटक के ताजा घटनाक्रम पर जब मीडिया ने पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा की राय जाननी चाही तो बोले - 'वेट एंड वॉच!' वैसे इससे बेहतर जवाब फिलहाल येदियुरप्पा के पास हो भी क्या सकता था.

अब येदियुरप्पा को भी समझ आ चुका है कि इंतजार का ही फल मीठा होता है, हड़बड़ी का नहीं. हड़बड़ाहट का नतीजा तो वो देख ही चुके हैं. 14 महीने ही तो हुए जब भरी विधानसभा से बेआबरू होकर बाहर होना पड़ा था.

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