Yes Bank crisis पर हुई राजनीति ने तो सरकार का दबाव कम कर दिया!
यस बैंक संकट (Yes Bank Crisis) को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच 'कीचड़ उछालो' राजनीति जारी है. लेकिन सवाल ये उठता है प्रभु नरेंद्र मोदी जी, सभी निजी-प्राइवेट बैंकों की कुंडली सरकार के पास होती है तो ये आखिरी वक्त की सर्जिकल स्ट्राइक क्यों? वो भी आम जनता के तनाव की कीमत पर.
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यस बैंक (Yes Bank Crisis) को लेकर पूरा सरकारी अमला एक्शन में है. बैंक के संस्थापक राणा कपूर के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी करने और उनके ठिकानों पर छापेमारी के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दफ्तर बुला कर पूछताछ भी शुरू कर दी है. यस बैंक को संकट से उबारने की पहल और कोशिशें तो चल रही हैं, लेकिन ऐसी कोई भी कवायद उन लोगों की मुश्किल खत्म नहीं कर पा रही है जिनके खाते यस बैंक में हैं और उनकी सारी रकम बैंक में जमा है. कहने को तो SBI के चेयरमैन के भतीजे का सैलरी अकाउंट भी यस बैंक में है और ये बात खुद चेयरमैन रजनीश कुमार ने लोगों को भरोसा दिलाने के लिए साझा किया है.
भरोसा तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) और RBI गवर्नर शक्तिकांत दास and (RBI Governor Shaktikant Das) भी दिला रहे हैं - हर खाताधारक की रकम सुरक्षित है और सुरक्षित रहेगी, लेकिन भरोसे से जरूरत पूरी हो सकती है क्या?
जब भी ऐसा होता है तो लोगों को सबसे ज्यादा फिक्र इस बात की होती है कि तात्कालिक जरूरतें कैसे पूरी हो पाएंगी? ऐसे वाकयों से बड़ी परेशानी ये नहीं है पैसे डूब जाएंगे - फिक्र इस बात की है कि पैसे वक्त पर नहीं मिले तो जिंदगी कैसे चलेगी. जिंदगी आगे बढ़ेगी या मौके पर ही दम तोड़ देगी?
सियासत को संकटकाल से फर्क कहां पड़ता है
यस बैंक सुनामी से ठीक पहले ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंकों के विलय का फैसला किया था. कैबिनेट ने 5 मार्च को ही 10 सरकारी बैंकों का विलय कर चार 'बड़े बैंक' बनाने की मंजूरी दी थी - और थोड़ा वक्त भी नहीं बीता कि अखबारों में यस बैंक की तरफ से बुरी खबर भी आ गयी. बैंकों के विलय के बारे में भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ही बताया था, 'बैंकों के विलय की प्रक्रिया जारी है और इसका फैसला हर बैंक का निदेशक मंडल पहले ही ले चुका है.' वैसे ऐसा किये जाने की घोषणा अगस्त, 2019 में ही हो चुकी थी. संभव है धारा 370 खत्म किये जाने के बाद के घटनाक्रम में लोगों का ध्यान नहीं गया हो.
कहां विलय की उपलब्धि बताने की तैयारी होती, 24 घंटे बाद ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को नया मोर्चा संभालना पड़ा. यस बैंक संकट पर निर्मला सीतारमण ने कहा, 'मैं भरोसा दिलाना चाहती हूं कि यस बैंक के हर जमाकर्ता का धन सुरक्षित है... रिजर्व बैंक ने मुझे भरोसा दिलाया है कि यस बैंक के किसी भी ग्राहक को कोई नुकसान नहीं होगा... हमने वो रास्ता अख्तियार किया है जो सबके हित में होगा...'
RBI गवर्नर शक्तिकांत दास की बातों का भी लब्बोलुआब और तरीका भी करीब करीब वैसा ही रहा, 'मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि हमारा बैंकिंग सेक्टर पूरी तरह से सुचारू और सुरक्षित बना रहेगा.'
बावजूद इसके लोग ATM के बाहर अपनी बारी के इंतजार में लाइन में लग गये. टीवी स्क्रीन पर लोगों के बेहाल, परेशान, रोते बिलखते अपनी हालत का बयान करते चेहरे देखने को मिले - और फिर राजनीति भी शुरू हो गयी. मामला सीधे आम अवाम से जुड़ा था इसलिए विपक्षी नेता तीखे सवाल ट्विटर पर परोसने लगे - बात सोशल मीडिया की रही इसलिए सरकार की तरफ से मोर्चा संभाला बीजेपी की IT सेल के मुखिया अमित मालवीय ने.
बैंक घोटाले रोकने के लिए एहतियाती उपाय क्यों नहीं किये जाते?
कांग्रेस की तरफ से वित्तीय मामलों के एक्सपर्ट पी. चिदंबरम ने हमला बोला - BJP 6 साल से सत्ता में है और कतार में कोई तीसरा बैंक भी है क्या?
भाजपा 6 साल से सत्ता में है, वित्तीय संस्थानों को नियंत्रित और विनियमित करने की उनकी क्षमता उजागर होती जा रही है। पहले पीएमसी बैंक, अब यस बैंक। क्या सरकार बिल्कुल भी चिंतित है? क्या वो अपनी जिम्मेदारी से बच सकता है? क्या लाइन में कोई तीसरा बैंक है?
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) March 6, 2020
यस बैंक संकट की खबर आने के बाद से चिदंबरम ट्विटर पर लगातार सक्रिय हैं और सवाल-जवाब खूब कर रहे हैं - वित्त मंत्री द्वारा मीडिया को एड्रेस करते सुना. ये स्पष्ट है कि संकट 2017 से बना हुआ है और सरकार ने व्यावहारिक रूप से 'RBI से बात' के अलावा कुछ भी नहीं किया है.
वो बातें भी हुईं जब मौजूदा सरकार हर गड़बड़ी को पुरानी सरकारों का पाप बताने लगती है, इस बार भी ऐसा ही हुआ और पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने UPA सरकार को दोषी बताये जाने का भी बचाव किया. तभी सरकार की तरफ से अमर सिंह भी मैदान में उतर गये. अमर सिंह हाल फिलहाल अमिताभ बच्चन से माफी मांगने को लेकर सुर्खियों में थे और बताया था कि जल्द ही वो अस्पताल से लौटने वाले हैं.
अमर सिंह ने ट्वीट कर चिदंबरम को ठेठ अंदाज में निर्मला सीतारमण का बचाव करते हुए कांग्रेस नेता को समझाने की कोशिश की - अमर सिंह ने चिदंबरम को टैग करते हुए लिखा कि जब आमने सामने बैठेंगे तो सारी बातें समझा देंगे.
.@PChidambaram_IN ji I can explain to you in person what @nsitharaman ji is not knowing. Poor lady is ofcourse ignorant in the politics of mud slinging. Pls tell me if I am wrong. @INCIndia @BJP4India https://t.co/4EsbW3VzpA
— Amar Singh (@AmarSinghTweets) March 6, 2020
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भी रचनात्मक ट्वीट मार्केट में आ ही चुका था - जैसे सोशल मीडिया पर Yes-No हो रहा था, राहुल गांधी ने भी उसी अंदाज में हमला बोला, निशाने पर हमेशा की तरह रेडीमेड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विचारधारा ही रही. राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, 'नो येस बैंक. मोदी और उनके विचारों ने देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है.'
No Yes Bank.
Modi and his ideas have destroyed India’s economy.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 6, 2020
चिदंबरम को तो अमर सिंह ने जवाब अपने ट्वीट में दे ही दिया था, बीजेपी की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने राहुल गांधी को अमर सिंह के वीडियो के साथ जवाब दिया - अपने पुराने गठबंधन साथी से ही पूरी कथा सुन लीजिये.
No Rahul, it is P Chidambaram, your former finance minister, who is responsible for the mess India’s banks and economy are in...
Don’t take my word for it. Listen to your former ally. https://t.co/zSeOIDYvGy pic.twitter.com/T1Mfq3iiNB
— Amit Malviya (@amitmalviya) March 6, 2020
राहुल गांधी की ही तरह कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने भी मोदी सरकार से सवाल पूछा. अंदाज तो राहुल गांधी वाला ही था, लेकिन तंज के मामले में जयवीर शेरगिल दो कदम आगे नजर आये.
Landscape BJP slogans over past 6 years:
2014: “₹15Lac Le Lo” (For very citizen)
2018: “Pakoda Le Lo” (For every unemployed)
2020: “Tala (Lock) Le Lo” (For every Bank & Industry)
People of India are paying for BJP financial misadventures from their pocket! #yesbankcrisis
— Jaiveer Shergill (@JaiveerShergill) March 6, 2020
देखते ही देखते नजारा बिलकुल वैसा ही हो चला जैसा अभी अभी दिल्ली दंगों पर हुई राजनीति में देखने को मिला था. न तो लोगों के लिए किसी के पास कोई दिलासा दिलाने के लिए था और न ही मौके के हिसाब से मशविरा - सभी बस एक दूसरे को कोसते चले जा रहे थे.
यस बैंक से जुड़ी अब तक की जिन गड़बड़ियों की चर्चा हो रही है, वे तो पहले से थीं. राहुल गांधी और पी. चिदंबरम या कोई अन्य जो सवाल अब पूछ रहे हैं क्या पहले नहीं पूछ सकते थे? सवाल तो तब भी पूछा जा सकता था जब RBI ने राणा कपूर के खिलाफ एक्शन लिया. सवाल तो तब भी पूछे जा सकते थे जब राणा कपूर ने बोर्ड छोड़ दिया. सवाल तो तब भी पूछे जा सकते थे जब यस बैंक का NPA बढ़ता जा रहा था - और मालूम तो ये बातें सरकार के जिम्मेदार अफसरों को भी होंगी ही.
आखिर ये राजनीति पहले क्यों नहीं हुई? क्या यही राजनीतिक सवाल जबाव पहले हो जाते तो लोगों को मुसीबत से नहीं बचाया जा सकता था?
डूबने की नहीं वक्त पर पैसे मिल पाने की फिक्र है
यस बैंक 2004 में शुरू हुआ था और नवंबर, 2019 में शेयर बाजार को जानकारी दी जा चुकी थी कि चैयरमैन राणा कपूर बोर्ड से एग्जिट कर चुके हैं. जाहिर ये संकट रातोंरात नहीं पैदा हुआ है भले ही राणा कपूर अब कहते फिरें कि उनको जरा भी आइडिया नहीं है.
एक दौर था जब यस बैंक तेजी से तरक्की करते हुए नजर आने लगा था, लेकिन तभी बैंक की नीतियों के चलते वो बैड लोन के चक्कर में फंसने लगा. बैंक ने ऐसी कंपनियों को भी लोन दे डाला जिनके लेन-देन का रिकॉर्ड साफ सुथरा नहीं था और NPA बढ़ता गया. एनपीए बढ़ने से 2017 में करीब 6,355 करोड़ रुपये के बैड लोन का पता चला. RBI ने 2018 में राणा कपूर के कार्यकाल में तीन महीने की कटौती कर दी. हालत खराब होती जा रही थी और राणा कपूर को अपने शेयर बेचने पड़े. सितंबर, 2018 में बैंक के शेयर 30 फीसदी तक गिर गये थे. फिर आरबीआई ने राणा को लोन और बैलेंसशीट में गड़बड़ी के आरोप में चेयरमैन के पद से हटा दिया. बैंकों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब किसी चेयरमैन को इस तरीके हटाया गया हो. सिर्फ आम लोग ही नहीं, यस बैंक में जमा भगवान जगन्नाथ का पैसा भी फंस गया है - वो भी 545 करोड़ रुपये.
Devotees of Lord Jagannath & priests at the centuries-old temple in Puri are worried following RBI restrictions on #YesBank where Rs 545 crore is deposited in the deity's name
— Press Trust of India (@PTI_News) March 6, 2020
गुजरते वक्त के साथ राणा कपूर की ऐसे बैंकर के रूप में शोहरत होने लगी थी कि जिसे कोई भी बैंक से लोन देने को तैयार नहीं होता, यस बैंक लोन मंजूर कर देता था. राणा कपूर ने बैंक का नाम यस क्या रखा NO कहना ही भूल गये - और वही मुसीबत बन गया.
एक बात समझ में नहीं आती, जब हर चीज के लिए सख्त नियम बने हुए हैं. हर चीज ऑडिट होती. फिर भी ऐसी बातें भूकंप की तरह लोगों के सामने क्यों आती हैं? ऐसा कोई एहतियाती उपाय क्यों नहीं किया जाता कि लोगों को अचानक आने वाली ऐसी आफत से बचाया जा सके.
पहले PNB घोटाला, फिर PMC घोटाला और अब यस बैंक - सभी कहानियां तक एक जैसी ही तो हैं, सिर्फ किरदार ही तो बदल जा रहे हैं - जब रेल हादसे रोकने के उपाय हो सकते हैं तो बैंकों में रखी लोगों की गाढ़ी कमाई की हिफाजत क्यों नहीं हो सकती? ये विपक्ष की राजनीति नहीं - जनता का सीधा सवाल है.
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