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Updated: 11 फरवरी, 2022 09:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को क्यों लग रहा है कि बगैर कश्मीर के नाम पर डराये यूपी में वोट (Yogi Warns UP Voters) नहीं मिलने वाला? आखिर पहले तो ऐसा नहीं लग रहा था. तब तो सबके साथ की बातें होती थीं. सबके विकास की बातें होती थीं - यूपी चुनाव (UP Election 2022) में वोटिंग की पहली तारीख आते आते ऐसा क्या हो गया है?

पहले तो योगी आदित्यनाथ कैराना के ही कश्मीर बन जाने की आशंका जता रहे थे - ये मामला ध्यान इसलिए भी खींच रहा है क्योंकि अब तो योगी आदित्यनाथ सिर्फ कैराना ही नहीं, पूरे यूपी के कश्मीर, केरल और बंगाल जैसा बन जाने की बात करने लगे हैं.

लेकिन इसमें खास बात क्या है? अगर लोगों ने योगी की बातें नहीं सुनीं तो वैसे भी यूपी, केरल या बंगाल जैसा बन जाएगा - क्योंकि दोनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकारें नहीं हैं. योगी के नजरिये से देखें तो बिलकुल सही बात है. निश्चित तौर पर यूपी भी वैसा ही हो जाएगा. बीजेपी शासन मुक्त. हालांकि, अभी तक किसी भी सर्वे के आकलन में ऐसी कोई बात सामने नहीं आयी है. सर्वे के अनुमानों को समझें तो सत्ता में बीजेपी वापसी ही कर रही है.

बस एक बात समझने में थोड़ी मुश्किल हो रही है - यूपी के जम्मू-कश्मीर बन जाने को कैसे समझें? क्या योगी आदित्यनाथ का आशय जम्मू-कश्मीर में बरकरार अलगाववाद और आतंकवाद से है या कुछ और?

अब यूपी में धारा 370 जैसी कोई संवैधानिक स्थिति तो है नहीं जो केंद्र सरकार वैसा ही ऐक्शन ले सकती है. तो क्या योगी को यूपी में किसी ऐसी स्थिति की आशंका है जिसमें राष्ट्रपति शासन की नौबत आ सकती है? ये तो तभी हो सकता है जब चुनावों में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिले और हंग असेंबली के हालात बन जायें - और अगर कोई पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश न कर पाये तो केंद्र की मोदी सरकार राष्ट्रपति शासन लगा दे.

क्या योगी आदित्यनाथ के मन में ऐसे ऊल जुलूल ख्यालात आ-जा रहे हैं?

असल वजह जो भी हो, लेकिन जिस तरीके से योगी आदित्यनाथ यूपी के वोटर को लगातार डराने लगे हैं - कोई खास बात मन में घर कर गयी हो, ऐसा लगता जरूर है.

पहले तो यही योगी आदित्यनाथ विकास की बातें किया करते थे. कानून व्यवस्था और अपराध मुक्त यूपी की बातें किया करते थे, भले ही हंसते मुस्कुराते बोल जाते हों कि गाड़ी का क्या फिर पलट सकती है - लेकिन वो हंसी कहां गायब होती जा रही है?

वो भी तब जबकि एक तरफ अमित शाह मोर्चा संभाल रहे हों - और दूसरी तरफ वोटिंग के दिन ही लोगों से माफी मांग कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वोटर तक अपना संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहे हों. ये हाल तब है जब योगी आदित्यनाथ खुद भी चुनाव मैदान में हैं, जहां जीत की सौ फीसदी गारंटी लगती हो और आस पास भी काफी असर समझा जा रहा हो. फिर माजरा क्या है जो मोदी के नाम पर 'डबल इंजिन' की सरकार के फायदे गिनाते और 'सबका साथ सबका विकास' के नारे लगाते योगी आदित्यनाथ अपने पुराने अंदाज में आ गये हैं?

और ऐसे डायलॉग तो 2017 के चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ के मुंह से खूब सुने गये थे, लेकिन तब वो बीजेपी के मजह सांसद और हिंदू युवा वाहिनी के नेता हुआ करते थे.

अब तो पूरे पांच साल यूपी के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं - और सुनते हैं कि हिंदू युवा वाहिनी का भी पहले जैसा संगठन या तेवर और असर नहीं रहा. फिर वैसी ही भाषा का इस्तेमाल क्यों करने लगे? अपराधियों तक तो ठीक भी है. 'ठोक दो...' कह देते हैं तो भी लोगों की सुनने की आदत बन चुकी है, लेकिन राजनीतिक दुश्मनों के लिए भी वैसी ही भाषा!

कुछ उपलब्धियां और कुछ अधूरे काम

2017 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से पहले सफाई-शुद्धि और रंगाई-पुताई के बाद, योगी आदित्यनाथ का ओपनिंग शॉट रहा - एंटी रोमियो स्क्वॉड. ये योगी शासन के नींव की ईंटे थीं जो उछल उछल कर बताने लगी थीं कि पांच साल में इमारत कैसी बुलंद तैयार होने वाली है. बवाल मचा और जैसे ही रोमियो स्क्वॉड के पुलिसवाले थोड़े शांत हुए, तभी योगी आदित्यनाथ ने पीठ ठोक कर बोल दिया - जाओ ठोको. फिर क्या था, ताबड़तोड़ एनकाउंटर शुरू हो गये.

हिसाब किताब करना बाकी है: हाल ही में यूपी बीजेपी के एक विज्ञापन से मालूम हुआ कि योगी शासन में 2174 एनकाउंटर किये गये. विज्ञापन के मुताबिक, 7000 को गिरफ्तार किया गया और 8000 ने सरेंडर किया. विज्ञापन देख कर तो ऐसा लगा जैसे विकास दुबे और मुन्ना बजरंगी का नाम भी इसी में शामिल होगा - क्योंकि जेल में हुई एक हत्या को भी बीजेपी ने योगी शासन की उपलब्धि के तौर पर पेश किया है.

yogi adityanath, akhilesh yadavआक्रामक योगी आदित्यनाथ के सामने संयम दिखाते अखिलेश यादव - माजरा क्या है?

लेकिन ये उपलब्धियां नाकाफी लगती हैं - क्योंकि योगी आदित्यनाथ अधूरे काम पूरे करने के लिए एक और कार्यकाल चाहते हैं. बिलकुल वैसे ही जैसे जॉर्ज बुश ने दूसरी पारी ये कह कर जीत ली थी कि इराक वॉर अंजाम तक नहीं पहुंच सका है. बुश के राजनीति से रिटायर होने के बरसों बाद भी अब तक कोई ये नहीं समझ सका कि जिन जैविक हथियारों के नाम पर डरा कर इराक वॉर शुरू हुआ था वे मिले क्यों नहीं. डोनॉल्ड ट्रंप ने तो बगैर कोई जंग लड़े ही कोरोना वायरस में चीन के जैविक हथियार खोज डाले थे.

गर्मी और चर्बी चढ़ने की बातें भी हुई हैं: योगी आदित्यनाथ के ट्वीट से तो ऐसा ही लगता है जैसे, कुछ ऐसे ही अधूरे काम बच गये हैं जिन्हें वो अंजाम देना चाहते हैं. इस ट्वीट में योगी आदित्यनाथ बगैर नाम लिये नाहिद हसन और समाजवादी पार्टी के बारे में बात कर रहे हैं. नाहिद हसन को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है - और वो जेल से ही चुनाव लड़े हैं.

नाहिद हसन 2014 से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं - और योगी के पूरे कार्यकाल भी अपने इलाके का प्रतिनिधत्व करते रहे. लगता है योगी आदित्यनाथ ने कुछ गर्मियां अगले कार्यकाल के लिए बचा कर कर रखा हुआ है, जिसे 10 मार्च के बाद शांत कर देने का दावा कर रहे हैं.

कैराना पहुंच कर ही योगी आदित्यनाथ ने पलायन का मुद्दा उठाया था. फिर अमित शाह ने डोर-टू-डोर कैंपेन के तहत पर्चे बांटे - अब खबर आयी है कि यूपी चुनाव के पहले फेज की वोटिंग में सबसे ज्यादा 75 फीसदी वोटिंग कैराना में ही हुई है. ज्यादा वोटिंग बदलाव का संकेत समझी जाती है, लेकिन अपवाद भी होते हैं.

क्या कृषि कानूनों की कुर्बानी भी बेकार लगने लगी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आ रही खबरों पर नजर डालें तो कई हफ्तों से बीजेपी उम्मीदवारों के विरोध की खबरें आ रही हैं. कहीं बीजेपी उम्मीदवार पर कीचड़ फेंके गये तो कहीं काले झंडे दिखाये गये - और हद तो तब हो गयी जब लोगों ने बीजेपी के उम्मीदवार पर पत्थरबाजी ही शुरू कर दी.

किसानों की नाराजगी कम क्यों नहीं हुई: मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे कम से कम दर्जन भर मामले नोटिस किये गये हैं. बीजेपी नेताओं का विरोध तो खूब हुआ है, जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ था. बल्कि, टीवी पर राकेश टिकैत के आंसू गिरने के बाद से - और ये सब देखते हुए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला लेना पड़ा था. हैरानी की बात ये है कि पश्चिम यूपी की कमान अपने हाथ में लेने और हर वक्त अमित शाह के फील्ड में बने रहने के बाद भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं.

किसान नेता राकेश टिकैत शुरू में राजनीति से दूरी बना कर चलने के संकेत दे रहे थे, लेकिन फिर इशारों में ही अपने समर्थकों को समझा भी दिया - ये बोल कर कि उस पार्टी को तो वोट देने की कतई जरूरत नहीं जिसने किसानों का अपमान किया है.

जाहिर है ऐसे में रुझान बदला तो योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक विरोधियों को ही फायदा पहुंचेगा. योगी के खिलाफ मैदान में सपा-आरएलडी गठबंधन को माना जा रहा है. राकेश टिकैत के आंसू गिरने के वाकये के ठीक बाद ही किसानों के बीच बीजेपी से मुंह मोड़ कर जयंत चौधरी के समर्थन की बातें होने लगी थी - और स्थिति की गंभीरता तब समझ में आने लगी जब अमित शाह जाट नेताओं की मीटिंग बुलाकर जयंत चौधरी को संदेश भिजवाने लगे.

पहले जिन्ना, अब कश्मीर की बातें: सबसे अजीब लगा पहले चरण के मतदान की पूर्वसंध्या पर योगी आदित्यनाथ का बयान. यूपी के मतदाताओं से वोट देने की अपील के साथ योगी आदित्यनाथ ने साफ साफ शब्दों में चेतावनी दे डाली, '...नहीं तो उत्तर प्रदेश को कश्मीर, केरल और बंगाल बनते देर नहीं लगेगी.'

अखिलेश ने संयम दिखाया है: चेतावनी भरे लहजे में योगी आदित्यनाथ की अपील पर बाहर से और सोशल मीडिया पर तो जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई है, लेकिन बड़े ही संयम भरे अंदाज में रिएक्ट किया है. यूपी के वोटर से अपनी अपील में उम्मीदों की किरण की झलक दिखाने की कोशिश की है, 'नयी यूपी का नया नारा, विकास ही विचारधारा बने.'

अखिलेश यादव ने केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन के ट्वीट को रिट्वीट किया है. सीनियर पत्रकार विनोद कापड़ी ने ट्विटर पर लिखा है कि केरल के मुख्यमंत्री ने बाकायदा हिंदी में योगी आदित्यनाथ को समझा दिया है कि केरल बनने का मतलब क्या होता है.

ध्यान देने वाली बात ये है कि पी. विजयन ने योगी के बयान पर रिएक्शन हिंदी में ट्वीट कर दिया है - और इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं. आपको याद होगा उसी केरल के कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने संसद में नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के हिंदी में सवालों के जवाब देने पर कड़ा ऐतराज जताया था. हालांकि, वो अलग ही राजनीति है.

यूपी तो फिसड्डी है: नीति आयोग की एक रिपोर्ट भी आयी थी, जिसके स्वास्थ्य सूचकांक में केरल को अव्वल और यूपी को सबसे फिसड्डी बताया गया था. योगी के बयान के बाद ऐसे ही आंकड़े गिनाये जाने लगे हैं.

जाटों और किसानों की नाराजगी से बचने के लिए भले ही बीजेपी नेतृत्व जयंत चौधरी पर डोरे डाल रहा हो, लेकिन आरएलडी नेता योगी आदित्यनाथ को लोगों की तुलनात्मक आमदनी की मिसाल देते हुए जवाब दिया है, 'उत्तर प्रदेश के मुकाबले जम्मू-कश्मीर का प्रति व्यक्ति आय दुगने के करीब है... बंगाल का तीन गुना - और केरल सात गुना है.'

योगी के बयान में जम्मू-कश्मीर के जिक्र पर उमर अब्दुल्ला कहते हैं, 'जम्मू-कश्मीर में गरीबी कम है... मानव विकास सूचकांक बेहतर है... अपराध कम है और यूपी के मुकाबले लोगों का जीवन स्तर बेहतर है... कमी सिर्फ गवर्नेंस को लेकर है... लेकिन ये अस्थायी है.'

बंगाल की तरफ से कोई रिएक्शन नहीं आया है. हो सकता है, ममता बनर्जी भी अखिलेश यादव का मुंह देख रही हों, वरना अभी अभी तो प्रेस कांफ्रेंस में ममता ने कहा ही था - 'यूपी से योगी जी को जाने दो, अगर वो आ जाएगा तो आप लोगों को पूरा खा जाएगा.'

वोट के लिए दंगों के जख्म भी कुरेद दिये

चुनाव आयोग की तरफ से 8 जनवरी को मतदान की तारीखें बतायी गयी थीं - और तभी से योगी आदित्यनाथ समझाने लगे, 'यह चुनाव 80 प्रतिशत बनाम 20 प्रतिशत का होगा.’

अब्बाजान से तमंचावादी तक: अब्बाजान की अलख तो पहले ही जगा चुके थे, लगे हाथ और जिन्नावादी, तमंचावादी और परिवारवादी जैसे शब्दों की बौछार होने लगी - और बीच बीच में बुलडोजर का भी जिक्र करते रहे हैं.

और ऐसा भी नहीं कि ऐसी बातें सिर्फ योगी आदित्यनाथ ही कर रहे हैं, चुनाव प्रचार के लिए मुजफ्फरनगर पहुंचे अमित शाह ने भी दंगों के जख्मों को कुरेदने में कोई कसर बाकी नहीं रखी थी.

दंगों का दर्द भूल गये क्या: दंगों के दौरान तत्कालीन सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाते हुए अमित शाह पूछते हैं, 'मुजफ्फनगर और पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता से पूछने आया हूं... क्या जनता दंगों को भूल गई है? अगर नहीं भूले हैं तो वोट देने में गलती मत करना - वरना, फिर से वही दंगे कराने वाले लखनऊ की गद्दी पर बैठ जाएंगे.'

योगी आदित्यनाथ की बातों का उनके अपने सपोर्टर या बीजेपी समर्थकों पर जो भी असर हो, लेकिन यूपी के लोगों ने निश्चित तौर पर सोच समझ कर फैसला लेना शुरू कर दिया होगा. यूपी के लोगों ने पहले मुलायम सिंह, फिर अखिलेश यादव का भी शासन देखा है. मायावती का भी देखा है - और पांच साल योगी आदित्यनाथ को भी देख रहे थे.

जाहिर है जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पांच साल आजमाने के बाद यूपी के लोगों ने 2019 दोबारा सत्ता में वापसी करा दी, अब आगे भी देख लेंगे कि क्या करना है - हो सकता है योगी आदित्यनाथ को लेकर भी यूपी के लोगों में मन में मोदी जैसी ही बातें हो, हो सकता है नहीं भी हों. हो सकता है योगी आदित्यनाथ ने भी कुछ विशेष महसूस किया हो - और अपने पुराने अंदाज में लौट आये हो.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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