मोदी का जादू नहीं चला तो राहुल की आंधी में योगी भी फेल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद, बीजेपी में योगी आदित्यनाथ ही ऐसे नेता हैं जिनकी ज्यादा डिमांड रहती है. अपनी शोहरत के मुताबिक योगी अपने बयानों से सुर्खियां तो इस बार भी बटोरी, लेकिन बीजेपी को वोट नहीं मिले.
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बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद चुनाव प्रचार के लिए योगी आदित्यनाथ ही पसंदीदा नेता हैं. योगी की यही खासियत उन्हें बीजेपी में स्टार प्रचारक बनाती है. छत्तीसगढ़ में तो अद्भुत ही नजारा दिखा जब बीजेपी के सबसे सीनियर सीएम रमन सिंह ने सबसे जूनियर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पैर छूकर आशीर्वाद लिया. न तो रमन सिंह को योगी का आशीर्वाद काम आया और न ही वसु्ंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान को उनका चुनाव प्रचार.
अपनी ख्याति के अनुरूप चुनाव प्रचार में योगी ने कोई कसर बाकी भी नहीं रखी. राजस्थान में तो योगी ने हनुमान की जाति ही बता डाली और तेलंगाना पहुंचे तो हैदराबाद का ही नाम बदलने की घोषणा कर डाले, बशर्ते बीजेपी सत्ता में आ पायी. यूपी की कुर्सी संभालने के बाद त्रिपुरा से लेकर कर्नाटक तक स्टार प्रचारक बने रहे योगी आदित्यनाथ को भी इस बार चुनावों में जोर का झटका लगा है.
चुनाव नतीजों में बीजेपी की हार के बीच लखनऊ में एक होर्डिंग लगा है - योगी 4 PM. दिलचस्प बात ये है कि इसमें मोदी को जुमलेबाज और योगी को हिंदुत्व का ब्रांड बताया गया है.
योगी 4 PM?
कोई नव निर्माण सेना यूपी में भी आ चुकी है. या कम से कम आने की दस्तक दे चुकी है. अपने नाम के अनुसार ही उसके कारनामे भी नजर आने लगे हैं - और उसी हिसाब से सरकारी एक्शन भी हुआ है. हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस मामले की छानबीन कर रही है. होर्डिंग को उतारकर पुलिस ने उसे अपने कब्जे में ले लिया है.
लखनऊ में लगी ये होर्डिंग अब पुलिस के कब्जे में है
अव्वल तो लोगों को किसी की शरारत लगी थी, लेकिन जल्द ही साफ हो गया कि अमित जानी नाम के एक युवक ने ये होर्डिंग लगायी थी. अमित जानी एक दौर में शिवपाल यादव का करीबी रहा है. आज तक की रिपोर्ट के अनुसार अमित ने एक वीडियो जारी कर होर्डिंग को सही ठहराने की कोशिश की है.
वीडियो में अमित जानी का कहना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी हिंदुत्व के रथ पर सवार होकर आए थे, लेकिन हिंदुओं की चिंता करना ही उन्होंने छोड़ दिया. अमित की नजर में योगी लगातार हिंदुओं की बात कर रहे हैं. वीडियो में यहां तक दावा किया गया है कि योगी आदित्यनाथ अगर पांच राज्यों में चुनाव प्रचार नहीं किये होते तो बीजेपी की हालत कहीं ज्यादा खराब होती.
जो भी चाहे दावा अपने हिसाब से कर सकता है, लेकिन लग तो ऐसा रहा है कि योगी आदित्यनाथ भी प्रधानमंत्री मोदी के साये में ही सफल हो पाते हैं.
फीका रहा योगी आदित्यनाथ का प्रभाव
एक वायरल वीडियो जिसमें कमलनाथ को कथित तौर पर मुस्लिम वोटों की बात करते देखा गया, योगी आदित्यनाथ का सीधा सपाट रिएक्शन था, 'कमलनाथ जी आप अपना अली रखिए, हमारे लिए बजरंग बली काफी है.'
क्या जादू फीका पड़ रहा है?
मध्य प्रदेश में ये बयान देने के बाद जब योगी राजस्थान के अलवर पहुंचे तो बजरंगबली की जाति भी बता डाला - दलित. तभी काउंटर क्लेम आया - 'नहीं-नहीं हनुमान तो ST कैटेगरी में आते हैं. स्वामी स्वरूपानंद ने 'कांधे मूंज जनेऊ छाजै' गाते हुए हनुमान के ब्राह्मण होने का दावा किया तो रामकथा वाचक मोरारी बापू ने हनुमान को लेकर हुए विवाद पर गहरी नाराजगी जतायी.
वैसे जहां योगी ने हनुमान को दलित बताया था उस अलवर की 11 सीटों में से बीजेपी सिर्फ दो सीटें जीत पायी. 2013 में बीजेपी के खाते में अलवर की 9 सीटें आयी थीं.
योगी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए 63 पब्लिक मीटिंग की. योगी के लिए खासतौर पर उन इलाकों को चुना गया था जहां कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे. योगी की प्रचार शैली को देखते हुए सचिन पायलट सहित कई कांग्रेस नेता उन्हें टोंक आने के लिए चैलेंज कर रहे थे. टोंक में बीजेपी ने सचिन के खिलाफ वसुंधरा राजे के करीबी यूनुस खान को टिकट दिया था और वो चुनाव हार गये.
तेलंगाना पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद का नाम बदलने की घोषणा कर डाली थी, ठीक वैसे ही जैसे फैजाबाद अचानक एक दिन अयोध्या हो गया. हर तस्वीर का दूसरा पहलू होता ही है. चुनावों में राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व पर चर्चा और रैलियों में 'बोल बम' के नारे तो गूंजे ही, पुष्कर में गोत्र को लेकर भी खासा विवाद हुआ. इतना ही नहीं राहुल गांधी ने तो गीता सार का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी के हिंदुत्व ज्ञान पर भी सवाल उठाया था. ये बात उदयपुर की है जहां विधानसभा की 10 में से कांग्रेस 5 ही जीत पायी.
मोदी और योगी के लिए चुनावी सीख
योगी आदित्यनाथ ध्रुवीकरण की चुनावी राजनीति के मास्टर भी हैं और मशहूर भी. कैराना उपचुनाव से लेकर अब तक के नतीजों से साफ है कि ब्रांड मोदी और योगी पर भी खतरे के बादल छा चुके हैं - सतर्क नहीं हुए तो जनता को पाठ पढ़ाते देर नहीं लगती.
1. जिन्ना बनाम गन्ना: अगर लोगों को जिन्ना और गन्ना जैसी बहस में उलझाने की कोशिश हुई तो कैनारा जैसी शिकस्त बीजेपी को बार बार झेलनी पड़ सकती है.
2. राम मंदिर: किसानों के लिए कर्जमाफी और समर्थन मूल्य ज्यादा मायने रखते हैं, बनिस्बत मंदिर पर अध्यादेश या कानून बनाने के.
3. श्मशान बनाम कब्रिस्तान: जनता श्मशान और कब्रिस्तान का फर्क समझती है, लेकिन चुनावों में अब ऐसी बातों से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला.
4. नोटबंदी, जीएसटी: न तो कारोबारी जीएसटी लागू करने की जल्दबाजी की मुश्किलें उठाएंगे और न ही आम लोग नोटबंदी जैसे गलत फैसलों से गुमराह होने वाले हैं.
5. रोजगार जरूरी है: हनुमान दलित थे या एसटी कैटेगरी में आएंगे, लोगों को अपने लिए आरक्षण और रोजगार के अवसर चाहिये - पकौड़े बेचने जैसी हवाई तरकीबें बहुत दिन तक नहीं चलने वाली हैं.
अब तो ऐसा लग रहा है कि जब तक प्रधानमंत्री मोदी का जादू चलता है, योगी आदित्यनाथ भी तभी असरदार साबित होते हैं. गुजरात, त्रिपुरा और कर्नाटक चुनाव के नतीजों की मौजूदा विधानसभा चुनाव के साथ साथ गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के रिजल्ट की रवायत एक जैसी है, वरना योगी के बयानों पर विवाद से ज्यादा कुछ हासिल नहीं होता.
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