योगी के हाथ लगा मुख्तार वो मोहरा है जो पूरे विपक्ष को एक साथ शह दे रहा है
जैसे जेसीबी मशीनें मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) जैसे माफिया के ठिकानों पर कहर ढाते देखी गयी हैं, योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) भी अब उसे वैसे ही इस्तेमाल करने वाले हैं - मुख्तार अंसारी वो मोहरा है जो योगी के विरोधियों (UP Opposition) के लिए जेसीबी जैसा ही है.
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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) जिस कदर एक्टिव हैं, साफ है, बीजेपी नेतृत्व पंचायत चुनावों को पक्के तौर पर मिशन यूपी 2021 के सेमीफाइनल के रूप में ले रहा है. पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन का काउंटर भले ही पाइपलाइन में हो, लेकिन पंजाब सरकार से कानूनी लड़ाई में मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) के हाथ लगते ही बीजेपी ने पूर्वांचल के लिए तो पक्का इंतजाम कर ही लिया है.
पश्चिम बंगाल की चुनावी रैली में बीजेपी के स्टार प्रचारक ने योगी आदित्यनाथ ने मुख्तार अंसारी के रोपड़ की जेल से यूपी के बांदा में शिफ्ट किये जाने को भी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर ही पेश किया है. आपको याद होगा, जिस वक्त पाकिस्तान में विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की रिहाई की तैयारियां चल रही थीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैज्ञानिकों के एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे - और वैज्ञानिकों के कामकाज के जिक्र के साथ ही बातों बातों में बता डाला था कि जैसे वे लोग किसी भी मिशन के लिए पहले पायलट पर काम करते हैं, ठीक वैसे ही - 'अभी अभी एक पायलट प्रोजेक्ट पूरा हुआ है'. अरसा बाद प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश की धरती से एक बार फिर इमरान खान को इंदिरा गांधी का नाम लेकर बड़ा संदेश देने की कोशिश की है.
मोदी की ही तरह चुनावी रैली में योगी आदित्यनाथ ने भी कोई नाम तो नहीं लिया, लेकिन बंगाल के अपराधियों के खिलाफ यूपी वाले अंदाज में ही पेश आने का इशारा किया - 'एनकाउंटर या जेल', लेकिन 2 मई के बाद. 2 मई को पश्चिम बंगाल सहित पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने वाले हैं. कोई दो राय नहीं कि इशारा तो मुख्तार अंसारी को लेकर ही रहा होगा, मगर योगी आदित्यनाथ ने इतना ही कहा- 'अभी से आदत सुधार लो, सुधर जाओगे तो भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ लाइन में लगकर चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोटिंग कर अपनी गलतियों का पश्चाताप कर लो - अन्यथा, दो मई के बाद फिर तय कर लो... कानून ढूंढ-ढूंढ कर निकालेगा - जैसे कल का दृश्य उत्तर प्रदेश में आपने देखा होगा...'
आगे बोले, 'ये अपराधी और माफिया कितना भी बड़ा क्यों नहीं हो... ढूंढ करके उसको पाताल से निकाल करके जेल में डालने का काम किया जाएगा.' चुनावों का नतीजा जो भी हो, राजनीतिक विरोधियों (UP Opposition) के लिए ये पॉलिटिकल मैसेज तो ऐसा ही लगा जैसे जीत गये तो बल्ले बल्ले, लेकिन हार गये तो भी खेल खेलना तो बीजेपी को बखूबी आता ही है. महाराष्ट्र की प्रयोगशाला लेटेस्ट नमूना है.
मौजूदा सियासी माहौल में मिसफिट है मुख्तार और अंसारी परिवार
पेशेवर अपराधी जिन गाड़ियों से चलते हैं अक्सर उनके नंबरों में घालमेल देखने को मिलता है. कभी चार चक्के वाली गाड़ी पर स्कूटर का नंबर मिलता है तो कभी बगैर नंबर प्लेट की ही गाड़ी चल रही होती है, लेकिन जब जरायम की दुनिया में रहते हुए वही बदमाश किसी का कृपापात्र बन कर सियासी चोला धारण कर लेता है तो पूरा अंदाज ही बदल जाता है.
राजनीति के नये समीकरणों में मुख्तार अंसारी अभी मिसफिट जरूर हो गया है, वरना एक जमाना रहा जब उसकी दो दर्जन गाड़ियों का काफिला गुजरता था तो हर तरफ खौफ भरी हनक महसूस की जाती रही - खास बात ये भी होती रही कि एक लाइन से 786 नंबर की ही गाड़ियां गुजरती रहीं.
अव्वल तो अपराधी और माफिया का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन मुख्तार का केस अलग है. मुस्लिम समुदाय के बीच मुख्तार अंसारी खुद को एक मजबूत कायद और मसीहा के तौर पर पेश करने की कोशिश करता आया है. बीएसपी के ही सांसद अफजाल अंसारी दलील और दुहाई दे रहे हैं कि वो इलाके के 10 फीसदी से भी कम मुस्लिम समुदाय की बदौलत ही सांसद या मुख्तार विधायक थोड़े ही हैं.
ये दलील दमदार भी है - क्योंकि सिर्फ दोनों भाइयों के केस में ही तो मायावती का दलित-मुस्लिम फैक्टर सफल नजर आया वरना चुनाव दर चुनाव तो फेल ही होता जा रहा है. मऊ में मुस्लिम आबादी ज्यादा हो सकती है, लेकिन गाजीपुर में तो मनोज सिन्हा को अच्छे खासे भूमिहार वोटों के बावजूद आखिर बीएसपी के वोटों के चलते ही तो मोदी लहर में भी हार का मुंह देखना पड़ा था.
मायावती का दलित-मुस्लिम समीकरण गाजीपुर में ही सफल रहा जब बीजेपी के मनोज सिन्हा से बीएसपी उम्मीदवार अफजाल अंसारी ने जीत ली
ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि मुख्तार अंसारी और उसका परिवार विरोधी खेमे में होने के चलते ही वक्त के इस बुरे मोड़ पर पहुंच गया है. सत्ता के संरक्षण की बदौलत मुख्तार अंसारी का राजनीतिक वर्चस्व को लेकर योगी आदित्यनाथ के साथ भी जबरदस्त टकराव हो रखा है. ये तब की बात है जब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद हुआ करते थे.
2005 के मऊ दंगों के बाद पीड़ितों को इंसाफ दिलाने के नाम पर योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से मऊ का रुख किया था लेकिन उनके काफिले को दोहरीघाट में ही रोक दिया गया. तब प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव हुआ करते रहे.
तीन साल बाद योगी आदित्यनाथ ने अपने संगठन हिंदू युवा वाहिनी के बैनर तले आजमगढ़ में आतंकवाद के खिलाफ रैली का ऐलान किया. तय कार्यक्रम के अनुसार 7 सितंबर, 2008 को आजमगढ़ के डीएवी डिग्री कॉलेज के मैदान में रैली की तैयारियां शुरू हुईं. योगी आदित्यनाथ को रैली में खलल की आशंका पहले से ही रही और उसी हिसाब से तैयारी भी हुई थी.
रैली के रास्ते में भी सैकड़ों बाइक और गाड़ियों के काफिले के साथ निकले योगी आदित्यनाथ की गाड़ी को निशाना बनाया गया. जिस गाड़ी पर योगी आदित्यनाथ सवार थे, एक पत्थर उसी पर आकर गिरा. योगी आदित्यनाथ का कहना रहा कि काफिले पर लगातार एक तरफ से गोलियां चलायी जा रही थीं. योगी आदित्यनाथ और उनके साथियों की नजर में ये हमला किसी और ने नहीं बल्कि मुख्तार अंसारी गैंग ने ही किया था.
ये तब की बात है जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की जगह मायावती मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुकी थीं, लेकिन मुख्तार अंसारी के तैश और तेवर में कमी आने की बात कौन कहे, इजाफा ही महसूस किया जा रहा था.
अब बीजेपी सत्ता में है और मुख्तार अंसारी और उसके परिवार को संरक्षण देने वाले सारे राजनीतिक दल विपक्षी खेमे में हैं और सभी अलग अलग अपने अपने अस्तित्व की लड़ाई ही लड़ रहे हैं - अंसारी परिवार की सबसे बड़ी मुश्किल यही है कि वो मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में पूरी तरह मिसफिट हो चुका है और हाल फिलहाल तो मदद मिलने की दूर दूर तक कोई संभावना भी नहीं दिखायी दे रही है.
तीर एक, निशाने अनेक
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव की बिसात बिछ चुकी है - और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी पूरी ताकत से चुनाव लड़ने वाली है, कोई शक शुबहे वाली बात नहीं है. खासकर, बिहार चुनाव की थकावट की जरा भी परवाह न करते हुए अमित शाह के खुद सड़क पर उतर जाने के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छोड़ कर सारे बड़े बड़ों की परेड करा देने के बाद. मान कर चलिये पश्चिम बंगाल और बाकी विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद लखनऊ और बनारस सहित यूपी की सड़कों पर हैदराबाद से भी बड़े नजारे देखने को मिल सकते हैं.
जहां तक यूपी में पंचायत चुनाव की बिसात की बात है तो मुख्तार अंसारी नाम का ऐसा मोहरा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ लगा है जो पूरे विपक्ष को एक ही निशाने में टारगेट कर सकता है - चाहे वो अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी हो, मायावती की बहुजन समाज पार्टी हो या फिर कांग्रेस की प्रियंका गांधी वाड्रा हों.
योगी आदित्यनाथ के लिए सभी राजनीतिक विरोधियों को एक साथ टारगेट करना इसलिए भी आसान होने वाला है क्योंकि मुख्तार अंसारी राजनीति और अपराध के खतरनाक गठजोड़ का ऑल इन वन कॉम्बो पैकेज है - और यही वजह है कि बात बात पर शोर मचाने वाला विपक्ष तो जैसे सांप सूंघ गया है.
1. टारगेट कांग्रेस: मुख्तार अंसारी को लेकर कांग्रेस तो पहले से ही बीजेपी के निशाने पर रही है. रिहाई में कांग्रेस के बाधा डालने को लेकर बीजेपी विधायक अलका राय कई बार प्रियंका गांधी वाड्रा को चिट्ठी लिख चुकी हैं. अलका राय के पति तत्कालीन बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप भी मुख्तार अंसारी पर ही है, हालांकि, सीबीआई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है.
मुख्तार अंसारी को लेकर बीजेपी के कांग्रेस पर हमलावर होने की वजह ये भी रही क्योंकि यूपी सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद पंजाब सरकार यूपी पुलिस को सौंपने को राजी नहीं थी. लिहाजा यूपी पुलिस को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद ही पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस सरकार ने मुख्तार अंसारी को यूपी पुलिस को सौंपा.
हैरानी की बात तो ये रही कि मुख्तार अंसारी ने बांदा पहुंच कर कांग्रेस की फजीहत कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. जो मुख्तार अंसारी पंजाब में निजी एंबुलेंस और व्हील चेयर पर आना जाना कर रहा था, वो बांदा में एंबुलेंस से उतर कर व्हीलचेयर की तरफ देखा तक नहीं और सीधे अपने पैरों से चल कर जेल में दाखिल हो गया.
जाहिर है चुनावों में योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के उनके साथी प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस को ऐसे वाकयों की याद दिलाकर घेरेंगे - पहले पंचायत चुनाव में और फिर अगले साल विधानसभा चुनाव में.
2. टारगेट समाजवादी पार्टी: समाजवादी पार्टी नेतृत्व को घेरने के लिए यूपी पुलिस में डीएसपी रहे शैलेंद्र सिंह तो बीजेपी को मिल ही गये हैं, चुनावों में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव को बीजेपी नेता मुख्तार अंसारी का नाम ले लेकर आसानी से कठघरे में खड़ा कर सकेंगे.
चुनावों में शैलेंद्र सिंह बीजेपी के मंच से मुख्तार को बचाने के लिए अपनी प्रताड़ना के जो किस्से सुना रहे हैं - आगे भी यूं ही सुनाएंगे ही.
3. टारगेट बीएसपी: मुख्तार अंसारी को लेकर मायावती की तो बोलती ही बंद है. बात बात पर यूपी की बीजेपी सरकार के पक्ष में कांग्रेस पर बरसती रहने वाली मायावती मुख्तार अंसारी के मामले में खामोशी अख्तियार कर चुकी हैं - बोलें भी तो क्या बोलें, मऊ विधानसभा क्षेत्र से मुख्तार अंसारी विधायक तो बीएसपी के ही हैं. मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी भी बीएसपी के ही सांसद हैं.
देखा जाये तो बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में सारे विपक्षी दलों के खिलाफ बड़ी ही चालाकी से और सधी चाल के साथ जाल बिछाया है - जिससे निकलने के लिए सबके सब बुरी तरह छटपटा रहे हैं, लेकिन कोई अक्ल काम नहीं आ रही है.
सभी मामलों में न सही, लेकिन कम से कम मुख्तार अंसारी केस में योगी सरकार राजनीति और अपराध का गठजोड़ भी तोड़ने की कोशिश में जुट गयी है. कानूनी एक्शन के साथ ही बीजेपी की कोशिश है कि जैसे भी मुमकिन हो मुख्तार अंसारी की विधानसभा की सदस्यता भी खत्म हो जाये.
उत्तर प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना के मुताबिक मुख्तार अंसारी के मामले में फिलहाल कानूनी राय ली जा रही है. सुरेश खन्ना का कहना रहा, 'अगर कोई सदस्य 60 दिन से अधिक समय तक सदन से अनुपस्थित रहता है, तो उस स्थिति में नियमों के अनुसार उसकी सदस्यता को रद्द किया जा सकता है.' यूपी विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित को इस बारे में आखिरी फैसला लेना है.
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