New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 अप्रिल, 2019 02:40 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

जिस बुनियाद पर यूपी में सपा-बसपा गठबंधन खड़ा हुआ वो हिल चुकी है. नींव की ईंटें हटाई तो नहीं गयी हैं, लेकिन उनके नीचे की जमीन दरकने लगी है. ये हाल तब है जबकि पहले चरण के लिए भी अभी वोट नहीं पड़े हैं.

योगी आदित्यनाथ को मायावती और अखिलेश यादव से गोरखपुर उपचुनाव की हार बदला लेने का मौका चुनाव से पहले ही मिल गया. गोरखपुर में लोक सभा के लिए 19 मई को वोट डाले जाने हैं.

निषाद पार्टी का सपा-बसपा गठबंधन से नाता तोड़ लेना योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के लिए आधा-बदला लेने जैसा ही है.

योगी आदित्यनाथ का हाफ-बदला

योगी आदित्यनाथ ने यूपी में गोवा जैसा गुल खिलाया है. नतीजा गोवा वाली स्थिति में तो नहीं पहुंचा है, लेकिन काफी करीब लगता है. गोवा में MGP ने बीजेपी से सौदेबाजी करके डिप्टी सीएम की कुर्सी लेकर ही शांत हुई. बीजेपी ने पार्टी के बाकी बचे दो विधायकों को भगवा ओढ़ाया और नेता को कुर्सी से धक्का देकर उतार दिया. योगी आदित्यनाथ को इतना सब तो नहीं करना पड़ा है, लेकिन जो जुगत लगायी गयी लगती है, वो मिलती जुलती ही लगती है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साल भर बाद गोरखपुर से बहुत बुरी खबर मिली जब बरसों पुरानी उनकी सीट उनके कट्टर विरोधी हथिया लिये. गोरखपुर के साथ ही फूलपुर उपचुनाव और फिर कैराना उपचुनाव में भी योगी आदित्यनाथ की शिकस्त हुई. जीत का सेहरा एक ही तरफ बंधा जा रहा था.

योगी ने मायावती और अखिलेश की बनती जोड़ी को थोड़ा झटका तो राज्य सभा के चुनाव में ही दिया था - लेकिन उसका कोई फर्क नहीं पड़ा. तीन उपचुनावों में मिली जीत के जोश से लबालब गठबंधन के नेताओं ने कांग्रेस को भी आस पास नहीं फटकने दिया. बीजेपी के खिलाफ चुनाव मैदान में अब कांग्रेस भी उतर आयी है और वो गठबंधन के ही वोट बांटने वाली है, लेकिन मायावती यही संकेत दे रही हैं कि उन्हें जरा भी परवाह नहीं है.

अखिलेश यादव और मायावती के लिए पहला झटका तो निषाद पार्टी का दूर होना है और दूसरा योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर हाथ मिलाने का मैसेज भेजना. मतलब, निषाद पार्टी का जो वोट गठबंधन की चुनावी जीत का आधार बना अब वो बीजेपी के पाले में जा सकता है.

yogi adityanath, sanjay nishadसाल भर बाद झटका, दो साल बाद हाफ-बदला!

निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात और समाजवादी पार्टी की ओर से प्रवीण कुमार निषाद की जगह रामभुआल निषाद को टिकट दिया जाना सारे सियासी समीकरणों के बदल जाने का संकेत है. समाजवादी पार्टी के टिकट पर प्रवीण कुमार निषाद ही उपचुनाव जीते थे. प्रवीण निषाद ने अभी समाजवादी पार्टी में बने रहने या छोड़ने को लेकर कोई रूख जाहिर नहीं किया है. वो निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद के बेटे हैं.

अब तो निषाद वोट ही निर्णायक होंगे

गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में निषादों की तादाद तीन से साढ़े तीन लाख के बीच है. गोरखपुर-बस्ती मंडल के दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में भी निषाद वोटों की निर्णायक भूमिका होती है. गोरखपुर सीट पर अब तक गोरक्ष पीठ का हाथ होने के कारण बाकी वोट बेअसर हो जाते रहे - लेकिन पीठ के महंथ योगी आदित्यनाथ के मैदान से हटते ही बाजी पलट गयी.

उपचुनाव में बीजेपी ने उपेंद्र दत्त शुक्ला को उम्मीदवार बनाया था. दरअसल, बीजेपी चाहती थी कि ब्राह्मण वोट बरकरार रहे. योगी आदित्यनाथ के चलते ब्राह्मण वोट बीजेपी से नाराज माना जाता था. उपेंद्र दत्त शुक्ला से पहले बीजेपी ने योगी के विरोधी शिव प्रताप शुक्ला को राज्य सभा भेज कर मंत्री भी बनाया था - लेकिन निषाद वोटों के एकजुट हो जाने के कारण उपचुनाव में सीट से हाथ धोना पड़ा था.

इलाके में निषाद समुदाय की आबादी को देखते हुए ही संजय निषाद ने 2016 में निषाद पार्टी बना ली. NISHAD संक्षिप्त रूप है जिसका विस्तार 'निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल' के रूप में होता है.

sanjay nishad, akhilesh yadavसाल भर का साथ, फिर अपने अपने रास्ते

माना जा रहा था कि बीजेपी भी गठबंधन को काउंटर करने के लिए किसी निषाद उम्मीदवार को ही आजमाना चाहेगी. जब इलाके के असरदार निषाद परिवार से आने वाले अमरेन्द्र निषाद ने समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी ज्वाइन किया तो तस्वीर काफी साफ लगने लगी. ऐसा लगा कि प्रवीण निषाद गठबंधन के प्रत्याशी होंगे और बीजेपी का टिकट अमरेंद्र निषाद को मिलेगा. अब यूपी की राजनीति ने जिस तरह करवट बदली है - कुछ नया होने के संकेत मिल रहे हैं.

समाजवादी पार्टी ने जिसे टिकट दिया है वो रामभुआल निषाद बीएसपी सरकार में मंत्री रह चुके हैं और 2014 में बीएसपी के ही टिकट पर लोक सभा का चुनाव लड़ चुके हैं. जातीय समीकरण और वोट बैंक के हिसाब से देखें तो राम भुआल बीस लगते हैं. अगर बीजेपी की ओर से प्रवीण निषाद टिकट पाने में कामयाब रहते हैं तो उनके सामने एक ऐसा उम्मीदवार होगा जो बीएसपी में रह चुका है और समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है. समझने वाली बात ये है कि मतदाताओं के लिए चेहरा भी पुराना होगा और गठबंधन के वोटों के ट्रांसफर होने की गारंटी भी.

इन्हें भी पढ़ें :

मोदी का जादू नहीं चला तो राहुल की आंधी में योगी भी फेल

2019 में योगी आदित्यनाथ का भविष्यफल बता रही हैं 2018 की ये 3 बातें

योगी के यूपी में जूतम-पैजार की जड़ में है 'विटामिन बी-कॉम्प्लेक्स'

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय