केरल बाढ़ के लिए करोड़ों रुपए पर भारी है 94 रुपए का दान
केरल में आई भीषण बाढ़ के बीच आर्थिक मदद को लेकर राजनीति भी चल रही है. जब करोड़ों रुपए की सहायता को लेकर कड़वी खबरें आ रही हों, तो मोहनन के 94 रुपए का दान बेहद सुकून देता है.
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केरल की बाढ़ से ज्यादा उन खबरों की चर्चा हो गई, जिन्होंने मदद के नाम पर विवाद पैदा किया. जैसे UAE की सरकार द्वारा केरल को 700 करोड़ रुपए सहायता वाली झूठी खबर फैलाना. इसके अलावा कई बातें हुईं, जिसने अच्छी और बुरी वजह से केरल बाढ़ को चर्चा में बनाए रखा. हम जिस खबर की बात करने जा रहे हैं, वह भी एक मददगार की ही है. उसने 94 रु. का सहयोग बाढ़ पीड़ितों के लिए दिया है. लेकिन उसके ये 94 रु. किसी 700 करोड़ रुपए से कम नहीं हैं. इस बुजुर्ग मददगार की कहानी यह अंदाजा लगाने के लिए काफी है कि केरल को Gods own country क्यों कहा जाता है.
ये कहानी है मोहनन की. वे पैरों से विकलांग हैं. महावत रहे हैं, लेकिन चार साल पहले एक हाथी ने ही उन पर हमला किया था, जिसकी वजह से उनकी ये हालत हो गई. मोहनन की रोजी-रोटी का कोई ठिकाना नहीं है. लेकिन केरल बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए उन्होंने अपनी जमा-पूंजी 94 रुपए के रूप में दे दी है. उनके इस दान की कहानी दुनिया के सामने आई है केरल के एराट्टुपेट्टा शहर के नगर निगम चेयरमैन टी.एम रशीद के जरिए. जिन्होंने अपने फेसबुक पेज पर मोहनन की तस्वीर के साथ उनके दान की कहानी लिखी है. फेसबुक पोस्ट के अनुसार करीब एक सप्ताह पहले उनके दरवाजे पर एक शख्स आया. आने वाले शख्स को रशीद ने भिखारी समझा. अभी वो अपनी जेब से उसे देने के लिए पैसे निकाल ही रहे थे कि व्यक्ति वहीं घर के दरवाजे में बैठ गया और अपने पास रखे हुए सिक्के गिनने लगा. उस व्यक्ति ने रशीद को 94 रुपए ये कहकर दिए कि वह केरल में आई विध्वंसकारी बाढ़ के लिए अपनी तरफ से दान करना चाहता है.
मोहनन अपनी तरफ से लोगों की मदद कर सके इसलिए वो लकड़ी के सहारे 4 किलोमीटर पैदल चलकर रशीद के पास आया ताकि किसी तरह वो ये पैसा मुख्यमंत्री बाढ़ राहत कोष में जमा करवा सके. उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि राहत फंड के पैसे कहां डोनेट होते हैं इसलिए 4 किलोमीटर लगातार पैदल चलते हुए वह मेरे घर पहुंचा और मुझे ये सिक्के दे गया.
मोहनन के महादान की ये बैंक रसीद केरल के पुनर्निर्माण में सबसे पवित्र योगदान की गवाही भी है.
मोहनन जब ये महा-दान कर रहे थे, उनके भीतर की खुशी साफ झलक रही थी. रशीद खुद आश्चर्य में थे कि इतनी मुश्किलों के बाद भी कोई व्यक्ति इतने बड़े दिलवाला कैसा हो सकता है.
दान के नाम पर जो मोहनन ने किया वो इंसानियत की जिंदा मिसाल है
मोहनन के दान की कीमत समझने के लिए गांधी जी से जुड़ी एक कहानी को याद करना जरूरी है. यह जानने के लिए कैसे करोड़ों रुपए के आगे मोहनन के 94 रुपए ज्यादा कीमती हैं. कहानी कुछ यूं है:
"महात्मा गांधी अपने आश्रम और चरखा संघ के लिए रुपयों का प्रबंध करने के लिए देश के सभी छोटे बड़े शहरों एवं गांवों की यात्रा कर रहे थे. बापू जहां भी जाते उनके साथ, लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती थी. सभा में उपस्थित सभी लोग उनकी जय-जयकार करते थे. एक बूढी महिला भीड़ में से रास्ता बनाकर बापू के पास पहुंचने की कोशिश कर रही थी. उसकी कमर झुकी हुई थी और बाल रुई की तरह सफ़ेद थे. उसने फटी, मैली-कुचैली साड़ी पहनी हुई थी. स्वयं-सेवकों ने जब देखा कि एक भिखारिन गांधी जी के पास पहुंचने की कोशिश कर रही है. तो उन्होंने उसे वहीं रोक दिया. बाबू ने जब देखा तो स्वयं उठकर वे बूढी औरत के पास आ गए.
बापू को देखकर उसने उनके चरण स्पर्श किए और साड़ी के छोर से एक अधेला निकालकर उनके चरणों के पास रख दिया. गांधी जी ने बुढ़िया को धन्यवाद कहा, और धीरे से अधेला उठाकर अपने पास रख लिया. बुढ़िया चुपचाप चली गई. चरखा संघ और आश्रम का सारा लेखा-जोखा सेठ जमनालाल बजाज रखते थे. उन्होंने बापू से अधेला मांगा ताकि उस दिन की धन-राशि में जमा कर दिया जाए. लेकिन बापू ने देने से इंकार कर दिया.
जमनालाल जी ने कहा - ''बापू, आपने हजारों रुपए तो दे दिए परंतु यह एक अधेला छिपाकर क्या करेंगे?'' बापू ने कहा- ''यह अधेला उन हजारों रुपयों से कहीं ज्यादा कीमती है. आदमी के पास लाखों हों और वह उनमें से हजार-दो हजार दे दे तो कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन उस गरीब बुढ़िया की तो शायद यही सारी पूंजी थी. उसने तो अपना सर्वस्व दे दिया. कितना बड़ा दिल है उसका. उसके दान के आगे बाकी अब फीका है. इसी कारण मेरे दिल में इस अधेले की कीमत करोड़ों से अधिक है.''
अधेले की कीमत और महात्मा गांधी से सम्बंधित यह कहानी हम सभी ने बचपन में सुनी होगी. अब यदि हमें इस कहानी को वर्तमान परिदृश्य में समझना हो तो हमें 'मोहनन' से मिलन चाहिए. जिसने अपना अधेला दान कर दिया है.
एक ऐसे समय में जब केरल के लोग प्राकृतिक आपदा का शिकार हैं. जहां बाढ़ के साथ दान के पैसों को लेकर राजनीति भी उफान पर रही है. केंद्र कुछ कह रहा हो, राज्य कुछ कह रहा हो. मोहनन की इस मदद ने बता दिया है कि भले ही देखने वाले को ये रकम दाल में नमक का कण भी न लगे. मगर हकीकत यही है कि मोहनन के 94 रुपए इस आपदा के पीड़ित लोगों के लिए सबसे पवित्र दान होगा.
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