मौत और मौत के बाद की जिंदगी के कई राज खोलता है फेसबुक
जिंदगी चलती रहती है, किसी के लिए नहीं रुकती. किसी के मौत की खबर जिंदा चीजों के खबरों के बाढ़ में दबकर रह जाती थी. यही हम करते हैं. हर कोई करता है. इसलिए मैं नहीं चाहता कि मेरी मौत पर कोई भी मेरे वॉल पर आरआईपी लिखे, और उसके बाद अपने बच्चे को टेनिस क्लास के लिए छोड़ने चला जाए.
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सोशल मीडिया के चाहे जितने भी नफा नुकसान हों, लेकिन मौत की सच्चाई को इसने सामने लाकर रख दिया है. 2013 में किसी ने एक एप लॉन्च किया था. ये एप किसी इंसान के मरने के बाद भी उसके प्रोग्राम्ड ट्वीट को ट्वीट करता रहेगा. इसका मतलब ये है कि कम से कम सोशल मीडिया पर तो अमर होने की गारंटी मिल गई.
मुझे नहीं पता ये एप अभी है या अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया. वैसे भी मुझे इसमें शक ही था क्योंकि एक बार मैं मर गया तो फिर मैं नीचे देखने तो आउंगा नहीं कि जिसके लिए मैंने पैसे दिए थे मेरा वो काम हो रहा है या नहीं. इसी तरह फेसबुक भी अपने मरे हुए यूजर्स को अगर उनके घरवाले चाहें तो जिंदा रखता है. मृतक के परिवारों वालों को अपने प्रियजन से जुड़ा हुआ सा एहसास होता होगा. हालांकि इसका कोई मतलब नहीं है. ये बेकार की बात है. लेकिन फिर भी क्या करें, ये है. ये होता है.
सोशल मीडिया सेल्फ प्रोमोशन का तरीका है. खासकर ट्विटर. इसके अपने व्यावसायिक उपयोग हैं लेकिन आजकल लोग इसका प्रयोग अपनी भावनाओं को दर्शाने के लिए ज्यादा कर रहे हैं. अपने बदलते मूड को दर्शाने के लिए लोग अपना स्टेटस बदल रहे हैं. खुश हैं, दुखी हैं या फिर गुस्से में हैं. लेकिन किसी प्रियजन की मौत पर दुःख व्यक्त करने के लिए फेसबुक का उपयोग करना एक अलग बात है. दु:ख एक गहरी व्यक्तिगत बात है.
फेसबुक ने मौत के बाद जीवन की परिभाषा को खत्म कर दिया
मानव जीवन अनमोल है. मैं एक बहुत ही नैतिक प्रश्न पूछता हूं: "तो क्या अपने शोक को एक एल्गोरिद्म के हवाले कर देना ठीक है, जो आपके व्यक्तिगत डेटा को इकट्ठा करता है और विज्ञापनदाताओं को इसे बेच देता है? क्या हमें अपनी आत्मा को फेसबुक की दीवारों से दूर नहीं रखना चाहिए? या फिर क्या फेसबुक वॉल ही अब मानवीय आत्मा में बदल गई है? आप चाहते हैं कि आपके दोस्त अपने दुख को जताएं लेकिन देखिए न किसी की जरुरत को पूरा करना कितना आसान है: एक गोल पीले रंग का आइकन जिसकी आंखों से आंसू गिर रहे हैं. क्या यही है मानव जीवन? मैं अपना दुख फेसबुक की बेकार दुनिया में जाया नहीं कर रहा?"
मैं 42 साल का हूं. और इस उम्र में एक जेनेरेशन खत्म होने लगती है. माता-पिता, माता-पिता के दोस्त. कभी कभी मौत लंबी बीमारी के बाद आती है. कभी अचानक, बिना बताए, दबे पांव आती है. कई व्हाट्सएप ग्रुप के जिनका हम हिस्सा होते हैं उन पर RIP के मैसेज आते रहते हैं. लेकिन क्या इन सब का कोई मतलब बनता है? ये घिसीपिटी बात है जिसे हर कोई दोहराता है.
जब हम इंटरनेट से नहीं जुड़े थे तो मौत के बारे में कल्पना करना या फिर खुद अपनी जान लेना भी अपने तक सीमित रहता था. एक प्रसिद्ध लेखक अपनी मृत्युलेख खुद लिखेगा और सोचेगा कि उसके दोस्त क्या कहेंगे. इसके लिए किसी को फेमस होने की जरुरत नहीं. ये कोई भी कर सकता है. लेकिन फेसबुक ने हमें ये सच्चाई बता दी कि फेसबुक वॉल पर लिखने से कोई अमर या फेमस नहीं होता. बल्कि लोग एक मिनट के अंदर ही आपको भूल जाएंगे और अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाएंगे.
मौत को एक पोस्ट के स्तर पर गिराकर फेसबुक ने मानव जाति का बहुत भला किया है. अब हमें मौत के बाद जीवन के बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं है. अब अगर कोई मरता है तो तुरंत हम एक पोस्ट लिख देते हैं: "बहुत जल्दी चले गए. आरआईपी." इसके एक घंटे के अंदर ही कोई किसी न्यूज, वीडियो या फिर अपनी शादी के फोटो डाल देता है. मौत की खबर पीछे रह जाती है.
जिंदगी चलती रहती है, किसी के लिए नहीं रुकती. किसी के मौत की खबर जिंदा चीजों के खबरों के बाढ़ में दबकर रह जाती थी. यही हम करते हैं. हर कोई करता है. इसलिए मैं नहीं चाहता कि मेरी मौत पर कोई भी मेरे वॉल पर आरआईपी लिखे, और उसके बाद अपने बच्चे को टेनिस क्लास के लिए छोड़ने चला जाए. मौत तो हर किसी को आनी है, मुझे भी आएगी. लेकिन मुझे भरोसा है कि मैं अमर हूं. मैं हमेशा से बल्कि फेसबुक के आने के बाद से ही हमेशा जवान रहने का नुस्खा खोज रहा था.
अगले दिन मुझे एहसास हुआ कि ये नुस्खा तो मेरे नाक के नीचे ही था. मेरी नानी 91 साल की है और चुस्त, तंदरुस्त है. लेकिन पिछले कई सालों में मैंने दादी के खाने के तौर-तरीकों को ध्यान से देखा है. मेरी दादी, नाश्ते में आलू परांठा और उसके ऊपर मक्खन लगाकर खाती थी. शाम को ब्रेड सैंडविच के ऊपर मीठे किसान मिक्सड फ्रूट जैम की मोटी लेयर लगाती हैं. उनके इस मनपसंद खाने ने ही शायद उन्हें अमर बना दिया है. मेरा भी यही फॉर्मूला रहेगा.
उम्मीद करता हूं कि जब विश्व ट्रंप-किम-भारत-पाकिस्तान के झगड़े में खत्म होगा तब भी मैं आखिरी इंसान बचा रहूंगा. ब्रेड पर जैम लगाकर और इंसानियत के फेसबुक वॉल पर आरआईपी लिखते हुए.
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