इंटरनेट बाजार है जहां यूजर्स के कुंडे और ताले खुल गए हैं अब धोखा भी होगा और लूटा भी जाएगा!
दुनिया के डिजिटल हो जाने का फायदा भले ही हुआ हो लेकिन ऐसे तमाम लोग हैं जो इसका कोप भोग रहे हैं. शायद ही कोई दिन बीतता हो जब ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले न सामने आते हों. कह सकते हैं कि जब रोज तकनीक अपने को अपग्रेड कर रही है तो फिर हम क्यों नहीं.
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कोई संदेह नहीं है कि ने हमारे पूरे जीवन को बदल कर रख दिया है. पहले के मुकाबले आज चीजें कहीं ज्यादा आसान हैं. मतलब जैसा आज का समय है, हम बस एक क्लिक के मोहताज है. क्लिक हुआ नहीं कि, ऐसा बहुत कुछ हो जाता है जिसकी कल्पना आज से एक या दो दशक पहले हम नहीं कर सकते थे. तकनीक भले ही रोज बदल रही और हर बीतते दिन के साथ अपग्रेड हो रही हो लेकिन क्या हमने अपने को टेक्नोलॉजी के अनुरूप विकसित कर लिया है? आज जिस रूप में तकनीक हमारे सामने है तमाम चीजों की तरह उसने बाजार को भी अपने में समेट लिया है. इस बाजार की एक खासियत ये भी है कि भले ही आप यहां टहलते, घूमते थक जाएं लेकिन ये कभी बंद नहीं होता. दूर से देखें तो ये बजार बहुत खुशनुमा, बहुत मनोरंजक लगता है लेकिन जब हम इसके करीब जाते हैं तो इसकी हकीकत हमारे सामने आ जाती है. यहां प्रोडक्ट तो हैं लेकिन क्योंकि सब कुछ वर्चुअल है, उन प्रोडक्ट के पीछे क्या है किसी को इसका इल्म नहीं है.
ऑनलाइन धोखाधड़ी की बातें अब रोज की हो गयी हैं जिसके जिम्मेदार हम खुद हैं
अगर आपको लगता है कि, ऑनलाइन दुनिया के इस बाजार को आप अक्लमंदी का परिचय देते हुए बेवकूफ बना सकते हैं. तो आप गलत हैं. ये आपसे हमसे कहीं ज्यादा शातिर है. ये कब आपको हजारों का, लाखों का, करोड़ों का चूना लगा दे जब तक आपको एहसास होगा बहुत देर हो जाएगी.
तकनीक हर रोज अपने को अपग्रेड कर रही है इसलिए जब हम इस ट्रैप में फंस गए हैं तो ये हमारी मज़बूरी ही है कि हम इसके साथ कदम ताल करते हुए चलें. या फिर सेफ रहें. बाकी इंसान फितरत के लिहाज से लालची है. उसे ज्यादा फिर उससे भी ज्यादा हासिल करने की होड़ रहती है. तकनीक इसी का फायदा उठाती है.
आप फेसबुक खोलिये. ट्विटर या इंस्टाग्राम खोलिये प्रायः वो ही चीजें दिखती हैं जो हमारी विश लिस्ट में होती हैं. तो क्या हर बार ये चीजें सही ही होती हैं? क्या इनमें फ्रॉड या ये कहें कि धोखाधड़ी की गुंजाईश नहीं रहती? बिलकुल रहती है जिसे हम दिल्ली की तबस्सुम क़ुरैशी के मामले से समझ सकते हैं. तबस्स्सुम को डॉक्टर से अपॉइंटमेंट बुक करना था. अपनी इस मंशा के लिए तबस्सुम ने इंटरनेट की मदद ली और फिर जो हुआ उसने तबस्सुम के बैंक अकाउंट से करीब 60,000 रुपए गायब कर दिए.
तबस्सुम पढ़ी लिखी और समझदार होने के बावजूद क्लिक के फेर में फंस गयीं और अपना नुकसान करा बैठीं. अब उनका सोचिये जिनके हाथों में स्मार्ट फ़ोन तो है, लेकिन सूचना की भारी कमी के कारण जो इसका सही इस्तेमाल नहीं का पाते. यही वो लोग है जो ऑनलाइन धोखाधड़ी के ट्रैप में फंसते हैं. कह सकते हैं अपने फ़ोन के साथ जो रवैया इन लोगों का रहता है ये लोग खुद आ बैल मुझे मार की कहावत को चरितार्थ करते हैं.
खैर इन लोगों की तरह काम हम भी नहीं हैं. हमारे फोन में ऐसी तमाम एप्स होती हैं जिनकी हमें कोई जरूरत नहीं होती. क्या कभी हमने अपने से ये सवाल किया कि आखिर ये एप हमारे फोन को क्या फायदा नुक्सान दे रही हैं. क्या क्या चीजें हैं जिन्हें इन एप्स के जरिये कंज्यूम किया जा रहा है?
बात बहुत सीधी है किसी और पर दोष मढ़ना समस्या का समाधान नहीं है. हमें अगर किसी से सवाल करना है तो वो हम खुद हैं. हमें खुद से पूछना होगा कि अगर हम महंगा या हाई तक मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहे हैं तो क्या हमक वाक़ई इतने काबिल हैं कि उस डिवाइस के साथ इंसाफ करने में सक्षम हैं? यदि इन प्रश्नों का जवाब हां में है तो कोई बात नहीं वरना स्थिति फिर सच में बेहद गंभीर है.
वो तमाम लोग जो इस गफलत में हैं कि इंटरनेट पर सभी चीजें सुरक्षित हैं. किसी को कोई खतरा नहीं है, उन्हें इस बात को भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि इंटरनेट ने सभी तरह के कुंडे और ताले खोल दिए हैं. अब ये निर्भर करता है व्यक्ति की सोच और समझ पर की इंटरनेट को वो कैसे लेता है.
जाते जाते एक बार और जब तकनीक और इंटरनेट अपने को अपग्रेड कर सकते हैं तो फिर इंसान को इस दिशा में काम करने से किसी तरह का कोई गुरेज नहीं करना चाहिए, चूंकि जानकारी ही बचाव है यदि हम सावधान रहे तो चाहे वो ऑनलाइन हो या फिर ऑफलाइन हम किसी भी तरह की धोखधड़ी से खुद को बचा सकते हैं.
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