'ईद का चांद' कृष्ण ने कभी दिखाया ही नहीं!
2015 से कृष्ण की एक पेंटिंग सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. कहा जा रहा है कि 16-17वीं सदी की ये पेंटिंग कृष्ण द्वारा मुस्लिम भक्तों को ईद का चांद दिखाए जाने की है, लेकिन सच तो कुछ और ही है..
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भगवान कृष्ण की अनेक लीलाओं से उनके भक्त वाकिफ हैं. पर कृष्ण की एक लीला देश के लिबरलों ने गढ़ी है. पिछली तीन-चार वर्षों से कृष्ण की एक पेंटिंग शेयर की जा रही है. बताया जा रहा है कि 17वीं-18वीं सदी में बनी से पेंटिंग में कृष्ण अपने साथियों को ईद का चांद दिखा रहे हैं. पेंटिंग में नंद ने मुगलों वाली पोशाक पहनी हुई है और टोली में कुछ मुसलमान भी नजर आ रहे हैं. कृष्ण की इस लीला को हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बताने का सिलसिला इस बार नए मोड़ पर पहुंच गया है.
कला और इतिहास के जानकारों ने इस पेंटिंग पर अपनी सफाई पेश की है, जिसके बाद शायद अब ये पेंटिंग गलत जानकारी के साथ शेयर न हो...
पहले वो तथ्य जो इस पेंटिंग के बारे में सोशल मीडिया पर कहे जा रहे हैं:
- ये सन् 1700 से 1800 के बीच बनाई गई पेंटिंग है.
- कृष्ण अपने साथियों को ईद का चांद दिखा रहे हैं. जिसमें मुगलों वाली पोशाक पहने नंद भी शामिल हैं.
- ये भी कहा जा रहा है कि ये पेंटिंग मुगलों ने बनाई थी. या मुसलमानों द्वारा ही बनाई गई है.
मशहूर कला-इतिहासकार बीएन गोस्वामी का स्पष्टीकरण :
साराभाई फाउंडेशन के मशहूर कला-इतिहासकार बीएन गोस्वामी ने इस पेंटिंग के कुछ तथ्यों पर से पर्दा उठाया है. उनके अनुसार ये पेंटिंग भागवत पुराण के एक दृश्य को दिखाती है. इस तरह की अन्य पेंटिंग टिहरी-गढ़वाल कलेक्शन की हैं, जिन्हें नैनसुख पहाड़ी और मानकु के खानदान में बनाया गया था. वे इस बारे में और क्या बताते हैं, आइए जानते हैं :
क्या तर्क दिए गए हैं इस पेंटिंग को लेकर...
- गोस्वामी कहते हैं कि उन्होंने भागवत पुराण और टिहरी-गढ़वाल शैली की तमाम पेंटिग का अध्ययन किया है, लेकिन ऐसी पेंटिंग कभी नहीं देखी. (ऐसी पेंटिंग मनाकू की पहली पीढ़ी और नैनसुख ने बनाई थीं.)
- इसे ईद से जोड़कर देखने की बात बिलकुल बेतुकी है, जिसमें कहा गया है कि नंद मुगल दरबारी जैसी पोशाक पहने और उन्हीं के जैसी दाढ़ी बढ़ाए खड़े हैं.
- टिहरी-गढ़वाल शैली में भागवत पुराण को लेकर जो पेंटिंग बनाई गईं, उसमें मुस्लिम किरदार का मौजूद होना भी बेमतलब लगता है.
- हालांकि, पेंटिंग को गौर से देखने पर ये दिखाई देता है कि नंद ने जो जामा पहना है, वह हिंदू स्टाइल वाला है. जिसे बाएं बाजू की तरफ बांधा गया है.
ये पेंटिंग भी उसी सीरीज की है. यहां भी नंद को उसी तरह के परिधान में देखा जा सकता है.
- सबसे अव्वल और झूठी बात तो यह है कि इसे राजस्थानी पेंटिंग बताया जा रहा है. जो कि यह है ही नहीं. इस मामले में प्रो. हरबंस मुखिया जैसे स्कॉलर का नाम घसीटा जाना भी अजीब है.
- कृष्ण और बलराम का चंद्रमा की ओर इशारा करना स्कंद पुराण के 28वें अध्याय का चित्रण हो सकता है. जिसमें जिक्र है कि कृष्ण ने नंद को वरुण से बचाया था. कथा में कृष्ण अपनी मायाओं से गोपालकों के समूह का मुग्ध कर रहे हैं.
- गोस्वामी कहते हैं कि उन्हें इस पेंटिंग के बारे में नहीं पता, लेकिन यदि ये कहीं है तो उसमें भागवत पुराण की उस कथा का जिक्र भी होगा. जैसा कि इस सीरीज की बाकी पेंटिंग के साथ है.
कहां से आई यह पेंटिंग, जिससे बवाल मचा हुआ है :
इस्कॉन से जुड़े दिपांकर गुप्ता की 2015 में आई किताब 'कृष्ण के मुस्लिम भक्त' में इस तरह की पेंटिंग का जिक्र है. जिसे कल्पना बताया गया है. इस किताब के बाजार में आने के बाद से ही सोशल मीडिया में यह पेंटिंग वायरल होने लगी. 'इंडिया टुडे' से बात करते हुए दीपांकर पर भी इस बात पर सहमति जताते हैं कि उन्होंने इस पेंटिंग को मौलिक रूप में नहीं देखा है.
दिपांकर देब की किताब 'मुस्लिम डेवोटीज़ ऑफ इंडिया' में जिक्र है कृष्ण और ईद के चांद वाली पेंटिंग का.
आखिर में एक नजर, इस पेंटिंग को लेकर सोशल मीडिया पर मचे बवाल पर...
अब बात सोशल मीडिया की जिसमें कई नेताओं ने जिनमें शशि थरूर भी शामिल हैं इस पेंटिंग को ईद से जोड़ कर शेयर कर रहे हैं. कोई इसे 16वीं सदी का बताता है, कोई इसे 17वीं सदी का लेकिन बीएन गोस्वामी के मुताबिक ये 18वीं सदी की पेंटिंग है. इसी के साथ, ये बहस भी नई नहीं है कि ये पेंटिंग ईद का चांद दिखाते हुए कृष्ण की है. दरअसल, 2017 में भी इसी तरह की बहस शुरू हुई थी जहां ईद के आस-पास इस पेंटिंग को कई लोगों ने शेयर किया था.
2. Facts about this alleged "Krishna showing Eid" painting1) It wasnt painted by Mughal or Muslim artist. It was painted by Nainsukh's Pahari succesoor2) Painting does NOT depict Krishna showing Eid. The image depicts a scene from Bhagavata Purana3) It depicts Krishna-Nanda
— True Indology (@TrueIndology) June 17, 2018
4. Then it was @azmishabana who circulated the painting with a fake claim that Krishna was showing Eid moon pic.twitter.com/hnv5T6FfQF
— True Indology (@TrueIndology) June 17, 2018
5. Many fake claims were made by @_YogendraYadav.1)This painting does NOT depict Krishna showing Eid moon2) It was NOT painted by Ruknuddin3)It was not painted in Bikaner. It is a Pahari painting4) No Muslim men and women in this painting pic.twitter.com/uaCjCrI2lH
— True Indology (@TrueIndology) June 17, 2018
योगेंद्र यादव ने इस पेंटिंग के रचयिता का नाम भी बता दिया. उन्होंने इसका सोर्स नहीं बताया कि ये जानकारी उन्हें कहां से मिली थी.
Thanks @TrueIndology for researched response.I respect BN Goswami's authority, integrity and his contrary reading.My original tweet had cited Navina Jafa, another art historian, who stands by her reading. Will wait for art historians to settle it after locating original folio. https://t.co/q8xAaTWE3j
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) June 17, 2018
लेकिन बाद में उन्हें ये पता चल गया कि आखिर पेंटिंग का असल इतिहास क्या है और ट्वीट कर उन्होंने पूरी बात साफ कर दी.
6. Many false claims were also made by @ShashiTharoor 1)This painting does NOT depict "Eid moon"2)No "Rozedars"3) Not Rajasthan 4) Not 1600s (painting actually belonged to 18th century) pic.twitter.com/NbgMTwhuwH
— True Indology (@TrueIndology) June 17, 2018
शशि थरूर ने इस पेंटिंग को शेयर किया और उन्होंने भी बिना फैक्ट चेक ये बता दिया कि ये पेंटिंग कृष्ण को ईद का चांद दिखाते हुए बनाई गई है.
7. These fake claims were also made by "eminent Historian" Harbans Mukhia and serial offender Rana Safvi pic.twitter.com/aeik0ccN87
— True Indology (@TrueIndology) June 17, 2018
इतिहासकारों ने तक इस पेंटिंग को ईद का चांद दिखाती हुई बताया. इसका पूरा श्रेय दीपांकर देब को जाता है.
8. Worst offender is @ddeb30, the author of book "Muslim devotees of Krishna". He made many fake claims1)This is neither a Muslim nor a Mughal painting2)No "Eid moon"When asked for a source, he simply abused and blocked people. To others, he cited his own book as source pic.twitter.com/ndiQspBBts
— True Indology (@TrueIndology) June 17, 2018
'कृष्ण के मुस्लिम भक्त' नाम की किताब के लेखक इस बात को लेकर अभी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए और ये कहने लगे कि उन्होंने पहले ही इसे पहाड़ी पेंटिंग बताया है. सबसे पहले उन्होंने कृष्ण की इस तस्वीर को कल्पना बताया और फिर बहस भी की. योगेंद्र यादव ने इस बात को भी अपनी ट्वीट के जरिए उजागर किया.
I am sorry. Prof BN Goswami is not just some "fella".He is a global authority on miniature paintings, a scholar without political agenda.I wouldn't disrespect him, even if his reading goes against what I have said, as in this case.Your kind of response destroys civilized debate. https://t.co/NRbPpmsz03
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) June 17, 2018
यकीनन सोशल मीडिया पर एक वैरिफाइड अकाउंट द्वारा की गई ट्वीट हज़ारों लोगों तक पहुंचती है और लोग उसपर यकीन भी करते हैं. यहां एक लेखक दिपांकर देब ने 2015 में किताब लिखी और उसमें ऐसी फेक बात फैलाई कि ईद का चांद दिखाते हुए कृष्ण की ये पेंटिंग है. साल दर साल सोशल मीडिया पर इसी तरह की बातें शेयर होती रहती हैं. सोचने वाली बात ये है कि क्या बिना सवाल किए हम इन बातों को एक बार में मान लेंगे?
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