फेसबुक से ट्विटर तक, सरफ़रोशी की तमन्ना बस एक तमन्ना ही बनकर रह गयी…
आज राम प्रसाद बिस्मिल का जन्मदिन है. आदतन अपना मैंने ट्वीटर और फेसबुक खोला मगर, सोशल मीडिया पर आते ही मैंने जो देखा उसने मुझे अन्दर तक झकझोर के रख दिया.
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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैदेखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है…
जी हां ये बेमिसाल शब्द उस महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के हैं जिनका आज जन्मदिन है. जिन्होंने भारत माता को आज़ाद कराने के लिए हंसते- हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था. बात आज सुबह की है, चूंकि हम सोशल मीडिया पर जीने वाले लोग हैं तो मैंने आदतन अपना ट्वीटर और फेसबुक खोला और ये जानने का प्रयास किया कि 'चलो देखें कि कितने लोगों को इस महान शहीद का जन्मदिन याद रहा.' सोशल मीडिया पर आते ही मैंने जो देखा, उसने मुझे अन्दर तक झकझोर के रख दिया.
बिस्मिल के जन्मदिन पर लोगों का रिएक्शन देखने की शुरुआत मैंने फेसबुक से करी. फेसबुक पर लोग इस बात में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे थे कि आखिर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने महात्मा गांधी को 'चतुर बनिया' क्यों कहा. आखिर क्यों शिवराज सिर्फ कोरी पब्लिसिटी के लिए दशहरा मैदान में अनशन पर डटें हैं. राहुल से लेकर ममता बनर्जी तक और सीरिया से लेके लीबिया तक फेसबुक पर चुहल का दौर चल रहा था. न तो अपनी प्रोफाइल पिक्चर और पोस्ट पर 156 लोगों को टैग करने वाली पिंकी ने ही बिस्मिल के विषय में कुछ लिखा.न ही व्हाट्सऐप पर सोये हुए हिन्दू और मुसलमानों को जगाने वाले राष्ट्रवादियों ने.
फेसबुक पर मैंने बिस्मिल के बारे में ज्यादा कुछ नहीं पढ़ा अतः मैं कुंठित हो गया. मैंने इस उम्मीद के साथ ट्विटर का रुख किया कि चलो वहीं कोई हैश टैग चल रहा होगा जिस पर क्लिक करके मैं बिस्मिल के विषय में ज्यादा से ज्यादा जान पाऊंगा. ट्विटर की हालात और बदतर थी वहां इंडिया वर्सेज साउथ अफ्रीका, सेवागिरी, व्हाट्सऐप, विम्बलडन जैसी चीजें ट्रेंड पर थीं और बिस्मिल यहां से भी लगभग गायब थे.
सोशल मीडिया में अपने बर्थ डे पर कहीं दूर - दूर तक न दिखे बिस्मिल
दोस्तों, कहने को तो हम सब सो-कॉल्ड भारतीय है जो मजहब, जाती, समुदाय के नाम पर अपना खून बहाते हैं, तू हिन्दू मैं मुस्लिम कह कर एग्रेसिव हो जाते हैं फिर शान और मान दिखाने के लिए वास्तविक जीवन में तो नहीं, हां मगर सोशल मीडिया पट मर-कट जाते हैं. कहने को आज हम विकासशील से विकसित तो हो गए हैं मगर जिंदगी जीने का सलीका आज तक हमें नहीं आया. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि आज भी, बड़ी ही आसानी के साथ हमें डिवाइड करके हम पर रूल किया जा सकता है.
आप समझदार हैं, कारण आप खुद जानते हैं हम इंडियन तो हैं मगर भारतीय और भारत मां के लाल नहीं हैं. इसको पढ़ने के बाद शायद आप अपना सिर खुजलाएं. हो सकता है आप में से बहुत से लोग ये भी सोचें कि लेखक सठिया गया है, बेचारा कुंठित मानसिकता वाला व्यक्ति है. लेकिन सच्चाई जरा अलग है, बात जरा गहरी है, आप को शायद समझने में वक़्त लगे.
खैर, आज देश के लाल महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का 120 वां जन्मदिन है. दोस्तों ये वही बिस्मिल थे जिन्होंने बेड़ियों में जकड़ी भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. वो बिस्मिल जिन्होंने अपनी भरी जवानी में भगत सिंह, सुखदेव, अशफाक़ उल्लाह खान के साथ मिलकर अंग्रेजों को धूल चटाई थी. ये वही बिस्मिल थे जिन्होंने काकोरी कांड द्वारा अन्य क्रांतिकारियों की मदद की थी, जिन्हें अंग्रेजों ने 19 दिसंबर को फांसी के तख्ते पर लटका दिया था.
मैंने सोंचा था की आज का मीडिया उनको भी ऐसी ही कवरेज देगा जैसा वो नरेंद्र मोदी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सचिन, सहवाग, अमिताभ बच्चन, सन्नी लियोन, पूनम पांडे को तब देता है जब इन लोगों का बर्थ-डे होता है. मीडिया ने बिस्मिल पर कोई कवरेज नहीं करी है जिसके चलते आज मीडिया का वर्तमान रूप और सौतेला व्यवहार देखकर मै हमेशा की तरह फिर से बड़ा दुखी हुआ हूं.
आपको बताता चलूं की महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ था। बिस्मिल जहां एक तरफ एक महान क्रांतिकारी थे तो वहीं दूसरी तरफ वो एक कुशल कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाभाषी, इतिहासकार व साहित्यकार भी थे, जिन्हें अंग्रेजों ने गोरखपुर जेल में फांसी दे दी थी. बिस्मिल के बारे में जानने के लिए बहुत कुछ है. आप बहुत सी चीजों के लिए इन्टरनेट और गूगल की मदद लेते हैं, हमारा अनुरोध है कि इस विषय पर भी आप गूगल की मदद लीजिये. और जानिये कि आखिर क्यों बिस्मिल या इन जैसे लोग हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं और क्यों हमें इन्हें हर पल याद रखना चाहिए.
बहरहाल, चलिए अब मुद्दे पर आया जाये, मित्रों आज जो देखा उसके बाद अब एक छोटा सा सवाल मुझे परेशान कर रहा है. क्या हमारी देशभक्ति फेसबुक, ट्विटर, मोदी, कोहली, आडवाणी तक ही सीमित है या असल में हम अपने आपको धोखा दे रहे हैं.
साथ ही मेरा सवाल देश की मीडिया से भी है कि आखिर क्यों नहीं वो हमें हमारे इतिहास से परिचित करा रही है. जरा सोचिये आखिर आज क्या गुज़र रही होगी उस परिवार पर (बिस्मिल का परिवार) जब उन्होंने ये देखा होगा कि कैसे लोग इस महान इंसान की कुर्बानी को भूल गए हैं.
अंत में अपनी बात खत्म करते हुए हम यही कहेंगे कि हमारा अस्तित्त्व तब तक ही है जब तक हम अपने इतिहास हो याद रखे हुए हैं. जिस दिन हम अपने इतिहास हो भूले उस दिन सब कुछ नष्ट हो जायगा. आप अपने बच्चों को जितना हो सके इन लोगों से परिचित कराइए. कहीं ऐसा न हो कुछ वर्षों बाद लोग ये कहें कौन भगत सिंह? कौन बिस्मिल? कहां का अशफाक़ उल्लाह खान? मैंने तो इनका नाम तक न सुना.
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