फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम के अंधभक्त मत बनिए सरकार आपके लिए ही नई पालिसी चाहती है
सोशल मीडिया के समर्थन में रहे अधिकांश लोगों को यह तक मालूम नहीं कि आखिर सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफार्म के बीच मसला किस बात का है फिर भी वह सोशल मीडिया की भक्ति में इस कदर चूर हैं कि बिना कुछ जाने बूझे बस समर्थन के नारे ही लगाए जा रहे हैं, अरे भाई ज़रा सा मालूम तो कर लेते कि आखिर टकराव की वजह क्या है नया आईटी नियम क्या है.
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सोशल मीडिया की बहुचर्चित साइट्स फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफार्म के बैन होने की खबर जैसे ही सोशल मीडिया के गलियारे में पहुंची तो सोशल मीडिया पर ही हंगामा खड़ा हो गया. कुछ लोग सोशल मीडिया साइट्स के समर्थन में पोस्ट पर पोस्ट किए जा रहे हैं तो कुछ सोशल मीडिया पर ही सोशल मीडिया को प्रतिबंधित करने को लेकर आवाज उठा रहे हैं. आगे क्या होगा क्या नहीं होगा यह तो समय तय करेगा लेकिन फिलहाल बात उनकी करना बेहतर है जो लोग सोशल साइट्स के इतने दीवाने हैं कि बिना जानकारी जुटाए और सही-गलत तथ्यों की जांच किए बगैर वह सोशल मीडिया के समर्थन में कूद पड़े.
आखिर क्या था पूरा मामला?
दरअसल फरवरी के महीने की 25 तारीख को भारत सरकार ने एक नया आईटी नियम बनाए जाने को लेकर गाइडलाइन जारी की. इस गाइडलाइन में सभी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को कहा गया कि अगर आप भारत में अपनी सर्विस को चलाते हैं तो आपको भारत में ऑफिस तो खोलना ही होगा साथ ही तीन अधिकारी (नोडल आफिसर, रेजिडेंट ग्रीवांस ऑफिसर, चीफ कांप्लियांस आफिसर) की तैनाती करनी होगी. ये अधिकारी कंटेंट के शिकायतों पर नज़र रखेंगे और 15 दिन के भीतर शिकायतों का निवारण करेंगे.
तमाम सोशल मीडिया साइट्स पर बैन तो बहाना है सरकार अपने लिए नयी पालिसी का बदोबस्त कर रही है
हर महीने तमाम कंपनियां मंथली रिपोर्ट जारी करेगी जिसमें शिकायतों की संख्या, शिकायतों के निवारण की जानकारी देगी. साथ ही कंपनियां किसी भी पोस्ट या कंटेंट को हटाए जाने की वजह भी बताएंगी. सभी कंपनियों का पता कंपनी के वेबसाइट और मोबाइल ऐप पर दर्ज रहेगा. इन तमाम नए नियमों को लागू करने के लिए सभी सोशल साइट्स को तीन महीने का समय दिया गया था जिसकी मियाद 25 मई को खत्म हो गई है.
इस नए नियम को अबतक केवल कू ऐप ने माना भी है और लागू भी किया है जबकि बहुचर्चित सोशल साइट्स की ओर से अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि वह क्या करना चाहते हैं. डेडलाइन के खत्म होते होते फेसबुक ने कहा कि वह भारत सरकार के साथ बातचीत कर रही है और नियमों को लागू करने पर विचार कर रही है. इंस्टाग्राम की ओर से कोई बयान नहीं आया है लेकिन इंस्टाग्राम को भी फेसबुक ही चलाता है इसलिए इस बयान को दोनों कंपनियों का सामूहिक बयान माना जा सकता है.
ट्विटर अभी भी अपने हेड ऑफिस के जवाब के इंतज़ार में है. वहीं व्हाट्सऐप अपनी अलग दलील लेकर दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया है. भारत में व्हाट्सएप के 53 करोड़ यूजर हैं, यूट्यूब के 45 करोड़ यूज़र, फेसबुक के 41 करोड़ यूजर, इंस्टाग्राम के 21 करोड़ यूजर, ट्विटर के 2 करोड़ यूजर और कू ऐप के 70 लाख यूजर्स हैं. सरकार सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म को एक जैसी प्रणाली पर काम करने को कह रही है. लेकिन अभी तक कंपनियों का रुख साफ नहीं हो सका है.
अब आपको बिल्कुल आसान तरह से समझाते हैं कि आखिर भारत सरकार क्यों इस तरह की मांग कर रही है और ये कंपनियां क्यों अपनी पॉलिसी पर ही अड़ी हुई हैं. दरअसल जितने भी बाहरी सोशल प्लेटफार्म हैं सब अपनी अपनी पॉलिसी पर कार्य करते हैं. भारत सरकार इन्हें बिचौलिए की मान्यता देती है, इसलिए आप अगर इन कंपनियों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करते हैं तो पहली बात तो कार्रवाई नहीं होगी और होगी भी तो सभी कंपनियों के अपने अपने नियम हैं जिसके अनुसार वह खुद फैसला ले लेते हैं.
अगर आप इन कंपनियों को कोर्ट में घसीटते हैं तो भी कोई भी फायदा नहीं है क्योंकि कोर्ट में ये कंपनियां पार्टी नहीं बनती हैं. आपको अगर इन सोशल साइट्स को लेकर कोई भी शिकायत है तो आपके पास भारत में मौजूद न तो किसी अधिकारी का नंबर या ईमेल सार्वजनिक है न ही कंपनी का कोई नंबर या ईमेल आईडी मौजूद है. आपके पास शिकायत करने का एकमात्र विकल्प यही है कि आप कंपनी के हेड क्वार्टर में उनके ऑफिशियल ईमेल आईडी पर ही ईमेल से शिकायत भेज सकते हैं जिस पर कार्यवाई होगी नहीं होगी या कब होगी कुछ भी अता पता नहीं होता है.
भारत सरकार के द्वारा लागू किए नए नियमों के बाद आप अपनी शिकायतों को भी पहुंचा सकेंगे और कंपनी को उसका निस्तारण भी करना ही होगा, और अगर कंपनी उस शिकायत का निवारण नहीं करती है तो भी कंपनी को बताना होगा कि आखिर क्यों उसकी शिकायत का निस्तारण नहीं किया गया है.
अगर देखा जाए तो भारत सरकार एक तरीके से भारत की सुरक्षा, भारत के कानून और भारतीयों की सुविधा के लिए ही कंपनियों से इस तरह के नए नियम लागू करने का निर्देश दे रही है लेकिन कंपनियां अपने हेडक्वार्टर के निर्देश के मुताबिक ही चलना चाह रही है जिसकी वजह से अबतक दोनों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है.
फिलहाल कंपनी और वक्त की मांग कर रही है इसलिए सरकार उन्हें और वक्त दे सकती है लेकिन अगर कंपनियों ने इसी ज़िद के साथ नए नियम नहीं मानें तो सरकार इनको बैन भी कर सकती है या फिर आपराधिक केस कर सकती है और बिचौलिए की हैसियत को छीन सकती है, फिर सभी कंपनियों को अदालत में पार्टी बनना होगा.
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