140 रुपए की चोरी पकड़ने पुलिस ने करवाया 42 हजार का DNA टेस्ट, और हमारे यहां?
ताइवान में पुलिस की मुस्तैदी का एक ऐसा मामला सामने आया है जिसे जानकर ये समझा नहीं जा सकता कि इसपर तारीफ की जाए या फिर हंसा जाए.
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चोरों का कोई धर्म और ईमान नहीं होता! कम से कम कहा तो यही जाता है. चोरी करने वाला इंसान चोर ही होता है भले ही उसने कितना ही छोटा सामान क्यों न चुराया हो. अगर गुनाहगार को पकड़ने के लिए पुलिस तफ्तीश कर रही है तो वो किसी भी हद तक हो सकती है. शायद यही लगा ताइवान की पुलिस को जहां 140 रुपए की एक ड्रिंक की चोरी के लिए 42 हज़ार का डीएनए टेस्ट करवा लिया गया.
कॉलेज हॉस्टलों या बाहर पीजी में रहने वाले कई लोगों को ये मालूम होगा कि ऐसी जगहों पर कॉमन फ्रिज में रखे सामान की चोरी जरूर हो जाती है. इस तरह की समस्या का सामना करने वाले लोगों को गुस्सा जरूर आता है, लेकिन अक्सर उसपर कुछ हो नहीं पाता. लोग गुस्सा करके और अपने नुकसान का दुख झेलकर जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि हर किसी के साथ ऐसा ही हो.
कुछ ऐसा ही किस्सा था ताइवानी स्टू़डेंट का जिसने अपने साथ रहने वाली 5 लड़कियों का डीएनए टेस्ट करवाया क्योंकि उनमें से किसी एक ने उसका योगर्ट ड्रिंक पी लिया था जो फ्रिज में रखा हुआ था. इस स्टूडेंट का नाम तो जगजाहिर नहीं किया गया है, लेकिन चीनी कल्चर यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाली इस स्टूडेंट की सनक के बारे में अब दुनिया जान चुकी है.
जैसे ही उस लड़की को पता चला कि उसका ड्रिंक फ्रिज से गायब है उसने अपनी रूममेट्स को बुलाया और उनसे इसके बारे में पूछा. जब पूछा गया तो किसी ने भी स्वीकृति नहीं ली और उस लड़की को इतना गुस्सा आया कि उसने डस्टबीन से खाली ड्रिंक की बोतल उठाई और पहुंच गई पुलिस स्टेशन. पुलिस से पहले तो फिंगरप्रिंट्स की जांच करवाने को कहा गया, लेकिन बोतल इतनी गीली हो गई थी कि उनकी जांच संभव नहीं थी. फिर भी उसने हार नहीं मानी और पुलिस वालों को कहा कि इस बोतल का डीएनए टेस्ट करवाया जाए.
Appledaily द्वारा लगाई गई वो तस्वीर जो इस केस के बारे में जानकारी देती है.
यहां तक तो ठीक था, लेकिन पुलिस ने उस स्टूडेंट की बात मान भी ली और उसके साथ-साथ उसके साथ रहने वाली 5 अन्य महिलाओं का भी डीएनए सैंपल लिया और टेस्ट भी किया.
TVBS News और BBC News ने इस खबर की पुष्टी की है और कहा है कि ये वाकई हुआ है. वो ड्रिंक NT$ (न्यू ताइवान डॉलर) 59 की थी जो भारतीय मुद्रा में 140 रुपए होती है और जो टेस्ट किया गया वो एक व्यक्ति का NT$ 3000 यानी भारतीय मुद्रा में करीब 7000 रुपए की थी. यानी कुल मिलाकर 6 लोगों का खर्च 42000 रुपए आया होगा.
और अभी एक पंच बाकी है. ये पैसा न तो उसने दिया जिसका सामान चोरी हुआ था, न ही उसने दिया जिसने चोरी की थी बल्कि ये पैसा दिया पब्लिक ने (टैक्स के तौर पर). ये टैक्स मनी खर्च करके पूरी की गई इन्वेस्टिगेशन थी.
ताइवान के इस मामले में देखने से ही लगता है कि वहां की पुलिस कितनी मुस्तैदी से जुर्म को खत्म करने में लगी हुई है कि एक छोटी बल्कि बेहद छोटी चोरी भी छोटी नहीं है. यकीनन किसी भी इंसान को लगे कि उसके साथ गलत हुआ है तो वो जा सकते हैं पुलिस के पास, लेकिन इस चोरी के लिए पुलिस की तरफ से जो किया गया वो एक तरफ तो तारीफ के काबिल है और दूसरी तरफ देखा जाए तो वो टैक्स देने वालों के पैसे को बर्बाद करने का एक तरीका भी हो सकता है, लेकिन हम क्यों उसे जज करें क्योंकि उन्होंने असल में एक चोरी का पर्दाफाश किया है.
इस मामले में appledaily.com (ताइवान की न्यूज साइट) ने कई स्थानीय लोगों का स्टेटमेंट भी लिया. इसमें मिस्टर लियू (एक स्थानीय नागरिक) का कहना है कि अगर बोतल चोरी हुई थी और लड़की नहीं मान रही थी तो उसे एक नई बोतल खरीद कर दे देते या फिर 1 दर्जन बोतल दे देते, लेकिन इस तरह टैक्स पेयर्स के पैसे की बर्बादी कहां तक सही है?
मिस्टर लियू जिन्होंने ये स्टेटमेंट दिया.
ये तो था मामला ताइवान की चोरी के केस का जहां असल में पुलिस की ये हरकत साबित करती है कि चाहें जो भी हो वो किसी भी गुनहगार को बचने नहीं देंगे.
पर अगर यहीं बात की जाए हमारे देश की तो यहां तो अभी भी पुलिस को इस बात की स्पष्टता नहीं है कि डीएनए टेस्ट का इस्तेमाल कितने कामों के लिए किया जा सकता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 6 में से तीन फॉरेंसिक लैब्स में 2017 दिसंबर तक सिर्फ सेक्शुअल हैरेस्मेंट के डीएनए टेस्ट के 12,072 केस पेंडिंग थे. यानी इसमें मर्डर, चोरी आदि कुछ तो शामिल ही नहीं है और सिर्फ तीन फॉरेंसिक लैब्स की ये रिपोर्ट है.
अब खुद ही सोच लीजिए कि हमारे देश में क्राइम सॉल्विंग रेट क्या है और इस तरह की खबर असल में कितनी बड़ी साबित हो सकती है. एक ऐसा देश है जहां दही की चोरी पर भी डीएनए टेस्ट हो जाता है और एक हमारा देश है जहां बड़े से बड़े जुर्म के लिए भी कुछ नहीं होता और किसी को कोई ख्याल नहीं आता. पुलिस अगर मुस्तैदी से अपना काम करने की कोशिश भी करती है तो भी उसे करने नहीं दिया जाता क्योंकि हम तो एक ऐसा देश हैं जहां कोई भी जुर्म हो जाए उसके आरोपियों को सजा मिलने के लिए कोई कैंपेन नहीं की जाती और टैक्स हिंदुस्तानियों के टैक्स का पैसा तो सिर्फ विरोध, दंगे और मूर्तियों में जाता है.
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