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Updated: 17 जुलाई, 2016 05:30 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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आंतकवाद और सिरफरेपन का शिकार सबसे ज्यादा मासूमों को ही होना पड़ता है. ये बात शुक्रवार को फ्रांस के नीस में हुए एक हमले से फिर साबित हुई है. एक ट्रक द्वारा फ्रेंच नेशनल डे का उत्सव मनाने में शरीक हुए लोगों को कुचल देने से 7 बच्चों समेत 84 लोगों की मौत हो गई थी.

अब इस घटना से जुड़ी एक वायरल तस्वीर पूरी दुनिया के लोगों को भावुक कर रही है. इस तस्वीर में इस हमले का शिकार हुए एक बच्चे के प्लास्टिक से ढंके शव के पास एक गुड़िया पड़ी हुई है. उस गुड़िया को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे वह उस मासूम बच्चे की मौत के गम में आसमान में शून्य को निहार रही है.

नीस हमले से जुड़ी इस तस्वीर ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. इस तस्वीर पर पूरी दुनिया के लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और मासूमों की जान से खेलने के लिए आतंकवादियों की कड़ी आलोचना की है. ट्विटर पर इस घटना में मारे गए लोगों के प्रति अपनी संवेदना जताने वाले कई ट्वीट किए गए. लोगों ने लिखा है कि एक मासूम की मौत की इस तस्वीर ने हमें हिलाकर रख दिया, आखिर मासूमों की जिंदगियों से खेलना कब बंद होगा?

आतंक का खेल कहीं भी हो, सजा मासूमों को ही मिलती है!

याद कीजिए पिछले साल मीडिया में आई सीरिया के एक 3 साल के बच्चे की उस तस्वीर को जिसने सबकी आंखों में आंसू ला दिया था. गृह युद्ध और आतंकी संगठन ISIS की आतंकी कार्रवाइयों से जूझ रहे इस देश में वह 3 साल का बच्चा एक बम विस्फोट में बुरी तरह जख्मी हो गया था.

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उस घायल बच्चे ने अस्पताल में दम तोड़ने से पहले जो कहा था उसे सुनकर आज भी आपका दिल रो पड़ेगा. उस बच्चे ने डॉक्टरों से कहा, 'मैं भगवान से तुम सबकी शिकायत करूंगा, मैं उसे सबकुछ बताऊंगा.' 

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सीरिया में पिछले वर्ष एक बम विस्फोट की वजह से दम तड़ने वाले इस 3 साल के बच्चे की तस्वीर वायरल हुई थी

लेकिन पता नहीं इस बच्चे की बात भगवान ने सुनी या नहीं, क्योंकि अगर सुनते तो शुक्रवार को फ्रांस के शहर नीस में हुए हमले में 7 बच्चों समेत 84 लोगों की मौत नहीं होती. फ्रांस की इस तस्वीर ने पाकिस्तान के पेशावर में 2014 में एक स्कूल में हुए आतंकी हमले में 132 बच्चों की मौत के बाद वायरल हुई एक तस्वीर की याद दिला दी.

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उस तस्वीर में खून से सने एक बच्चे के पैर के जूते की तस्वीर ने लोगों की पलकों को भिगो दिया था. उस हमले के बारे में बॉलीवुड अभिनेता परेश रावल ने ट्वीट किया था, 'सबसे हल्का ताबूत सबसे भारी होता है.'

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पाकिस्तान के पेशावर के एक स्कूल में हुए आतंकी हमले में 132 बच्चों की मौत हो गई थी

पिछले साल ही सीरिया से यूरोप में शरण लेने के लिए जाते हुए डेढ़ साल के एक सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी की डूबने से मौत हो गई थी. लाल रंग की टीशर्ट और नीले रंग की पैंट पहने आयलान की समुद्र के किनारे रेत में औंधे मुंह लेटी लाश की तस्वीर पूरी दुनिया में बहस का मुद्दा बन गई थी. आखिर क्यों दुनिया भर की समस्याओं का सामना आयलान जैसे मासूमों को भुगतना पड़ता है, जिनका कोई कसूर भी नहीं होता है.

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पिछले साल इस सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी की डूबने से हुई मौत ने शरणार्थियों की तकलीफों को पूरी दुनिया के सामने उजागर किया था

वहशीपन के अलावा कुछ नहीं है मासूमों की हत्याएं!

निर्दोष लोगों की हत्या चाहे आतंकवाद के नाम पर हो या जेहाद या किसी भी पागलपन की वजह से निंदनीय हैं. ये हैवानियत तब तो और भी असहनीय हो जाती है जब इसका शिकार बच्चे होते हैं. दुनिया का कोई धर्म, कानून, जेहाद या कोई भी ऐसी विचारधारा जो बच्चों की हत्या करे वह वहशीपन के अलावा कुछ नहीं है.

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ऐसे लोग किसी धर्म और जेहाद के नाम पर नहीं लड़ रहे होते हैं बल्कि वह मानवता के दुश्मन हैं जो धर्म के नाम पर इस धरती पर मासूमों की हत्या से अपने हाथ रंगने वाले वहशी दरिंदे हैं. दुनिया में जो भी विचारधारा और धर्म मासूमों की हत्या को जिस भी वजह से जायज ठहराये और ऐसी सोच वाले इंसानों को विकसित करे, उस धर्म और विचारधारा का समूल विनाश किया जाना चाहिए.

शायद सीरिया का वह मासूम बच्चा, पेशावर के स्कूल में मार दिए गए वे बच्चे, पानी में डूबा आयलान कुर्दी और फ्रांस में आतंकवाद का शिकार बने ये मासूम बच्चे जब ईश्वर से इस बेरहम हो चुकी दुनिया की शिकायत करेंगे तभी इन कातिलों को सजा मिलेगी और इन मासूमों के साथ ऐसी निर्ममता बंद होगी!

लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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