लड़की से ज्यादती की बात सुनकर हेल्पलाइन वालों को हंसी क्यों आती है?
मुंबई की एक लड़की की फेसबुक पोस्ट ने मुंबई लोकल की वो कहानी बयां की जिसे सुनकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं. और उसपर वुमन हेल्पलाइन का रवैया सच में हैरान करने वाला है.
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मुंबई के बारे में एक बात जो मुझे पसंद थी, वो ये कि, क्योंकि ये शहर कभी सोता नहीं, तो लड़कियों के लिए बाकी शहरों से ज्यादा सुरक्षित है. लड़कियां रात में भी अकेले सफर करती हैं तो डरती नहीं. पर मुंबई की ही एक लड़की की फेकबुक पोस्ट मुंबई लोकल की वो कहानी बयां कर रही है, जिसे सुनकर वुमन हेल्पलाइन जैसी बातों पर विश्वास करने का मन नहीं करता.
पहले इस लड़की की कहानी सुन लीजिए-
22 साल की पूजा नायर दोपहर को मुंबई की लोकल से सफर कर रही थीं. वो करीब 6 महिलाओं के साथ लेडीज़ कंपार्टमेंट में बैठी थीं. लेडीज़ कंपार्टमेंट को बाकी डब्बों से अलग रखने के लिए बीच में रेलिंग लगाई हुई थी. पूजा के साथ ही एक लड़की बैठी हुई थी. दोनों मोबाइल पर गाने सुन रही थीं. तभी उन्होंने देखा कि दूसरे कंपार्टमेंट में बैठा एक आदमी उनकी सहयात्री के लिए हाथ हिला रहा था. वो रेलिंग के दूसरी तरफ था लेकिन उस लड़की के जितना करीब आ सकता था आ गया. वो लड़की से कुछ बोल भी रहा था. पूजा नायर ने अपने मोबाइल का साउंड धीमा किया और कान से इयरफोन निकालकर सुना तो पाया कि वो आदमी उस लड़की को 'मादर**' बुला रहा था, और 30 सेकंड में करीब 6 बार उसने यह गाली दी.
पूजा ने उसे देखा और देखकर नजरें नीची कर लीं. वो शख्स हैंडिकैप सेक्शन में बैठा था, तो उन्हें लगा कि मानसिक रूप से अक्षम होगा, इसलिए उसे नजरंदाज कर दिया.
पूजा ने उस शख्स की तस्वीर भी ली
दोबारा उनकी नजरें मिलीं, और अब वो शख्स पूजा के करीब आ गया. और अपनी तरफ से हाथ इस तरफ निकाल लिए. ऐसा लग रहा था जैसे वो अक्सर ऐसा करता रहा होगा. अब वो पूजा को भी वही गाली देने लगा था, करीब 10 बार उसने उसे भी गाली दी. पर वो डरी नहीं और पलटकर उसे घूरने लगीं, ये सोचकर कि वो गाली देना बंद कर देगा. लेकिन वो आदमी तो ढीठ निकला, अब उसने हद पार कर दी थी, उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली, अपना लिंग बाहर निकाला और उसे देखकर मास्टरबेट करने लगा.
पूजा ने ये सब कई बार देखा था, इसलिए वो शांत रही, और उन्होंने अपनी सहयात्रियों से महिला हेल्पलाइन पर फोन कर इस घटना की रिपोर्ट करने के लिए मदद मांगी.
लेकिन महिला हैल्पलाइन से मिली प्रतिक्रिया ज्यादा हैरान करने वाली थी.
पूजा ने फोन पर सारी बात बताई कि ट्रेन कांदिवली पहुंचने वाली है. कंपार्टमेंट का नंबर, समय, और जो कुछ हुआ वो सब. ये भी बताया कि वो शख्स उन्हें क्या कह रहा था और क्या कर रहा था. इसपर हेल्पलाइन वाला व्यक्ति हंसने लगा. उसे शायद इसमें कोई जोक नजर आया होगा. पूजा ने उनसे पूछा कि क्या वो कांदीवली स्टेशन से इस शख्स को पकड़ेंगे, तो हेल्पलाइन वाले शख्स ने फोन ही काट दिया.
कांदिवली आने पर वो शख्स अपने डब्बे से उतरा और महिला कोच की तरफ आने लगा. कोच में मौजूद महिलाओं ने शोर मचाया तो वो रुक गया. पूजा खड़ी हुईं और दरवाजे की तरफ पहुंचीं. उस शख्स ने उनसे कहा कि वो उनका रेप कर देगा. पूजा ने कहा 'कर'. (इसलिए क्योंकि वो ऐसा करने वाला नहीं था क्योंकि समय और जगह उसका साथ नहीं देते)
आखिर में पूजा लिखती हैं कि एक बार उन्होंने सुसाइड हेल्पलाइन पर भी फोन लगाया था, पर वो भी नहीं उठी थी.'
हेल्पलाइन्स भरोसे के लायक नहीं
पूजा की पोस्ट को पढ़कर लड़कियों ने अपने साथ हुई इस तरह की घटनाओं का जिक्र भी किया और साथ ही ये सवाल प्राथमिकता से उठाया कि ऐसी हेल्पलाइन्स का औचित्य ही क्या जब वो मामले की गंभीरता को ही न समझें.
अपनी सुरक्षा अपने ही हाथ
पूजा के साथ हुई इस घटना को सुनने के बाद वुमन हेल्पलाइन की जो सच्चाई सामने आई, वो महिलाओं को हैरान कम, डराती ज्यादा है. क्योंकि आज हर किसी के पास मोबाइल है, हर लड़की जो अकेले सफर करती है, सुरक्षा के नाम पर उसके पास कम से कम एक चीज तो होती ही है, वो है वुमन हेल्पलाइन नंबर. लेकिन ये हकीकत है कि जरूरत पड़ने पर ये हेल्पलाइन्स कभी काम नहीं आतीं. कई बार तो नंबर डायल करने पर कहा जाता है कि नंबर गलत है, कई बार फोन उठता नहीं, और कभी फोन उठ भी जाए तो आपकी बातों को गैर जरूरी समझा जाता है (जैसा कि पूजा के साथ हुआ). और कार्रवाई तक नहीं होती.
अरे, जब लोकल ट्रेन जैसी जगहों पर पुलिस की मौजूदगी के बावजूद भी दिन के उजाले में भी इस तरह की घटनाएं हों, तो फिर इन हेल्पलाइन्स के बारे में क्या ही कहना जिनका वजूद महज फोन नंबर पर टिका होता है. कहना गलत नहीं होगा कि महज औपचारिकताएं निभाने के लिए जो काम किए जाते हैं उनमें वुमन हेल्पलाइन भी बस एक नाम है. यकीन न हो तो कभी भी आजमा कर देख लीजिएगा, अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी आपको खुद ही निभानी होगी इसलिए इन हेल्पलाइन्स के भरोसे बैठना बेमानी है.
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