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Updated: 27 सितम्बर, 2021 02:13 PM
अनु रॉय
अनु रॉय
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लीजिये एक बार फिर वही हुआ. 15 साल की लड़की को फोन मिला था पढ़ाई के लिए, लेकिन उसने उस पर सोशल मीडिया अकाउंट भी बना लिया. वह इस बात से अंजान कि इसी सोशल मीडिया पर दोस्ती की आड़ में लड़कियों को फंसाने वाले गिद्धों का जमघट रहता है. जो 'प्यार' का झांसा देकर शिकार की तलाश में बैठे होते हैं. वो लड़की फंस गई. इसी 'प्यार' में हद पार हुई. उसे पता है नहीं चला, सेक्स करते हुए उसका वीडियो बना लिया गया. और फिर उसी वीडियो को वायरल कर देने की धमकी देकर 32 और लोगों ने 8 महीने तक उसे अपनी हैवानियत का शिकार बनाया. आप पूछेंगे कि इस दौरान उस लड़की के माता-पिता कहां थे? तो आइए इस पर बात कर लेते हैं.

इस मामले में जितनी ग़लती उन बलात्कारियों की है उससे कहीं ज़्यादा ग़लत उस लड़की के मां-बाप या गार्जियन हैं. उनको कैसे पता नहीं चल पाया कि 8 महीने तक उनकी बेटी का बलात्कार हो रहा है. इस लॉक डाउन में बेटी क्या बोल कर घर से बाहर निकला करती रही होगी? क्यों एक बार भी बेटी के साथ उस जगह पर जाने की नहीं सूझी जिस जगह का नाम ले कर बेटी घर से निकला करती थी?

Maharashtra, Society, Thane, Mobile, Porn, Video, Rape, Gangrapeमहाराष्ट् के ठाणे में जो हुआ है वो घिनौना तो है ही पेरेंटिंग पर भी सवाल खड़े करता है

भारत में लोगों को सिर्फ़ बच्चा इसलिए पैदा करना होता है कि उनकी शादी हो गयी है. सेक्स करने का कोई बायप्रोडक्ट नहीं है बच्चा. सुनने में कड़वा लगेगा मगर पैरेंटिंग का P भी नहीं पता होता है ऐसे 'मां-बाप' को. स्कूल में नाम लिखवा दिया, छुट्टी हुई. फ़ोन दे दिया, छुट्टी हुई. खाना-कपड़ा दे रहे हैं और क्या चाहिए बच्चों को. कहने में यही आता है कि निभा तो रहे हैं जिम्मेदारी.

काश, काश कि समझ पाते बच्चों को सबसे ज़्यादा जिस चीज़ की दरकार होती है वो है आपके वक़्त की. आप न तो उनको टाइम देते हो, न आपको पता चलता है कि उनकी लाइफ़ में क्या हो रहा है. फिर एक दिन उठ कर आते हो और इन पर पाबंदी लगा देते हो या इतनी आज़ादी दे देते हो कि बच्चा बर्बाद हो जाता है. आप मां-बाप हैं. शेम ऑन यू!

ऊपर जिस घटना का जिक्र किया है, वो मुंबई के ठाणे में हुई है. Indian Express के पहले पेज पर ये ख़बर आयी है. 8 महीने तक 33 लोगों ने बच्ची का रेप किया. 22 लोग पुलिस की हिरासत में हैं लेकिन उससे क्या? लड़की जिस ट्रॉमा से गुज़री है क्या वो अब कभी पहले जैसी हो पाएगी? ग़लती लड़की की है या माँ-बाप की या उन रेपिस्‍टों की?

क्या हम नहीं जानते कि हमारा समाज कैसा है? इसमें कैसे लोग रहते हैं? सोशल मीडिया पर मिलने वाले महबूब कैसे होते हैं? बेटी को फ़ोन देते वक़्त मां-बाप क्यों नहीं ये चीज़ें बताते हैं बेटियों को, बच्चों को? मैं जानती हूं कि मेरी इन बातों को समाज का एक वर्ग विक्टिम ब्लेमिंग-शेमिंग कहेगा. ये वही तबका है जो बलात्‍कार के बाद मार दी गई लड़की की याद में कैंडल जलाने आता है, और बाद में जब बलात्‍कारी को मौत की सजा होती है तो उस पर रहम किए जाने की भी दलील देता है.

ऐसे कुत्सित दिमाग वाले छद्म बुद्धिजीवियों से बचकर रहना ही अच्छा है. अपनी बेटियों को समाज की क्रूर सच्चाई से अवगत कराइये. उसे बिंदास रहने के साथ, सतर्क रहना भी सिखाइये. फोन थमाने से पहले उसे सोशल मीडिया की गंदगी से अवगत कराइये. ये उसको डराने के लिए नहीं, सावधान करने के लिए कह रही हूं.

बेटियों की सुरक्षा को लेकर मैं कोई एकेडमिक बात नहीं करना चाहती. क्योंकि, जिस लड़की के साथ हादसा होता है, उसका पहला दर्द उसे ही महसूस होता है. मां-बाप सिर्फ तड़पते हैं, अपनी गलती स्वीकार नहीं करते. और बाकी दुनिया तो संवेदना के नाम पर मोमबत्ती वाली रस्मअदायगी करती है.

हमारी बेटियां मोमबत्ती जलाकर याद किये जाने के लिए नहीं हैं.

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लेखक

अनु रॉय अनु रॉय @anu.roy.31

लेखक स्वतंत्र टिप्‍पणीकार हैं, और महिला-बाल अधिकारों के लिए काम करती हैं.

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