एक बूढ़े की हिम्मत और सरकार की नाकामी का गवाह है ये कुआं
छतरपुर के 70 वर्षीय बुजुर्ग ने परिवार और गांववालों को पानी की किल्लत से बचाने के लिए दो साल में एक कुआं खोदा, जो मदद नहीं मिलने की वजह से धसकने लगा, दोष किसका..उसकी मेहनत का या सरकारी की अनदेखी का?
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पत्नी के पहाड़ से फिसलकर गिर जाने के बाद बिहार के दशरथ मांझी ने सालों की मेहनत से पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बना दिया था. वो कहानी तो मिसाल थी ही, लेकिन ऐसी मिसालें देश में और भी हैं.
इरादों के पक्के मांझी की तरह ही हैं छतरपुर के 70 वर्षीय बुजुर्ग सीताराम राजपूत. जिन्होंने अपने परिवार और गांववालों को पानी की किल्लत से बचाने के लिए नामुमकिन को भी मुमकिन कर दिया. हदुआ गांव के रहने वाले साीताराम ने उम्र के इस पड़ाव पर भी अकेले ही कुआं खोद दिया. छतरपुर बुंदेलखंड का सूखा प्रभावित जिला है और अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस इलाके में पानी की समस्या कितनी होगी जहां के लोग पानी की कमी की वजह से पलायन कर रहे हैं.
बिना किसी इंसान की मदद के इस कुएं को खोदने में दो साल का वक्त लग गया
सीताराम अविवाहित हैं और अपने भाई के साथ रहते हैं. इनके पास करीब 20 एकड़ जमीन है, लेकिन जहां पीने का पानी भी नसीब न हो वहां खेती के लिए पानी का इंतजाम करना बड़ी समस्या थी. लिहाजा सीताराम ने 2015 में कुआं खोदने की शुरुआत की और दिनरात मेहनत कर 2017 में कुएं की खुदाई का काम पूरा भी कर लिया. 33 फीट खोदने के बाद पानी भी आ गया, लेकिन गरीब की खुशी पलभर की. मेहनत रंग तो लाई लेकिन कुआं पक्का नहीं किया जा सका. पिछली बरसात में कुएं की मिट्टी धसकने लगी और साताराम की पूरी मेहन पर मिट्टी फिर गई. सीताराम मदद की आस लगाए हुए हैं और कहते हैं कि अगर सरकार मदद करे तो वो फिर से कुआं खोद सकते हैं.
अकेले कुएं को खोदते भी और बाहर मिट्टी भी खुद ही डालते थे सीताराम
इस तरह की मिसालों की हमारे देश में कमी नहीं है. कुछ समय पहले वाशिम जिले के एक गांव में जब ऊंची जाति के लोगों ने एक दलित महिला को अपने कुएं से पानी देने से मना कर दिया तो उसके पति ने भी लगातार 40 दिन मेहनत कर एक कुआं खोद डाला था.
हमें आश्चर्य होता है ये देखकर कि एक 70 साल का बुजुर्ग जिसका बूढ़ा शरीर भी अब साथ देने की स्थिति में नहीं है, वो पानी के लिए खुद कुंआ खोदता है. एक शख्स भेदभाव के चलते अपमानित होने पर कुआं खोद डालता है. हम उनके जज्बे को सलाम करते हैं, उनके हौसलों की जितनी तारीफ की जाए कम है. लेकिन ये सभी उदाहरण किसी एक शख्स के जीवन की उपलब्धि तो हो सकते हैं लेकिन सरकार की सिर्फ नाकामी ही दिखाते हैं.
अपनी मेहनत को जाया होते देखते सीताराम, लेकिन दोबारा कुआं खोदने की हिम्मत अब भी बाकी है
सरकार जरूरतमंद लोगों के लिए बहुत सी योजनाएं चलाती है. खासकर कुएं खोदने के लिए कपिल धारा योजना चलाई जाती है, जिसके तहत सिंचाई के लिए कुएं खोदने के लिए किसानों को आर्थिक मदद के रूप में 1.8 लाख रुपए दिए जाते हैं.
लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस जनपद पंचायत के सीईओ का कहना है कि 'मुझे नहीं पता कि इस किसान ने कुएं के लिए कपिलधारा योजना के लिए आवेदन किया है ये नहीं. इसके लिए सरकार 1.8 लाख रुपए की मदद करती है. लेकिन ऐसी स्थिति में कोई योजना नहीं है जिसके तहत उन लोगों को मदद मिल सके जिन्होंने अपने कुएं खुद खोद लिए हैं'
MP: 70-yr-old Sitaram Rajput from Hadua village in Chhatarpur, is single handedly digging out a well to help solve water crisis in village, which the region has been facing since last 2 & a half years, says, 'No one is helping, neither the govt nor people of the village'. pic.twitter.com/u5dadJYrAq
— ANI (@ANI) May 24, 2018
अब बताइए, इस लिहाज से तो इस बूढ़े आदमी की मेहनत हमेशा खराब ही होगी. दो साल तक अपना खून और पसीना बहाकर जो शख्स कुआं खोदने में कामयाब हो गया, उसे दो सालों में किसी ने ऐसी किसी भी योजना के बारे में नहीं बताया. सरकार योजनाओं के बारे में बताती भी है तो वो जरूरतमंदों तक पहुंच नहीं पाती. इस बीच किसी सरकारी नुमाइंदे के कान में अगर ऐसी कोई बात पड़ी भी होगी तो भला उसे क्या फर्क पड़ने वाला है, सरकारी काम तो सरकारी तरह से ही होता है. और अब वो गरीब जब कुआं खोद चुका तो उसकी मेहनत साल भर से खराब हो रही है, वो फिर उस कुएं को खोद रहा है लेकिन अब सरकार उसे कोई मदद नहीं दे रही क्योंकि उसने कपिलधारा योजना के तहत आवेदन नहीं किया था.
कहते हैं कि सरकार या कोई भी व्यक्ति मदद करे दो दोबारा कुआं खोद सकता हूं
सरकार योजनाएं चला रही है, अच्छा है, लेकिन अगर कोई जरूरतमंद किसी कारणवश इन योजनाओं के बारे में नहीं जानता (जो भारत में होता ही है) तो भी ये सरकार की ही जिम्मेदारी है कि वो वहां तक अपनी बात पहुंचाए और और ऐसे हिम्मती लोगों की मेहनत जाया न होने दे.
अब ये खबर मीडिया में है, जल्द सरकारी कानों में भी पड़ेगी और तब उम्मीद है कि वो इस कुएं को पक्का कराकर इस वृद्ध की मेहनत को सफल कर पाएं. आखिर सरकार पर भी दबाब होगा. लेकिन आज भारत में कितने ही लोग हैं जो वास्तव में इन योजनाओं के हकदार हैं, लेकिन सरकार के ढ़ीले रवैये की वजह से इनका लाभ जनता तक नहीं पहुंत पाता. सरकार को चाहिए कि अब काम सुस्त तरह से न करते हुए स्मार्टली किए जाएं. नहीं तो मेहनतकश लोगों की तो भारत में कमी है नहीं, ऐसे कुएं खुदते रहेंगे और लोग सरकार की नाकामियां गिनाते रहेंगे.
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