ग्रीन कार्ड वेटिंग लिस्ट में 75 फीसदी भारतीयों का होना राष्ट्रवाद के साथ धोखा है
अमेरिकी नागरिकता के लिए 75 प्रतिशत भारतीय लोगों का आवेदन देखकर ये कहना गलत नहीं है कि कहीं न कहीं ये राष्ट्रवाद जैसी बातों के मुंह पर करारा तमाचा है.
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एक ऐसे वक़्त में जब राष्ट्रवाद दिखाने की चीज हो गया है. हमें निजी जीवन से लेकर फेसबुक और ट्विटर पर ऐसे तमाम लोग दिखते हैं जिनकी अगर बातें सुनीं जाएं, तो एक पल के लिए लगेगा कि इनसे बड़ा राष्ट्रवादी कोई हो नहीं सकता. ये लोग किसी अन्य देशभक्त की तरह भारत को विश्वगुरु बनते हुए देखना चाहते हैं. इनका मानना है कि आज भारत के पास ऐसा बहुत कुछ है जिसके दम पर दुनिया का कोई भी व्यक्ति हमारे आगे झुक जाएगा.
प्रायः यही देखा गया है कि ऐसे लोगों से हुई बातों का निचोड़ यही होता है कि ये किसी भी सूरत में अपना देश छोड़कर कहीं और जाना नहीं चाहते. ऐसे लोगों के तर्क इतने प्रभावी होते हैं कि एक बार इनकी बातों पर यकीन हो जाता है. मगर ये यकीन तब धुंधला पड़ जाता है, जब वहां सात समुंदर पार से एक रिपोर्ट आती है कि अमेरिका का स्थाई निवासी बनने के लिए यानी ग्रीन कार्ड हासिल करने के लिए जितने लोगों ने आवेदन दे रखा है, उनमें से तीन-चौथाई हाई स्किल्ड पेशवर भारतीय हैं.
ग्रीन कार्ड के लिए भारतीयों का इस तरफ आवेदन अपने आप में कई बातें कह रहा है
जी हां सही सुन रहे हैं आप. अमेरिकी नागरिकता व आव्रजन सेवाओं (यूएससीआईएस) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों पर अगर गौर करें तो मिल रहा है कि, मई 2018 तक रोजगार आधारित प्राथमिकता श्रेणी के तहत 395,025 विदेशियों ने अमेरिका में ग्रीन कार्ड पाने के लिए आवेदन किया था. और जो बात सबसे ज्यादा हैरत में डालने वाली है वो ये कि इनमें से 306,601 लोग भारतीय थे.
भारत के बाद इस लिस्ट में चीन के नागरिक दूसरे नंबर पर हैं तक़रीबन 67,031 चीनी नागरिक ग्रीन कार्ड पाने का इंतजार कर रहे हैं. अब बात अगर अन्य देशों की हो तो बमुश्किल 10,000 ऐसे हैं जो इन दो मुल्कों के अलावा किसी अन्य मुल्क के हैं और ग्रीन कार्ड पाने के इच्छुक हैं. बात अगर अन्य देशों की हो तो अन्य देशों में अल सल्वाडोर के 7252, ग्वाटेमाला के 6,027, होंडुरास के 5,402, फिलीपींस के 1,491, मैक्सिको के 700 और वियतनाम के 521 लोगों ने ग्रीन कार्ड अप्लाई किया है.
आपको बताते चलें कि, अमेरिका के वर्तमान कानून के अंतर्गत एक वित्त वर्ष में किसी भी देश के सात फीसद से अधिक नागरिकों को ग्रीन कार्ड नहीं दिया जा सकता है. इसलिए भारतीयों को अमेरिका का स्थाई निवासी बनने के लिए लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ रही है. ध्यान रहे कि आज अमेरिका में ग्रीन कार्ड प्राप्त करना मुश्किलों भरा काम है और स्थाई निवास में सात प्रतिशत के कोटे का सबसे बुरा असर भारतीय-अमेरिकियों पर पड़ा है. ज्ञात हो कि अमेरिका आने वाले भारतीय हाइली स्किल्ड होते हैं और मुख्यत: एच-1 बी कार्य वीजा पर अमेरिका आते हैं.
आज अधिकांश भारतीयों का सपना है कि वो अपना जीवन अमेरिका में बिताए
गौरतलब है कि ग्रीन कार्ड या परमानेंट रेजिडेंट अमेरिकी सिटीजनशिप मिलने की ओर पहला कदम होता है. ग्रीन कार्ड प्राप्त कर लेने के बाद कोई भी व्यक्ति अमेरिका में परमानेंट सिटिजन बनकर रह सकता है. ग्रीन कार्ड की सबसे दिलचस्प बात ये है कि ग्रीन कार्ड होल्डर व्यक्ति कानूनी रूप से अमेरिका में रह सकता है और काम कर सकता है.
बहरहाल, जिस तरह से भारतीयों में अमेरिका जाने की होड़ है. कहना गलत नहीं है कि, ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि ज्यादा पढ़े लिखे या "हाइली स्किल्ड" लोग भी इस बात से सहमत हैं कि यहां उनकी कोई जगह नहीं है. न तो उन्हें यहां सही मेहनताना मिलेगा, न ही यहां पर उनके टैलेंट की कद्र होगी. ऐसे लोग इसके लिए सबसे बड़ा दोषी अपनी सरकार को मानते हैं जो दावे तो तमाम तरह के कर रही है मगर जब बात नौकरी और अच्छा पैकेज देने की आती है तो वो इस मामले में असमर्थ दिखाई पड़ती है.
अंत में हम ये कहकर अपनी बात को विराम देंगे कि फेसबुक या ट्विटर पर दिखाया जा रहा राष्ट्रवाद अपनी जगह है मगर जब बात व्यक्ति को रोटी की आती है तो वो 7 समुंदर पार अमेरिका के लिए इन्तजार कर रहा है और यही सोच कर जीवन यापन कर रहा है कि आज नहीं तो कल मेरा नंबर आ ही जाएगा.
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