बहुदलीय लोकतंत्र के करिश्माई नेता अटलजी
अटल बिहारी वाजपेयी के पदचिन्हों का अनुसरण विदेश के कई नेता करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पदग्रहण समारोह में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने शिरकत की तो उन्होंने अटलजी से आशीर्वाद लेना नहीं भूला.
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अपडेट: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस वक्त एम्स में भर्ती हैं और उनकी हालत काफी गंभीर बनी हुई है. उन्हें एम्स में फुल लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया है. पूरा देश उनकी सलामती के लिए प्रार्थनाएं कर रहा है. प्रधानमंत्री मोदी समेत कई वरिष्ठ नेता वाजपेयी जी से अस्पताल जाकर मिल चुके हैं.
'बाधाएं आती हैं आएं, घिरे प्रलय की ओर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते, आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा'
उक्त अनमोल विचार देश के सर्वाधिक प्रिय प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपाई जी के हैं. उनके इन वचनों में विखंडता की वह चिंताएं व्याप्त हैं जो देश के लिए विभाजनकारी सोच को बढ़ावा देती हैं. ऐसी ताकतों के लिए अटलजी की यह लाइनें कि आग लगाकर जलना होगा, कदम मिलाकर चलना होगा, सभी के लिए सीख हो सकती हैं. आज दो पर्व मनाएं जा रहे हैं. क्रिसमस दिवस और अटल जी का जन्मदिन. क्रिसमस दिवस कहें या बड़ा दिन, पच्चीस दिसंबर को ईसा मसीह यानी यीशु के जन्म की खुशी में मनाया जाता है. इसी दिन भारत के सर्वाधित प्रिय नेता अटलजी का जन्मदिन भी एक पर्व की तरह मनाया जाता है. जैसे क्रिसमस को ईसाई समुदाय के अलावा अब हर धर्म के लोग मनाते हैं वैसे ही अटल जी का जन्म भी सभी राजनैतिक दल व हिंदुस्तान के सभी वासी मनाते हैं. भारत में अटल जी का जन्म धर्मनिरपेक्ष व सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं.
पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद अटल विहारी वाजपाई पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने |
भारत के बहुदलीय लोकतंत्र में ये ऐसे एकमात्र राजनेता हैं, जिनकी सादगी, नैतिकता और उच्च आदर्शों का लोहा विपक्षी भी मानते थे. इसलिए ये प्रायः सभी दलों को स्वीकार्य रहे. इनकी इसी विशेषता ने उन्हें तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बनने का अवसर दिया. अटलजी के भीतर भारत की संस्कृति, सभ्यता, राजधर्म, राजनीति और विदेश नीति को समझने में गहरी समझ हुआ करती थी. वह कई सालों से बीमार हैं और बिस्तर पर हैं. बावजूद इसके भाजपा नेताओं के अलावा सभी दलों के नेताआ उनका आशीवार्द समय-समय पर लेते रहते हैं. बदलते राजनैतिक पटल पर गठबंधन सरकार को सफलतापूर्वक बनाने, चलाने और देश को विश्व में एक शक्तिशाली गणतंत्र के रूप में प्रस्तुत कर सकने की करामात इन जैसे करिश्माई नेता के ही बूते की ही बात थी. इसलिए उन्हें गठबंधन सरकार का जनक भी कहा जाता था. उन्हें कभी किसी को निराश नहीं किया.
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अटल बिहारी वाजपेयी के पदचिन्हों का अनुसरण विदेश के कई नेता करते हैं. उनके विचारों से हमेशा से प्रभावित रहे हैं. उनकी दूरदर्शी सोच की दुनिया कायल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पदग्रहण समारोह में जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने शिरकत की तो उन्होंने अटलजी से आशीर्वाद लेना नहीं भूला. अटलजी से मिलने नवाज शरीफ उनके आवास गए. दरअसल प्रधानमंत्री के रूप में वाजपाई जी ने अपने कार्यकाल में जहां इन्होंने पाकिस्तान और चीन से संबंध सुधारने हेतु अभूतपूर्व कदम उठाए वहीं अंतर राष्ट्रीय दवाबों के बावजूद गहरी कूटनीति तथा दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करते हुए पोखरण में परमाणु विस्फोट किए तथा कारगिल युद्ध भी जीता.
उनके विषय में कुछ भी लिखना हो तो शब्द कम पड़ जाते हैं. अटल जी को भारतीय राजनीति में दिए अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया. अक्सर होता है कि जब किसी को भारत रत्न दिया जाता है तो विपक्षी पार्टियां विरोध करती हैं. लेकिन जब अटलजी को भारत रत्न देने की घोषणा हुई तो सभी ने खुशी जताई. यह प्यार है अपने प्रियतम नेता के लिए.
25 दिसंबर को भारत और इसके पड़ोसी देशों के लिए बड़ा दिन यानि महत्वपूर्ण दिन कहा जाता है. किसी देश पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिये सबसे अच्छा तरीका है कि वहां की संस्कृति, सभ्यता, धर्म पर अपनी संस्कृति, सभ्यता और धर्म को कायम करो. कहते हैं कि 25 दिसम्बर से दिन बड़े होने लगते हैं. सदियों से चली आ रही इस मिथ्या को हिन्दुओं ने कभी नहीं नकारा. शायद इसीलिये इसे बड़ा दिन कहा जाने लगा. भारतीयों के लिए इस दिन का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि दिन हमारी धरती पर किसी महान व्यक्ति का आगाज हुआ था. संसार में सदियों तक वाजपेयी अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाएंगे. पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वह पहले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जो लगातार दो बार प्रधानमंत्री बने.
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भारत की राजनीति में उनके योगदान की बात करें तो वह चार दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे. वह लोकसभा में नौ बार और राज्य सभा के लिए दो बार चुने गए जो अपने आप में ही एक कीर्तिमान है. भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, संसद की विभिन्न महत्वपूर्ण स्थायी समितियों के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने आजादी के बाद भारत की घरेलू और विदेश नीति को आकार देने में एक सक्रिय भूमिका निभाई. वाजपेयी जी ने विभिन्न बहुपक्षीय और द्विपक्षीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने अपने इस कौशल का परिचय दिया. वाजपेयी जी ने अपना करियर पत्रकार के रूप में शुरू किया था. अपने नाम के ही समान, अटलजी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नेता, प्रखर राजनीतिज्ञ, निःस्वार्थ सामाजिक कार्यकर्ता, सशक्त वक्ता, कवि, साहित्यकार, पत्रकार और बहुआयामी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हैं”. अटलजी जनता की बातों को ध्यान से सुनते हैं और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करते हैं. उनके कार्य राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण को दिखाते हैं.
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