भूखमरी के शिकार अफ्रीका में नई महामारी - मोटापा !
अफ्रीका हमेशा से ही कुपोषण और भुखमरी के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन अब वहां मोटापा एक महामारी का रुप ले चुका है. आखिर ऐसा अचानक कैसे हो गया ये जानिए...
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अफ्रीका, विश्व का सबसे गरीब महाद्वीप है. भूख और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से लोगों के मरने की खबरें इस महाद्वीप के लिए आम हैं. लेकिन अब वहां एक नई तरह की महामारी सामने आ रही है. मोटापे की! बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ अफ्रीकी द्वीप के देशों में भी लोगों के रहन सहन और खान पान में बदलाव आया है. लेकिन इस विकास की कीमत मोटापे के रूप में वहां के लोगों के सामने आ रही है. आलम ये है कि अब अफ्रीकी देशों में विश्व के अन्य देशों के मुकाबले मोटापा सबसे ज्यादा पाया जा रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीकी देशों बुरकीना फासो में मोटापा पिछले 36 साल में 1400 प्रतिशत बढ़ गया. घाना, टोगो, इथोपिया और बेनिन में ये 500 प्रतिशत बढ़ गया है. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि विश्व के 20 देशों जहां मोटापा तेजी बढ़ रहा है, उसमें से 8 देश अफ्रीका के हैं. यूनीवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रीक्स एंड इवोल्यूशन के ने ये स्टडी की है.
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अफ्रीका का तेजी से आर्थिक विकास जीवन के हर पहलू को बदल रहा है. इसमें इसके लोगों का आकार भी शामिल है. कई अफ्रीकी लोग इंपोर्टेड जंक फूड खा रहे हैं. विकास के साथ लोगों के रहन सहन में भी बदलाव आया है जिसके कारण अब लोग खेती छोड़ शहरों में दूसरे कामों में लग रहे हैं. नतीजतन एक्सरसाइज की कमी, खान पान में बदलाव और मोटापा. अफोर्डेबल कार और इंपोर्टेड मोटरबाइक के आ जाने से लोग शारीरिक मेहनत और कम कर रहे हैं.
लेकिन अफ्रीका में मोटापे का कारण सिर्फ शारीरिक मेहनत की कमी और जंक फूड ही नहीं हैं, बल्कि कुछ और भी कारण हैं जो इस बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं.
पहला- जिन लोगों को बढ़ती उम्र में पोषक तत्व नहीं मिल पाते (जो अभी भी अफ्रीका में एक समस्या है) और भी जब उन्हें बहुत सा भोजन उपलब्ध होता है तो वजन बढ़ने लगता है.
भूखमरी के बाद खाना मिलने पर है ज्यादा समस्या
दूसरा- अफ्रीकी स्वास्थ्य प्रणालियां अन्य बीमारियों से मुकाबला करने में व्यस्त हैं. अफ्रीका के डॉक्टरों का कहना है कि उनके यहां का पब्लिक हेल्थ सिस्टम अफ्रीका के सबसे बड़े दुश्मन और मौतों का कारण एड्स, मलेरिया, टीबी और स्थानीय बुखार जैसी बीमारियों से लड़ने में फोकस बनाए हुए है. इस वजह से असंक्रमणकारी बीमारियों जैसे डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों पर ध्यान कम दिया जा रहा है. अफ्रीकी द्वीप के सबसे विकसित देश कीनिया में हाल ये है कि यहां के लगभग 48 मीलियन लोगों पर कार्डियोलॉजिस्ट यानी हृदय संबंधी रोगों के डॉक्टरों की संख्या सिर्फ 40 है. वहीं अमेरिका में हर 13 हजार लोगों पर एक कार्डियोलॉजिस्ट है!
लेकिन द्वीप में मोटापे की महामारी फैलने का ये मतलब कतई नहीं कि भूख और कुपोषण से मुक्त हो गया है. एक तरफ जहां लाखों लोग जंक फूड और ज्यादा खाने की वजह से मोटापे के शिकार हो रहे हैं तो वहीं लाखों लोग भूख से मर रहे हैं या फिर मरने के कगार पर हैं. पिछले साल भूख का रिकॉर्ड सबसे बुरा था. मार्च में, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने चेतावनी दी थी कि तीन अलग-अलग अफ्रीकी देशों- सोमालिया, नाइजीरिया और दक्षिण सूडान में अकाल आ सकता है.
विकास के साथ खानपान और रहन सहन में भी बदलाव आया है
विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग भूख और कुपोषण के साए में बड़े होते हैं (जिसकी संख्या अफ्रीका में लाखों में है) उनमें मोटापा होने की ज्यादा संभावना होती है. क्योंकि सूखे के समय लोगों के शरीर मेटाबोलिज्म कम हो जाता है ताकि वो हर कैलोरी को उपयोग कर सके. और जब पर्याप्त खाना मिलने लगता है तो भी शरीर का मेटाबोलिज्म कम ही रहता है. इससे शरीर में कई तरह की दिक्कतें होने लगती हैं.
पिछले दस सालों में कीनिया में डायबिटीज के मरीजों की संख्या चौगुनी हो गई है. कीनिया में मोटापे की दर हर 10 में एक है. वहीं यूएसए में एक तिहाई वयस्क मोटापे से ग्रसित हैं. लेकिन कीनिया में मोटापा गंभीर रुप धारण करने लगा है. 1990 के बाद पहली बार यहां के लोगों ने मोटापे के बारे में सोचना शुरु किया है.
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