पुल बनाने के बाद, क्यों न इंडियन आर्मी को इन 7 अन्य जगहों पर और लगा दिया जाए
मुंबई स्थित एलफिंस्टन पुल का निर्माण करती आर्मी को देखकर महसूस होता है कि जब इससे सारे छोटे मोटे काम कराए जा रहे हैं तो फिर पूरे देश को ही इसे सौंप देना चाहिए.
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खबर आई की मुम्बई के उस एलफिंस्टन पुल का निर्माण आर्मी करा रही है. जिसके गिरने से करीब 22 लोगों की मौत और लगभग 2 दर्जन लोग घायल हुए थे. बताया जा रहा है कि सेना इस निर्माण कार्य को जनवरी तक पूरा कर उसे सरकार को सौंप देगी. देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, और इसमें आर्मी की शिरकत से, मेरे अलावा उन तमाम लोगों के लिए ये एक राहत की खबर है जिसे अपने देश की फौज से प्रेम है और वो उनके गर्व का पर्याय है. आज देश के सभी वर्गों को अपनी सेना पर नाज है और ये नाज हम देश वासियों को जीवन भर रहेगा.
पता नहीं आप इस बात से सहमत हों या न हों मगर ये एक प्रभावित करने वाली खबर है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस खबर के बाद देश के एक आम नागरिक के मन में इस खबर से जुड़े कई सारे प्रश्न आए होंगे. हो सकता है कि एक फुट ओवर ब्रिज के निर्माण में सेना की संलिप्तता को देखकर, देश का एक आम नागरिक ये सोचे कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते महाराष्ट्र सरकार को एक अदने से पुल के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी.
भारतीय सेना द्वारा मुंबई में बन रहे पुल का निर्माण देख किसी भी व्यक्ति के दिमाग में कई सवाल आएंगे
हो सकता है कि व्यक्ति के दिमाग में एक बार के लिए ये भी आ जाए कि आखिर महाराष्ट्र सरकार ने इस पुल के निर्माण के लिए सेना को ही क्यों चुना? क्या उसके अपने सारे इंजीनियर छुट्टी पर चले गए थे? क्या विभाग के सारे अभियंता रिटायर हो चुके थे या फिर उन्होंने वीआरएस ले लिया था और वो किसी हिल स्टेशन पर जाकर हाथ में चाय का कप लिए मौसम और बादलों को निहार रहे थे.
बात वही है. चूंकि मुंबई का ये पुल सेना बना रही है अतः प्रश्न होने लाजमी हैं. इस पूरे प्रकरण पर गौर करिए जवाब आपको खुद ब खुद मिल जाएगा. भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सेना का अपना महत्त्व है. ये कहना बिल्कुल भी अतिश्योक्ति न होगा कि देश की जनता अपनी सेना से बेइंतेहा प्रेम करती और उन्हें सम्मान देती है. इसके विपरीत देश की सरकार भी ये बात बखूबी जानती है कि वो जब चाहे, जैसे चाहे सेना को एक ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करके हारी हुई बाजी जीत सकती है.
जी हां सही सुन रहे हैं आप. कहना तो नहीं चाहिए मगर वर्तमान परिपेक्ष में, सेना, सरकार और नेताओं के लिए शायद तुरुप के इक्के से ज्यादा कुछ नहीं है जिसे वो जब चाहे, जहां चाहे ड्यूटी पर लगा देती हैं और किसी सामाजिक कार्य में सेना के जुड़ाव से वो देश की जनता के सामने अच्छी बन जाती है.
सेना के बारे में कहा जाता है कि वो पूरी ईमानदारी के साथ कार्य को अंजाम देती है
बहरहाल, आलोचना या कमी निकालने के लिए बहुत ही बातें हैं. हम इस खबर को लेकर कुछ भी कह सकते हैं और निश्चित तौर पर इस खबर के मद्देनजर हमारे विचार एक दूसरे से बिल्कुल इतर होंगे. अगर इसे सकारात्मक रूप से देखें तो मेरे अलावा बहुत से लोग ऐसे होंगे जिनका ये मानना होगा कि, 'किसी भी सामाजिक कार्य में यदि सेना लग जाती है तो वो पहले की अपेक्षा कहीं बेहतर ढंग से होगा और उसमें खामियों की संख्या न्यूनतम रहेगी' साथ ही जब कार्य में सेना जुड़ी होगी तो कार्यक्षेत्र में भ्रष्टाचार की सम्भावना भी लगभग न के बराबर रहेगी.
अब चूंकि देश की हर छोटी बड़ी चीज के लिए सेना की मदद ली जा रही है तो हमनें भी कुछ ऐसे बिन्दुओं पर विचार किया जिनपर सेना को लगाकर आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं. ऐसे परिणाम जो इंडिया को न्यू इंडिया बनाने में रामबाण साबित होंगे. तो अब देर किस बात की आइये देखें वो कौन-कौन सी सामाजिक समस्याएं हैं जिनपर यदि सेना लगती है तो जो परिणाम निकल कर सामने आएंगे वो चौकाने वाले होंगे.
आज हमारी स्वास्थ्य सेवाएं कैसी हैं ये बात किसी से छुपी नहीं है
स्वास्थ्य सेवाएं
भारत में स्वास्थ्य सेवाएं कैसी हैं ये न आपसे छुपा है न मुझसे. अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडरों के अलावा चिकित्सा उपकरणों और दवाइयों की कमी, अकुशल नर्सिंग स्टाफ, साफ- सफाई, डॉक्टरों की संख्या, प्राइवेट प्रैक्टिस ऐसे तमाम कारण हैं जिनके चलते हमारी स्वास्थ्य सेवाओं का ग्राफ निर्धारित मानकों के कहीं नीचे है. देश में मरीज लगातार मर रहे हैं. सरकारें या तो उनको मुआवजा दे रही हैं या फिर उनपर बयानबाजी हो रही है. ऐसे में यदि इस दिशा में आर्मी को लगा दिया जाए या फिर अगर आर्मी इस पर ध्यान केन्द्रित करे तो निश्चित तौर पर फायदा होगा और हमारी गिरती स्वास्थ्य सेवाओं का ग्राफ कई पायदान ऊपर आ जाएगा.
इसे समझने के लिए आपको उस व्यक्ति से मिलन होगा जो कभी आर्मी अस्पताल गया हो या वहां से इलाज करवा के आया हो. ऐसा व्यक्ति आपको फौज के अस्पताल के अनुशासन, डॉक्टरों की कार्य कुशलता और उनके चिकित्सा के प्रति समर्पण को कहीं बेहतर ढंग से बता पाएगा. फौज के अस्पताल आपको बताएंगे कि हमारे मानक और इलाज करने का तरीका उनके मानकों से कहीं पीछे है.
आज यातायात व्यवस्था भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है
यातायात
हम भारत में रहते हैं और नागरिकता के लिहाज से भारतीय हैं. कुछ चीजें हमारी आदत में शुमार हैं जैसे हमारा ट्रैफिक सेंस. आप किसी भी चौक, चौराहे, सिग्नल पर खड़े हो जाइए आपको ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या दिखेगी जो ट्रैफिक नियमों को नजरअंदाज कर पूरी ट्रैफिक व्यवस्था का मखौल बनाए पड़ी है. आपने ऐसे तमाम दृश्य देखे होंगे जहां आपको जहां तहां पार्क करी गाड़ियां, बिना कागज के वाहन चलाते लोग, गलत दिशा से निकलती गाडियां, बेवजह बजते हॉर्न, बिना हेल्मेट पहने बाइक सवार और बिन सीट बेल्ट के कार चालक दिखेंगे.
अब इसकी तुलना आप अपने शहर के केंट एरिया से करिए और वहां की ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में सोचिये. आपको मिलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है. अतः सेना अगर सरहद के अलावा सड़क पर आती है तो अवश्य ही हमें अच्छे दिन दिखने लगेंगे और हमारी कई समस्याएं दूर हो जाएंगी.
आज हमारे पास ऐसी सड़कों की भरमार है जिनमें केवल गड्ढे ही गड्ढे हैं
खुले गड्ढे / नालियां और उनमें शौच
ये हमारे देश का दुर्भाग्य के कि आज आजादी के 71 साल बाद भी हम वहीं हैं जहां सन 1947 में थे. आप शहर, गांव, कज्बे कहीं भी चले जाइए भारत में खुले गड्ढे, नालियां और उन नालियों पर शौच करते लोग आपके स्वागत के लिए तैयार हैं. फिर वही बात कि आप अपने शहर के केंट में जाएं और वहां का हाल देखें और फिर उसे अपने शहर से कम्पेयर करें. जब सब जगह सरकार आर्मी लगवा रही है तो उसे यहां भी आर्मी लगवानी चाहिए और निर्माण कराना चाहिए, नियम बनाने चाहिए और निर्माण के बाद यदि कोई नियमों को तोड़ता पकड़ा जाए तो उसके लिए सख्त से सख्त सजा का प्रावधान हो.
रेलवे की पेंट्री में मिलने वाला खाना ऐसा है जिसे शायद ही कोई इंसान खा पाए
ट्रेन की पेंट्री
अब तो ये रोज का हो गया है जब हम ये सुनते हैं कि फलां ट्रेन की पेंट्री में खाने में फलां जीव निकला और उसमें बदबू आ रही थी या फिर उस ट्रेन में ज्यादा पैसा लेने के बावजूद पानी जैसी दाल और बासी चावल परोसे जा रहे हैं. यदि रेलवे की पेंट्री में आर्मी के कुक आते हैं तो वहां भ्रष्टाचार की सम्भावना नहीं रहेगी और एक यात्री के तौर पर हमें बेहतर सुख सुविधाएं मिल पाएंगी.
आज लंबित मुकदमों के कारण लोगों का कानून से विश्वास उठ चुका है
कानूनी प्रणाली
चाहे सुप्रीम कोर्ट हो, चाहे हाई कोर्ट या फिर दीवानी और फौजदारी की अदालतें. हमारी न्याय व्यवस्था कैसी है ये किसी से छुपा नहीं है. आजादी के 71 साल बाद भी आज हमारी अदालतों में लाखों मुक़दमे लंबित पड़े हैं जिससे देश के आम आदमी को इंसाफ की बात एक बेईमानी से ज्यादा कुछ नहीं लगती. यदि न्यायपालिका में सेना के लोग आ जाते हैं तो कई बड़ी समस्याओं का निवारण बेहद कम समय में हो जाएगा.
ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते
शिक्षा
कोई भी देश तब तक विकसित नहीं माना जाएगा जब तक वहां के नागरिक शिक्षित न हों. शिक्षा के मामले में हमारा देश कैसा है ये किसी से छुपा नहीं है. देश के बच्चों को शिक्षित करना आज भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है. ऐसा इसलिए क्योंकि न ही हमारे पास कुशल अध्यापक हैं और न ही इंफ़्रास्ट्रक्चर. आप किसी भी प्राथमिक विद्यालय में चले जाइए वहां शिक्षा का स्वरूप ऐसा है जो आपको शर्मसार कर देगा. इसके विपरीत आप आर्मी स्कूल देख लीजिये और उनकी पढ़ाई का स्तर और पढ़ाने का तरीका देख लीजिये. शिक्षा के क्षेत्र में भी आर्मी, सिविलियन से लाख दर्जे ऊपर है. यदि शिक्षा में सेना आती है तो शिक्षा का स्तर अपने आप ही सुधर जाएगा और कागजों के अलावा हम वास्तविकता में शिक्षित हो जाएंगे.
लगातार बढ़ता क्राइम सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है
अपराध, कानून - व्यवस्था
इसे समझने के लिए आपको एनसीआरबी से निकला डाटा देखना होगा, जिसके अनुसार आए रोज भारत में अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है और कानून व्यवस्था लगातार नीचे गिरती जा रही है. यदि इस क्षेत्र में भी सेना आ जाती है तो जाहिर है कि अपराध का ग्राफ घटेगा और कानून व्यवस्था ऊपर आएगी. जिससे न सिर्फ देश में क्राइम कम होगा बल्कि देश के लोग चैन और सुकून से रह पाएंगे.
इतनी बातों के बाद और मुम्बई के उस एलफिंस्टन पुल का निर्माण आर्मी को करता देख महसूस होता है कि जब सब चीजें आर्मी कर सकती है तो क्यों न देश भी वही चलाए. ऐसा सिर्फ इसलिए कि अब इस देश की जनता नेताओं के खोखले बयानों और उनकी झूठी बातों से उकता गयी है. अब देश के नागरिक एक बेहतर भारत चाहते हैं एक ऐसा भारत जिसपर देश वासी नाज कर सकें. यदि ये हमें आर्मी से मिलता है तो फिर इसमें बुराई क्या है कि अब देश को भी आर्मी ही चलाए और उसे प्रगति के मार्ग पर ले जाए.
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