SC ने भारतीय मुस्लिम महिलाओं को बड़ी जीत दी है मगर अभी इम्तेहां और भी हैं
ट्रिपल तलाक पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला कई मायनों में खास और उन मुस्लिम महिलाओं पर चिलचिलाती धूप में पड़ी बारिश की वो बूंद है, जिसने उन्हें राहत दी है. मगर अब भी भारतीय मुस्लिम महिलाओं को अपने हक के लिए संघर्ष करना है.
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तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन,
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था...
शायर 'मजाज़ लखनवी' के इस बेहद खूबसूरत शेर को पढ़िए. अब इस शेर को आज के हालात में देखिये. इस शेर को इससे बड़ी सफलता और सम्मान क्या मिलेगा कि, अब तक बंदिशों में रहकर और आँचल तले शोषण झेल रही भारतीय मुस्लिम महिलाओं ने उसी आंचल को परचम बना लिया और कुछ ऐसा कर दिखाया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी बातों का संज्ञान लिया और तीन तलाक जैसी सामाजिक कुरीति के मुद्दे पर बड़ी राहत दी. जी हां अब कोई भी मुस्लिम शौहर दाल में पड़े कम नमकके लिए, ऑमलेट में डली हरी मिर्च के लिए या फिर शर्ट के कफ और कॉलर पर लगी मैल को देखकर अपनी बीवी को तीन बार 'तलाक, तलाक, तलाक' कहकर जीते जी नहीं मार पाएगा.
निश्चित तौर पर ये एक बड़ी जीत है मगर अब भी भारतीय मुस्लिम महिलाओं को अपने लिए बहुत कुछ करना है
आज का दिन एक तारीखी दिन है. निश्चित ही, ये एक ऐसा दिन है जो एक नजीर बनते हुए इतिहास में दर्ज होगा और भविष्य में याद किया जाएगा. आज इस देश की सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने 2 के मुकाबले 3 से तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे दिया है. पीठ के तीन जजों ने एक बार में तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए इसे मुस्लिम महिलाओं के मूल अधिकारों का उल्लंघन माना है. हालांकि मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर समेत एक अन्य जज की राय इस विषय पर थोड़ी अलग रही.
जजों की पीठ ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को निर्देश देते हुए कहा है कि केंद्र और संसद जल्द ही इस मुद्दे पर कानून बनाए. सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद, तीन तलाक को लेकर लंबे समय से अपने अधिकारों के लिए न्याय की लड़ाई लड़ रही हजारों मुस्लिम महिलाओं और उनके परिजनों के चेहरे पर संतोष है.
वाकई, ये फैसला कई मायनों में खास और उन मुस्लिम महिलाओं पर चिलचिलाती धूप में पड़ी बारिश की वो बूंद है, जिसने उन्हें राहत दी है. कह सकते हैं कि आज जो फैसला आया है ये उन मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है, जो बीते 1000 सालों से, एक ऐसा दंश सह रही हैं जो उन्हें केवल तिल-तिल करके मार रहा है. कहा ये भी जा सकता है कि, न सिर्फ ये फैसला भारतीय मुस्लिम महिलाओं के विकास और सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है. बल्कि इसके बाद उन्हें कई और चुनौतियों को दरकिनार करके उनपर अपनी जीत दर्ज करनी है.
यदि मुस्लिम महिलाओं को सशक्तिकरण चाहिए तो उन्हें खुद अपनी शिक्षा के लिए आगे आना होगा
जी हां, बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. तीन तलाक के अलावा भारतीय मुस्लिम महिलाओं के पास अभी बहुविवाह, शिक्षा, रोज़गार के रूप में कई ऐसे मुद्दे हैं जिनपर उन्हें जीत हासिल कर समाज के साथ कंधे से कंधा मिलकर आगे बढ़ना है. बात अगर केवल बहुविवाह के सन्दर्भ में हो तो मिलता है कि, तमाम चीजों के बावजूद आज भारतीय मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या बहुविवाह का पालन करती है. भारतीय मुस्लिम समाज में इस कुप्रथा पर नजर डालें तो सामने आता है कि तीन तलाक के पीछे बहुविवाह एक प्रमुख वजह है. बात आगे बढ़ाने से पहले 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहुविवाह पर दिए गए एक फैसले का संज्ञान लेना बेहद जरूरी है.
तब जस्टिस टी एस ठाकुर और ए के गोएल की खंडपीठ ने कहा था कि, 'हालांकि मुसलमानों के शरिया कानून के अंतर्गत 4 बीवियां रखने का अधिकार है मगर इसे जब भारतीय कानून के अंतर्गत रखकर देखा जाए तो ये एक कुरीति है. भारतीय संविधान की धारा 25 के हवाले से कोर्ट ने कहा था कि, कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का अभ्यास और प्रचार करने का अधिकार रखता है मगर उसे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जो सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता के खिलाफ हो. कोर्ट ने माना था कि इस्लाम में बहुविवाह कभी भी धर्म का महत्त्वपूर्ण हिस्सा नहीं रहा था अतः कोई केवल धर्म को आधार बनाकर दूसरी, तीसरी या चौथी बीवी ला रहा है तो ये सरासर गलत है.
2011 में हुई जनगणना को यदि आधार मानें तो मिलता है कि भारतीय मुस्लिम महिला पुरुषों में ये अनुपात 1: 4 का है यानी जहां एक तरफ एक तलाकशुदा पुरुष है तो उसके मुकाबले में 4 महिलाएं हैं. बहरहाल, भले ही सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम महिलाओं को राहत मिली हो मगर देखा जाए तो सही मायनों में अब इनके लिए इम्तेहान की घड़ी है. ऐसा इसलिए क्योंकि अब इन्हें अपनी शिक्षा और उसके बाद उस शिक्षा के बल पर मिलने वाले रोजगार के लिए लड़ना है.
सही मायनों में अब भारतीय मुस्लिम महिलाओं के लिए इम्तेहान का वक्त है
गौरतलब है कि शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में किसी अन्य समुदाय के मुकाबले भारतीय मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बड़ी दयनीय है. 2011 की ही जनगणना के अनुसार, देश में रह रहे मुस्लिमों में 42.7 प्रतिशत लोग निरक्षर हैं जबकि 57.3 प्रतिशत लोग साक्षर हैं. मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता दर पर बात हो तो आपको बता दें कि मात्र 2.75 मुस्लिम महिलाएं ऐसी हैं जो स्कूल गयी हैं और जिन्होंने शिक्षा प्राप्त की है.
खैर, इसमें कोई संदेह नहीं है कि तीन तलाक पर जो फैसला आया है वो मुस्लिम महिलाओं के आत्म विश्वास को बल देगा और अब वो उन दिशाओं पर काम करेंगी जिनपर कट्टरपंथी समाज ने अब तक लगाम लगाई थी. ये फैसला इस बात का सूचक है कि हमारी सरकार मुस्लिम महिलाओं को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में प्रयासरत है और लगातार उनकी पस्ताहाली को दूर कर उनके सही विकास की दिशा में कार्यरत हैं.
अंत में अपनी बात खत्म करते हुए हम भारतीय मुस्लिम महिलाओं से इतना ही कहना चाहेंगे कि, भले ही सरकार उनको साथ लेकर चलने में प्रयत्नशील है मगर बिना उनके कदम बढ़ाए, इस दिशा में ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता. अतः अपने विकास के मार्ग में पड़े पत्थर उन्हें खुद हटाने हैं. यदि भारतीय मुस्लिम महिलाएं ऐसा कर लेती हैं तो ये एक अच्छी पहल होगी अन्यथा होगा वही, ये कठमुल्लों की वो भेड़ें बन जाएंगी जिनके हाथों में तख्ती, पोस्टर, बैनर पकड़ा कर वो वर्तमान की तरह इन्हें भविष्य में भी मूर्ख बनाते रहेंगे और ये चींखते चिल्लाते जिंदाबाद-जिंदाबाद करते हुए उनके पीछे चलती रहेंगी और अपनी किस्मत पर रोती रहेंगी.
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