ना उम्र की सीमा हो, ना जन्म का हो बंधन
खुद को प्यार करना और खुद के लिए जीना ही जीवन का मूलमंत्र बना लेने वाले ही असल में जीवन जी रहे हैं. समय की कमी या व्यस्त जीवन का रोना-रोने वाले युवाओं के लिए इनसे बड़ा टीचर कोई और नहीं होगा.
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इंसान फितरत से ही आलसी होता है. किसी काम को टालने का तरीका सीखना है तो हम इंसानों से सीखें. यही हाल अपनी सेहत के साथ भी करते हैं. व्यायाम से भागने के हजार बहाने रेडीमेड तैयार करके रखते हैं. कभी टाइम नहीं होने का बहाना, कभी मौसम खराब होने का, कभी तबीयत का तो कभी आलस आ रहा है कह कर टाल देते हैं. कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि अब हमारी उम्र कहां रही एक्सरसाइज करने की! लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो कितनी भी उम्र के हों एक्सरसाइज़ करना और दौड़ना उनकी रुटीन का हिस्सा होता है. फिटनेस उनके लिए काम नहीं जीवन का हिस्सा है.
ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे ने अपने फेसबुक पेज पर 72 साल की एक महिला की कहानी बताई है. उनकी कहानी से हम जैसे कई लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए. 72 साल की उम्र में भी वो अपना पसंदीदा काम पूरे मन से करती हैं. उनका पसंदीदा काम है दौड़ना. सबसे आश्चर्य की बात ये है कि 2004 से ये हर साल मुंबई में होने वाले मैराथन में दौड़ती हैं. यही नहीं हाल ही में 100 डे चैलेंज प्रतियोगिता के अंतर्गत उन्होंने 500 किलोमीटर पैदल चलने का टारगेट भी पूरा किया है.
खुद से प्यार करना सबसे जरुरी है
वो कहती हैं- 'मैं घर पर बैठकर सास-बहू के सीरियल देखने या गॉसिप करना पसंद नहीं करती. मैं घर के बाहर खुली हवा में रहना पसंद करती हूं. सुबह उठकर मैं अपने एरोबिक क्लास जाती हूं, उसके बाद टहलती हूं. मैंने हाल ही में जिम भी ज्वाइन किया है और मुझे बहुत मजा आ रहा है.'
युवाओं को संदेश देने के लिए उन्होंने कहा कि- 'एक ही मूलमंत्र है. खुद से प्यार करो. मुझे खुली हवा में सांस लेना पसंद है इसलिए मैं बाहर रहती हूं. अपना समय फालतू की चीजों में बर्बाद करने से अच्छा मैं अपनी फिटनेस पर ध्यान दूं. मैं फिट रहना चाहती हूं क्योंकि मुझे खुद से प्यार है.' अक्सर हम अपनी खुशियों के लिए किसी और का मुंह देखते रहते हैं या फिर अपनी दिक्कतों का रोना रोते रहते हैं. लेकिन ये बात भूल जाते हैं कि हमारी खुशियों को हमसे सिर्फ एक ही इंसान हमसे छीन सकता है और वो हम खुद हैं.
अगर इतना ही काफी नहीं है तो सर्वेश जी से भी आज के युवा जिंदगी को एन्जॉय करना सीख सकते हैं. सर्वेश जी 60 की उम्र को पार करने के बाद भी अपने जीवन को अपने हिसाब से जीने की मिसाल हैं. पेशे से फोटोग्राफर सर्वेश को भी दौड़ना बहुत पसंद है. पिछले तीन सालों से वो कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती रहीं है और अपना परचम भी लहराया है. पिछले साल दिल्ली जोन की 5 किलोमीटर वॉक प्रतियोगिता की ये विजेता रहीं थी तो इस साल नेशनल लेवल पर सिल्वर मेडल को अपने नाम किया है.
जीना एक कला हैइन लोगों के लिए उम्र सिर्फ एक नंबर है. खुद को प्यार करना और खुद के लिए जीना ही इनके जीवन का मूलमंत्र है. समय की कमी या व्यस्त जीवन का रोना-रोने वाले युवाओं के लिए इनसे बड़ा टीचर कोई और नहीं होगा.
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