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Updated: 05 अगस्त, 2016 11:59 PM
पल्लवी त्रिवेदी
पल्लवी त्रिवेदी
  @pallavi.trivedi.3
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वो वर्किंग गर्ल है 25 साल की. अपने छोटे से शहर से बड़े शहर में नौकरी करने आई तमाम लड़कियों में से एक. माता पिता उसे ज्वाइन कराने लेकर आये. आकर वर्किंग वूमेन होस्टल खोजा और तमाम हिदायतों के साथ बेटी को वहां जमा कर गए.

"रात 8 तक होस्टल में आना ज़रूरी है. अगर बाहर कहीं रुकना है तो लोकल गार्जियन से लिखवाकर लाओ. रात 9 के बाद होस्टल में नहीं घुसने दिया जाएगा. कोई लड़का मिलने होस्टल में नहीं आ सकेगा.' लड़की ने नियम कायदों की सूची पढ़ी और वार्डन से तर्क करने पहुंची.

"रात 8 बजे कैसे कोई रोज़ होस्टल लौट सकता है? मेरा ऑफिस 7.30 बजे खत्म होगा. काम से आने के बाद मुझे बाज़ार जाना हो, दोस्तों से मिलने जाना हो, डिनर करने जाना हो या यूं ही दस बजे झील किनारे आइस्‍क्रीम खाना हो तो क्या करूं?

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"अगर किसी दोस्त के घर रात रुकना हो तो लोकल गार्जियन यह क्यों डिसाइड करेगा? मैं वयस्क हूं और होस्टल की ज़िम्मेदारी इस परिसर के अंदर की है. बाहर मैं क्या करती हूं, यह होस्टल का विषय नहीं. सिर्फ इतनी सूचना काफी है कि आज मैं बाहर रुकने वाली हूं. क्या आपका बॉयज होस्टल होता तब भी आप ऐसी ही नियमावली निकालते?"

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लड़कों के होस्टल में आने जाने के नियम लड़कियों से अलग क्यों?

लड़की के तर्क सुनकर वार्डन ने कहा "लड़कियों और लड़कों के नियमों की तुलना नहीं की जा सकती. लड़की के मां बाप इन्हीं नियमों के कारण लड़कियों को होस्टल में रखते हैं. कल को आपके साथ रात को बाहर कोई घटना हो गई तो कौन ज़िम्मेदार होगा. आपको नहीं जमता तो होस्टल छोड़ दो.'

लड़की ने कहा "इस होस्टल के बाहर अगर मेरे साथ रेप भी होता है तो होस्टल इसके लिए ज़िम्मेदार नहीं है. क्या इतना लिखकर देने से मेरे लिए आप नियम बदलेंगी ?"

वार्डन ने आंखें फाड़कर उस बेशर्म लड़की को देखा और कड़े स्वर में कहा- "नहीं"

लड़की ने होस्टल छोड़ दिया और एक सहेली के साथ मिलकर एक फ्लैट किराए पर ले लिया. लड़की के मां बाप को पता चला तो कारण पूछा. लड़की ने वही सब कारण गिना दिए. मां बाप एक स्वर में बोले "नौकरी करने भेजा है या मौज मस्ती करने?"

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लड़की ज़िद पर अड़ी रही. मां बाप नाराज़ हो गए. आना जाना बंद कर दिया. उनकी लड़की को शहर की हवा लग गई थी और वो हाथ से निकल गई थी. (गौर करेंगे... हाथ से निकल गई). वार्डन हर नई आने वाली लड़की के मां बाप को उस लड़की का किस्सा सुनाकर कहती है कि "ऐसी भी आवारा लड़कियां होती हैं जो अनुशासन को जेल समझती हैं. यहां से गई, अच्छा हुआ."

सात साल पूर्व वयस्क हो चुकी लड़की बस आज़ादी से अपनी ज़िंदगी जीना चाहती है. लेकिन आज़ादी मतलब आवारगी, आज़ादी मतलब हाथ से निकल जाना. भई.. हाथ में कब तक रखोगे? शादी कर के दूसरे हाथ में सौंप देने तक या बुड्ढी हो जाने तक?

आज ही खबर है कि एक इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्राओं ने प्रिंसिपल के मकान पर धरना देकर उनके होस्टल में आने जाने के नियम लड़कों के हॉस्टल के समान ही करने की मांग की. सिंपल सी बात है कि या तो लड़कों के आने जाने के भी नियम बनें या उनके भी टूटें.

दरअसल लड़की के चाल चलन का ठेका लेने वाले इन वार्डनों और अभिभावकों को चिंता यह नहीं है कि देर रात घूमने से लड़की का रेप या किडनैप हो जाएगा, जो होता भी नहीं है. उनकी चिंता बस यही है कि लड़की किसी लड़के के साथ रात न बिता ले, या लड़कों की तरह रात दस बजे आइसक्रीम खाते न दिखाई देने लगे. संस्कृति की मट्टी पलीत न हो जाए कहीं.

लेकिन अब ज़माना बदल रहा है. लड़कियों को भेदभाव के नाम पर कुछ भी मंज़ूर नहीं. हॉस्टल के नियम तक नहीं. देश की संस्कृति बदलेगी और अब यह जैसी भी होगी, इसके निर्माण में अब लड़कियों की भी भागीदारी होगी.

लेखक

पल्लवी त्रिवेदी पल्लवी त्रिवेदी @pallavi.trivedi.3

लेखक मध्यप्रदेश में पुलिस अधिकारी हैं

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