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Updated: 06 जुलाई, 2015 01:33 PM
विकास मिश्र
विकास मिश्र
  @vikas.mishra.7393
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दफ्तर में मेरी ठीक बाईं तरफ की सीट खाली है. ये अक्षय की सीट है. अक्षय अब इस सीट पर नहीं बैठेगा, कभी नहीं बैठेगा. दराज खुली है. पहले खाने में कई खुली और कई बिन खुली चिट्ठियां हैं, जो सरकारी दफ्तरों से आई हैं, इनमें वो जानकारियां हैं, जो अक्षय ने आरटीआई डालकर मांगी थीं.

करीब तीन महीने पहले ही दफ्तर में नई व्यवस्था के तहत, अक्षय को बैठने के लिए मेरे बगल की सीट मिली थी. वैसे दफ्तर में रोज दुआ सलाम हुआ करती थी, लेकिन पिछले तीन महीने से तो हर दिन का राफ्ता था. अक्षय...हट्ठा कट्ठा जवान. उसके हाथ इतने सख्त, मोटी-मोटी उंगलियां. मिलते ही हाथ, सिर तक उठाकर बोलता-सर नमस्कार और फिर हाथ बढ़ाता मिलाने के लिए. इतनी गर्मजोशी से हाथ मिलाता कि पांच मिनट तक मेरा हाथ किसी और से मिलाने लायक नहीं रहता. बगल में सीट थी तो काफी बातें भी हुआ करती थीं. एक खोजी पत्रकार को क्या क्या झेलना पड़ता है, क्या क्या खतरे होते हैं, सब बताता था. एक चैनल में जब स्टिंग ऑपरेशन के दौरान पैसे के लेनदेन की खबरें उजागर हुईं तो अक्षय बहुत दुखी था. बोला- सर, यहां तो दुनिया दुश्मन बनी पड़ी है. हम लोग साख बनाने में जुटे रहते हैं, कुछ लोग बनी बनाई साख पर बट्टा मार देते हैं. अक्षय ने अपने करियर में कई सनसनीखेज खुलासे किए. अभी हाल ही में एडमिशन के सिंडीकेट को उसने उजागर किया था. ये संयोग ही है कि अभी 29 जून को उसके आखिरी स्टिंग-डॉगफाइट पर आजतक पर रात साढ़े आठ बजे का शो मैंने ही बनाया था. मैंने कहा-अक्षय पीटीसी कर दो. अक्षय बोला-नहीं सर, हम परदे के पीछे ही रहें तो ही अच्छा. वो शो अक्षय का आखिरी शो बनकर रह गया.

अभी हाल ही में अक्षय वैष्णोदेवी की यात्रा से लौटा था. माता-पिता को दर्शन करवाने गया था. वहां से प्रसाद लाया. प्रसाद में था-अखरोट. मुझे उसने कुछ अखरोट दिए, मैंने कहा-घर जाकर खाऊंगा. यहां किससे फोड़ूंगा. अक्षय ने अखरोट लिया, अंगुठे और तर्जनी के बीच रखा और अखरोट टूट गया. ये उसकी अंगुलियों की ताकत थी. इतने ताकतवर और बहादुर इंसान को यूं ही अचानक हॉर्ट अटैक आएगा..? दिल नहीं मानता. कल दोपहर ही अक्षय की मौत की खबर मिल चुकी थी. दफ्तर में ऐसा लग रहा था, जैसे अपनी लाश खुद ढोते हुए चल रहे हों. पत्रकार की जिंदगी का कोई मोल नहीं रह गया, कोई ठिकाना नहीं रह गया.

आज दफ्तर के लिए घर से निकल रहा था तो कई बातें जेहन में उमड़-घुमड़ रही थीं. बूढ़े माता-पिता और बहन का अकेला सहारा था अक्षय. पिता के हाथ कांपते हैं. जरा सोचिए, जिस बेटे को पिता ने गोद में खिलाया, कंधे पर बिठाया, मेले में घुमाने ले गया, उस बेटे को दिन ब दिन.. साल दर साल जवान होते देखा, उस बेटे को मुखाग्नि देने की जब नौबत आई, तब क्या बीती होगी उनके दिल पर. बच्चे को जरा सी आंच लग जाए तो पिता का कलेजा छलनी हो जाता है, लेकिन अपने जवान बेटे को चिता की आग के हवाले करते वक्त अक्षय के पिता के मन में पीड़ा की कैसी सूनामी उठी होगी. अक्षय के जाने से जब हम सब का कलेजा मुंह को आ रहा है तो उस मां के दर्द की तासीर क्या होगी, जिसने दूध पिलाकर बेटे को हट्ठा कट्ठा जवान बनाया. जिसके इंतजार में वो देर रात तक जागती थी, अब तो उस मां का इंतजार अनंत तक खिंच गया. छोटी बहन के लिए रक्षा बंधन और भाई दूज के मायने खत्म हो गए, क्या बीत रही होगी उस बहन पर. सुबह पदम सर (पदमपति शर्मा) का फोन आया था. भाव विह्वल होकर रोने लग गए थे. क्या कहें... हम सब का दुख बहुत छोटा है, अक्षय के परिवार वालों का दुख तो पहाड़ से भी भारी है.

आज हमारा जांबाज साथी अक्षय सिंह अनंत में विलीन हो गया, मिट्टी का तन मिट्टी में मिल गया, लेकिन उसकी यादों से कैसे पीछा छुड़ाएंगे हम. अपनी टेबल पर बैठकर ये पोस्ट लिख रहा हूं. बिल्कुल बगल वाली सीट खाली है, कई बार ऐसा एहसास हुआ कि हमेशा की तरह अक्षय बोलेगा-सर, आप कंप्यूटर पर टाइप करते हो या तबला बजाते हो... नहीं अब कोई आवाज नहीं गूंजेगी. अक्षय अब कहां बोलेगा, वो तो उस दुनिया में चला गया, जहां से कभी कोई लौटकर नहीं आता.

(विकास मिश्रा की फेसबुक वॉल से)

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लेखक

विकास मिश्र विकास मिश्र @vikas.mishra.7393

लेखक टीवी पत्रकार हैं. सियासत, समाज और सिनेमा पर लगातार लिखते रहते हैं.

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