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टेक्नोलॉजी
| 4-मिनट में पढ़ें
prakash kumar jain
@prakash.jain.5688
क्या Chat GPT करोड़ों नौकरियों के लिये खतरा पैदा कर सकता है?
कुछ हद तक सही भी है. दोहराए जाने वाले कार्य समाप्त ही हो जाएंगे. लेकिन कुशल और प्रतिभाशाली सफलता की ऊंचाइयों को छूते रहेंगे...चैटजीपीटी एक नवीनतम कौशल ही है, टूल है, जो जितना इसके गुरों को सीख पारंगत होगा तरक्की करेगा.
सिनेमा
| 4-मिनट में पढ़ें
prakash kumar jain
@prakash.jain.5688
Scoop Web series Review: मीडिया के वर्तमान स्वरूप का सहज आईना है स्कूप
आजकल हेडलाइन मैनेजमेंट के नाम पर सनसनीखेज शब्दों का इस्तेमाल आम है, प्रश्नवाचक मुद्रा में अनर्थ करने की स्वतंत्रता जो है. वेब सीरीज की बात करने के पहले हाल ही में हुई ह्रद्य विदारक रेल दुर्घटना की रिपोर्टिंग की बानगी देखिए- एक नामी गिरामी महिला पत्रकार ने, जिनके पति भी फेमस और वेटरेन पत्रकार हैं और एक बड़े मीडिया हाउस से जुड़े हैं, इस रेल दुर्घटना को कत्लेआम, हत्याकांड निरूपित कर दिया.
सियासत
| 3-मिनट में पढ़ें
नवेद शिकोह
@naved.shikoh
बीवियों को किनारे करने में तो जीत ही जाएंगी सपा की वंदना...
राजधानी लखनऊ मेंमेयर सीट के लिए सपा ने कमजोर समाज की मजबूत आवाज़ बनने वाली वंदना मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित करने के बाद भाजपा की मुश्किल बढ़ा दी हैं. वंदना ब्राह्मण हैं और भाजपा इस जाति के वोट को अपना सुरक्षित वोट मानकर यूपी में पिछड़ी जातियों के चेहरों को एहमियत ज्यादा देती रही है.
समाज
| 6-मिनट में पढ़ें
prakash kumar jain
@prakash.jain.5688
#DontSaySorry: पत्रकार अपने रोजनामचे की एंट्री क्यों ठीक करें?
डेमोक्रेसी में फ्रीडम ऑफ़ स्पीच सर्वोपरि है. लेकिन लक्ष्मण रेखा भी तो होनी चाहिए ना. मीडिया के एंकरों का, जर्नलिस्टों का बिना ऑथेंटिकेशन के महज कल्पना के सहारे प्रश्नवाचक चिन्ह की आड़ लेकर विवेचना या विचार प्रस्तुत करने का क्या औचित्य है?
सोशल मीडिया
| 3-मिनट में पढ़ें
prakash kumar jain
@prakash.jain.5688
तो क्या मान लिया जाए वाकई पत्रकारों के अच्छे दिन आ गए हैं?
सीधी सी बात है कॉमन मैन, जो फ्लायर है किसी जेन्युइन वजह से, परहेज करता है एयरपोर्ट पर खाने पीने से और फिर उसे पता होता है प्राइस चूंकि हर आइटम का प्राइस डिस्प्ले बोर्ड पर है.
सियासत
| 5-मिनट में पढ़ें
जावेद अनीस
The Muslim Vanishes: एक जरूरी नाटक, जो काल्पनिक होते हुये भी सच्चाई के बहुत करीब है!
सईद नकवी की किताब 'द मुस्लिम वैनिशेस' किताब मूलतः एक काल्पनिक व्यंग्य नाटक है. जो भारत की मौजूदा राजनीति के परिप्रेक्ष्य में कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है. एक नाटक होने के बावजूद इसका मंचन मुश्किल लगता है. इसका कारण एक तो इसमें किरदारों की भरमार है और दूसरा विषय की जटिलता, इसके चलते इसका मंचन मुश्किल होगा.
समाज
| 6-मिनट में पढ़ें
लोकेन्द्र सिंह राजपूत
@5745259062180641
National Press Day: समाज के लिए घातक है मूल्यविहीन पत्रकारिता
जिस तरह मनुष्य के जीवन को सार्थकता प्रदान करने के लिए जीवन मूल्य आवश्यक हैं, उसी तरह मीडिया को भी दिशा देने और उसको लोकहितैषी बनाने के लिए मूल्यों की आवश्यकता रहती है.
सियासत
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एक अलग नज़रिया
| 7-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
महिला पत्रकार के बिंदी न लगाने पर भिड़े का ऐतराज बहस से आगे की बात है
महाराष्ट्र में संभाजी भिड़े (Sambhaji Bhide) ने बिंदी ना लगाने वाली महिला पत्रकार के सवाल का जवाब नहीं दिया और कहा कि 'हर स्त्री भारत माता की तरह होती है और भारत मां विधवा नहीं है.'
सियासत
| 5-मिनट में पढ़ें
prakash kumar jain
@prakash.jain.5688
तो अब क्या चर्चित पेगासस मुद्दे की वायर टूट जाएगी?
वायर टूटे ना टूटे परंतु एकबारगी लगा झटका तो लग ही गया है. सर्वोच्च न्यायालय का फिलहाल जो निर्णय आया है वह एक बार फिर पूर्णता लिए न होकर संतुलन भर है पक्षकारों के लिए. वन लाइनर ड्रॉ करें तो ' संदेह को बरकरार रखते हुए संदेह का लाभ सरकार को मिल गया है.