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Updated: 12 जुलाई, 2018 05:36 PM
प्रभुनाथ शुक्ल
प्रभुनाथ शुक्ल
 
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थाईलैंड में इंसानी जिंदगी बचाने का चमत्कारिक मिशन पूरा हो गया. थाईलैंड की थैम लुआंग गुफा में फंसे 12 जूनियर फुटबॉलर और कोच को सुरक्षित निकाल लिया गया. मिशन पर पूरी दुनिया की निगाह टिकी थीं. दुनिया भर में मासूम खिलाड़ियों के लिए दुआएं हो रहीं थीं. घटना पूरी दुनिया के लिए चुनौती बनी थी. सभ्यता के विकास और आधुनिक जीवन शैली की ये अकल्पनीय वारदात थी. मौत की गुफा से 18 दिन की इंसानी जद्दोजहद के बाद सभी को सुरिक्षत बाहर निकाल लिया गया. विज्ञान के साथ तकनीकी विकास की यह बड़ी जीत साबित हुई.

thailand cave rescue18 दिनों तक गुफा में कैद रहे बच्चे

इस पूरे मिशन में सबकुछ अच्छा होने के बाद हादसा भी हुआ जब थाईलैंड नेवी का एक पूर्व जवान मिशन के दौरान आक्सीजन की कम से दुनिया से अलविदा हो गया. मिशन पूरी तरह असंभव था लेकिन दुनिया ने आपसी सहयोग से कठिन प्राकृतिक स्थितियों में भी जीत हासिल की. गुफा से बाहर आए जूनियर खिलाड़ियों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 'हम नहीं जानते यह चमत्कार है, विज्ञान है या फिर और कुछ, लेकिन हम सभी लोग गुफा से बाहर आ गए हैं.'

इस अद्भुत मिशन में थाईलैंड की वायु एंव नवसेना के साथ ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, म्यांनमार, लाओस, आस्ट्रेलिया और जापान के गोताखोरों का सहायोग तकनीकी विशेषज्ञों की टीम कर रही थी. थाई सरकार ने इस मिशन की सफलता के लिए पूरी दुनिया के प्रति कृतज्ञता जताई है. थैम लुआंग गुफा में बरसात के मौसम में घुसने पर प्रतिबंध रहता है क्योंकि बारिश की वजह से संकरी गुफा पानी से भर जाती है. संभवतः वहां इस तरह के सुरक्षा गोर्डों की तैनाती नहीं थी जिसकी वजह से कोच खिलाड़ियों को लेकर गुफा में घुस गया.

thailand cave rescueबच्चों की सलामती के लिए लोग ईश्वर से प्रार्थनाएं कर रहे थे

कल्पना के इस युग में हमारी सोच जहां तक नहीं पहुंचती, हादसे हमें वहां पहुंचा देते हैं. थाईलैंड के 12 जूनियर फुटबालर 23 जून को अभ्यास के बाद अपने 25 बर्षीय कोच इकाबोला के साथ चियांग राज्य की लुआंग गुफा में घूमने पहुंच गए. बाद में बारिश की वजह से गुफा में पानी भर जाने से वह बाहर नहीं निकल पाए. क्योंकि वह गुफा में चार किमी अंदर पहुंच गए थे जहां से बाहर निकलना उनके लिए बेहद मुश्किल भरा था. लगातार बारिश की वजह से गुफा पानी से भर गयी थी. पहाड़ों के आतंरिक जलश्रोंतों से काफी पानी गिर रहा था. सभी खिलाड़ियों की उम्र 11 से 16 साल के मध्य थी. जूनियर खिलाड़ियों ने गुफा के अंदर पट्टाया द्वीप टीले पर अपनी जान बचायी. भूख लगने पर बरसाती पानी पिया.

thailand cave rescueगुफा में 4 किमी अंदर पहुंच गए थए बच्चे

थाईलैंड सरकार के अथक प्रयास के दस दिन बाद ब्रिटेन के गोताखारों ने आखिरकार लापता खिलाड़ियों को खोज निकाला. राहत एवं बचाव दल को लापता बच्चों के स्कूली बैग मिले जिससे यह संभावना पक्की हो गयी कि बच्चे इसकी गुफा में हैं. टीम मिशन पर आगे बढ़ी तो सभी उस सुरक्षित टीले पर जिंदा मिले. जिसके बाद इस मिशन को गति मिली. गुफा से सभी को सुरिक्षत निकालना बड़ी चुनौती थी. इस पूरे अभियान में थाई सेना ने कहा था कि चार माह का वक्त लग सकता है. लेकिन गुफा के हालात दिन ब दिन बुरे हो रहे थे. राहत एवं बचाव कार्य की वजह से गुफा के अंदर आक्सीजन कम होती जा रही थी.

बचाव अभियान के दौरान एक पूर्व सेनाकर्मी की मौत से मिशन को बड़ा झटका लगा. सरकार और अभियान में लगे 1200 राहत कर्मियों के सामने जिंदा बचे खिलाडियों को सुरक्षित निकालना बड़ी चुनौती थी. प्राकृतिक चुनौतियों का सामने करते हुए पानी से लबालब संकरी गुफा में पहुंचना और गुफा में फंसे खिलाड़ियों के लिए आक्सीजन, खाने-पीन के साथ दूसरी साम्रागी पहुंचाना धरती पर लड़ी जाने वाली किसी भी जंग से कठिन था. हलांकि इंसानी दृढ़ इच्छा शक्ति ने इस पर जीत हासिल कर ली. विकास के इस अद्भूत चमत्कार ने साबित कर दिया कि तकनीकी विकास के दौर में विपरीत परिस्थतियों में भी इंसान चाहे तो सबकुछ हासिल कर सकता है. थाईलैंड सरकार और वैश्विक सहयोग ने असफल मिशन को कामयाब बना दिया.

thailand cave rescueबच्चों को वापस पाकर लोगों की खुशियों का ठिकाना न था

मानव सभ्यता का यह सबसे कठिन मिशन था. क्योंकि जहां बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालना था. वहीं हर दिन मौसम की वजह से चुनौतियां बढ़ती जा रही थी. क्योंकि आक्सीजन भी सिर्फ 15 फीसदी बचा था. गुफा से पम्प के माध्यम से 12 करोड़ लीटर पानी बाहर निकाला जा चुका था लेकिन पानी का लेवल कम नहीं हो रहा था. मिशन पर एक बार जाने में पूरे 6 घंटे का वक्त लग रहा था. सरकार पाइप और सिलेंडर के जरिए आक्सीजन को अंदर भेज रही थी. मिशन के दौरान जगह-जगह आक्सीन डिपो बनाए गए.

इस अभियान में अमेरिकी वैज्ञानिक भी आ जुटे. एक वैज्ञानिक ने एयर पाइप ट्यूब डालने का प्रस्ताव दिया और इसी दौरान एक छोटी पनडुब्बी भी बना डाली. दूसरी तरफ पहाड़ को ड्रिल करने का काम चला, लेकिन पूरी डिल 400 मीटर पर रोक दी गयी. क्योंकि गुफा के अंदर पहाड़ों के खिसकने का खतरा था जिसकी वजह से बच्चों की जान जा सकती थी. परिवारों को पूरा भरोसा दिलाया गया कि गुफा के अंदर सभी बच्चे सुरक्षित हैं. बच्चों ने अपने परिजनों को पत्र भी खिला था कि आप घबराएं नहीं हम बहादुर बच्चे हैं. इस दौरान उनके कोच इकाबोला ने उनकी खूब मदद की. परिजनों से इकाबोला ने माफी भी मांगी. बहादुर कोच संकट की घड़ी में बच्चों को जहां जिंदगी बचाने के उपाये बताते रहे वहीं साथ में अपने हिस्से का भोजन भी उपलब्ध कराया.

thailand cave rescueपानी का स्तर लगातार बढ रहा था

मिशन के दौरान बरसात के थमने का इंतजार नहीं किया जा सकता था. क्योंकि हालात हर दिन बुरे हो रहे थे. जूनियर खिलाड़ियों की निगरानी एक बड़ी समस्या थी. आक्सीन, भोजन, स्वास्थ्य की देखभाल के साथ रोशनी की सुविधा गुफा में अनवतर पहुंचाना प्राथमिकता थी. दूसरी बात गुफा के बाहर और अंदर का वातावरण बिल्कुल अलग था. गुफा में फंसे बच्चे और राहत दल के लोग किसी बीमारी की चपेट में न जाएं एक अलग समस्या थी. खिलाड़ियों के पैरों में इंफेक्शन की शुरुवात भी होने लगी थी.

आपको याद होगा हरियाणा के कुरुक्षेत्र में 2006 में बोर बेल में गिरे मासूम प्रिंस को बचाने के लिए सेना ने किस तरह लीड किया था. देश भर दुआओं का दौर चला था. इसी तरह 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज में 64 मजदूरों को और चिली में 33 को कैप्सूल का ढ़ांचा तैयार कर सुरक्षित बाहर निकाला गया था. लेकिन प्रकृति और इंसान के तकनीकी विकास के मध्य इस अघोषित युद्ध पर जीत मिल गयी. गुफा में सभी जिंदगियों को सुरिक्षत निकाल लिया गया. विज्ञान, विकास और आपसी सामांजस्य से प्रकृति के साथ इंसान ने एक अद्भुत युद्ध जीतने की कला भी सीखी. यह घटना कभी इतिहास में दर्ज होगी. कहते हैं कि अंत भला तो सब भला. मिशन की इस सफलता पर पूरी दुनिया में जश्न है. सबसे अधिक मासूम बच्चों के परिजन खुश हैं जिन्होंने शायद अपने बच्चों के सकुशल बाहर आने की कल्पना की होगी. दुनिया को बनाने वाला ईश्वर यानी मोंगाबों खुश और मिशन कामयाब हुआ.

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