इलाहाबाद के वो 'हरियाली गुरु' जो रक्षाबंधन पर पेड़ों को रक्षासूत्र बांधते हैं !
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉक्टर एनबी सिंह, हर रक्षाबंधन पर पेड़ पौधों को रक्षासूत्र बांधते हैं और वर्ष भर उनके सुरक्षा के लिए संकल्पित रहते हैं. प्रोफेसर साहब ने अब तक एक लाख से अधिक पौधें लगाए हैं.
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉक्टर एनबी सिंह हर रक्षाबंधन पर पेड़ पौधों को रक्षासूत्र बांधते हैं और वर्ष भर उनके सुरक्षा के लिए संकल्पित रहते हैं. प्रोफेसर साहब ने अब तक एक लाख से अधिक पौधें लगाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया है और अपने इसी विशेष प्रकृति सेवा के कारण उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय समेत पूरे भारत में 'हरियाली गुरु' के नाम से जाना जाता है. प्रोफेसर एनबी सिंह के अनुसार 'रक्षाबंधन का अर्थ है अपने किसी प्रियजन की सुरक्षा की कामना से उसे रक्षासूत्र बांधना, ऐसे में हम अपने प्रकृति में पाए जाने वाले अमूल्य रत्न रूपी जीवनदायी पेड़-पौधों की सुरक्षा की कामना से उन्हें रक्षा सूत्र बांधकर उनकी सुरक्षा करने की शपथ लेते हैं. ठीक उसी प्रकार जैसे एक बहन अपने भाई के कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर उसके मंगल की कामना करती है.' हिंदू धर्म में पूजा पाठ कराने के दौरान ब्राह्मण द्वारा अपने जजमान को रक्षासूत्र बांधा जाता है. गोवर्धन पूजा के दौरान गौ सेवकों के द्वारा गाय को भी रक्षासूत्र बांधा जाता है. ठीक ऐसा ही कुछ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एनबी सिंह भी करते हैं, प्रोफेसर साहब हर वर्ष रक्षाबंधन के दिन अपने आस पास के पेड़ पौधों को राखी बांधते हैं.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हरियाली गुरु का रक्षाबंधन मनाने का अंदाज मन को मोह लेने वाला है
प्रयागराज और इसके आसपास के इलाकों में प्रोफेसर साहब लगातार पर्यावरण को बचाने के लिए अपना भगीरथ प्रयास कर रहे हैं. प्रोफेसर साहब ने अपना जीवन पूरी तरह प्रकृति सेवा के लिए समर्पित कर दिया है. एक लाख से अधिक पौधे रोपकर वह अपनी इस वृक्ष-साधना के लिए प्रयागराज समेत पूरे देश भर में चर्चित हो गए हैं. कभी लोग उन्हें सनकी-पागल कहते थे, वो लोग भी आज उनके सामने श्रद्धा से झुक जाते हैं.
हरियाली गुरु जब किसी शादी,जन्मदिन अथवा किसी अन्य प्रकार के उत्सव में आमंत्रित किए जाते हैं तो वह अपने साथ उपहार के रूप में पौधे लेकर जाते हैं और वहां उपहार स्वरूप पौधे ही दे देते हैं. जो उनके प्रकृति प्रेम का अनन्य उदाहरण है. 'पौधे प्राणवायु देते है और इन्हीं से वर्षा होती है और वर्षा से जल प्राप्त होता है. और जल ही मनुष्य के जीवन का आधार है, इसलिए पौधों से हमारा अटूट सम्बन्ध है, जिस दिन यह सम्बन्ध टुटा उस दिन धरती पर कोई नहीं बचेगा.'
प्रोफेसर एनबी सिंह छुट्टी के दिनों में भी छात्रों को हरियाली गुरु यूनिवर्सिटी कैम्पस में पेड़ पौधों की देखभाल करते मिल जाएंगे. प्रोफेसर एनबी सिंह के पर्यावरण के प्रति सेवाभाव को देखते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने 2013 उनकी नियुक्ति विश्वविद्यालय के गार्डन इंचार्ज के पद पर कर दी थी. गार्डन इंचार्ज बनने के बाद उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर और इसके छात्रावासों में नीम, बेल, पीपल, कदंब, पाकड़, गुलर, इमली, आंवला, चिलबिल आदि के पौधे लगवाए. उनके लगाए गए कुछ पौधे अब वृक्ष बनकर फल-फूल भी देने लगे हैं.
प्रोफेसर साहब सिर्फ पौधे लगाते ही नहीं, बल्कि उनकी देख-भाल भी करते रहते हैं. ध्यान रखते हैं कि कोई पौधा सूखने पाए. अगर किसी वजह से कोई पौधा सूख जाता है तो उसकी जगह दूसरा पौधा लगाते हैं. कोई पौधा बीमार दिखा तो तत्काल उसका उपचार भी करते हैं. हरियाली गुरु प्रयागराज और उसके आसपास के जिलों में घूम-घूमकर गुलाब, गुड़हल, आम, गुलर, पाकड़, सागौन, नीम आदि के पौधे लगाने के साथ ही लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं.
हरियाली गुरु के लिए वृक्षारोपण एक जुनून है. हरियाली गुरु केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होने के बाद भी अपने प्रकृति प्रेम के कारण धन धान्य से संपन्न होते हुए भी महंगी गाड़ी से नहीं बल्कि अपनी एक साधारण सी साइकिल से चलते हैं, जिसे उन्होंने दशकों पहले खरीदा था, हरियाली गुरू ने साइकिल के आगे बास्केट लगवा रखी है अमूमन उसमें पौधे और किताबें देखने को मिलता है लेकिन कोरोना महामारी के दौर में लॉकडाउन के दौरान प्रोफेसर साहब इसी साइकिल पर सवार होकर मुंह पर मास्क, हाथ में दस्ताना और गले में इविवि का परिचय पत्र लटकाए इविवि के समीप स्थित लल्ला चुंगी चौराहे पर प्रवासी मजदूरों एवं अन्य जरूरतमंदों की मदद करते हुए मिल जाते थे.
साइकिल के आगे बास्केट में ब्रेड, मक्खन और बिस्किट तो कभी मास्क रखकर जरूरतमंदों को वितरित करते हुए इन्हें प्रतिदिन देखा जाता था. हरियाली गुरु कहते हैं-“आगे भी इसी तरह मदद करता रहूंगा, मुझे बहुत आनंद आता है, ऐसा करके. आज देश का राष्ट्र निर्माता सड़क पर है तो मैं घर में कैसे रह सकता हूं.' प्रोफेसर साहब ने आवास पर ही एक नर्सरी बना रखी है. यहां वे पौधों और बीजों का संग्रह करके रखते हैं.
इसे खरीदने व रखरखाव के लिए वेतन का बड़ा हिस्सा खर्च कर देते हैं. विश्वविद्यालय के छात्र समेत प्रायगराज और उसके आसपास के जिलों से लोग उनके आवास पर आकर वृक्षारोपण के लिए पौधे लेकर जाते हैं. वे पौधों के लिए कोई पैसा नहीं लेते हैं. प्रोफेसर साहब का पौधों के प्रति वैसा ही अनुराग है जैसे मां का अपनी संतान से, किसान का अपनी फसल से और वैज्ञानिक का अपने अनुसंधान से होता है.
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं- कुंभ के दौरान और स्मार्ट सिटी के नाम पर भी हजारों पेड़ काटे गए. इस वजह से दूसरे शहरों की तरह प्रयागराज का भी पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर प्रदेश सरकार से जवाब भी मांगा था. इसके बाद प्रोफेसर साहब ने अपने कुछ शिष्यों को साथ लेकर बड़े पैमाने पर पूरे प्रयागराज शहर में वृक्षारोपण का कार्य किया और अब उनके लगाए पौधे धीरे-धीरे प्रयागराज की सड़को पर हरियाली की आभा बिखेरने लगे हैं.
वैसे तो हरियाली गुरु वनस्पति विज्ञान के विद्वान हैं, लेकिन उनको जंतु विज्ञान में भी खास लगाव है, और यही कारण है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रावासों और कैंपस में यदि सां , जैसे कोई भी जहरीले जीव – जंतु दिखाई पड़े तो छात्र और विश्वविद्यालय प्रशासन तुरंत हरियाली गुरु को याद करता है, प्रोफ़ेसर साहब ने अब तक सैकड़ो से अधिक जहरीले सांप के अलावा 40 किलोग्राम और 15 फ़ीट लम्बे दर्जनों अजगर को भी पकड़ा है.
खास बात यह है कि प्रोफेसर साहब इन जीव- जंतुओ को पकड़ने के बाद उन्हें तनिक भी नुकसान नहीं पहुँचने देते हैं बल्कि अपनी निगरानी में उन्हें जंगल में छुड़वा देते हैं प्रोफेसर साहब जीव – जंतुओं को न मारने के पीछे वजह बताते हुए कहते हैं कि 'हम लोग नाग पंचमी को उन्ही सांप की पूजा करते है तो फिर मार कैसे सकते है. वह मनुष्य के लिए लाभदायक हैं. हमारा अस्तित्व इनपर निर्भर करता है. मैं सांप इसलिए पकड़ता हूं ताकि लोगों का डर दूर कर सकूं, क्योंकि सांप के काटने के बाद केवल 20 प्रतिशत लोगों की मृत्यु इनके जहर से होती है वहीं 80 प्रतिशत लोग हार्ट अटैक से मर जाते हैं.
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