आलोक नाथ मामले में मुम्बई कोर्ट का बयान कई Me too केस को मोड़ देगा
15-15, 20-20 साल पुराने यौन शोषण के मामलों में पीड़िता के लिए ये संभव नहीं है कि उसे कानून की नज़र से जरूरी हर बात याद हो. और यही खामी, शिकायतों की सच्चाई को शक के दायरे में लाने के लिए काफी होगी.
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#Metoo मामले के सबसे चौंकाने वाले आरोपी आलोक नाथ को मुंबई कोर्ट से 5 लाख की सिक्योरिटी पर जमानत मिल गई है. आलोक नाथ को बेल देने के बाद सेशन कोर्ट ने इस मामले में अपना स्टेटमेंट भी जारी कर दिया है. कोर्ट का कहना है कि इतने समय बाद दर्ज करवाई गई FIR में खतरा रहता है कि कहीं घटना को बढ़ा-चढ़ाकर पेश न किया गया हो, या उसमें नई बातें तोड़ी-मरोड़ी गई हों. विनता नंदा के मामले में कोर्ट ने ये बात भी कही कि 'शिकायतकर्ता को घटना के बारे में सब कुछ याद है कि क्या हुआ, लेकिन उसे ये नहीं याद कि ये कब हुआ, तारीख क्या थी, महीना कौन सा था. ऐसे में शिकायत को एकदम सच्चा नहीं माना जा सकता है.'
कोर्ट का कहना है कि, 'स्क्रीनराइटर विनता नंदा ने कोर्ट को बताया कि #Metoo मूवमेंट में उजागर हो रही यौन शोषण की घटनाओं को देखकर उन्हें अपने साथ ही घटना को रिपोर्ट करने की हिम्मत मिली. लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि घटना के तत्काल बाद इसकी शिकायत न करने का फैसला 'अपने फायदे' को देखकर लिया था.
आलोक नाथ को कोर्ट ने इस बिनाह पर बेल दे दी है कि विनता को उस रात से जुड़ी कई बातें याद नहीं हैं.
'जहां तक मामले में देर से एफआईआर करने की बात है तो शिकायत में बताया गया है कि विनता ने अपने दोस्तों से इस मामले में सलाह ली थी और उनके दोस्तों ने सलाह दी कि आलोक नाथ एक बड़े एक्टर हैं और तुम्हारी सारी कंपनी पहले ही बंद हो चुकी हैं इसलिए कोई इस कहानी पर यकीन नहीं करेगा. इसलिए उन्होंने शिकायत दर्ज नहीं करवाई. इसलिए ऑन रिकॉर्ड कुछ भी नहीं है जिससे ये साबित हो सके कि शिकायत करने वाली महिला को धमकी मिल रही थी. ऐसे में ये साबित होता है कि महिला ने शिकायत अपने फायदे के लिए दर्ज नहीं करवाई थी.' (ये बयान सेशन जज एसएस ओझा का है).
आलोक नाथ ने जमानत के लिए इसी आधार पर अर्जी दी थी. उनके अनुसार उनपर झूठा आरोप लगाया जा रहा है. पर इस बात पर भी विनता के वकील की अपील है कि आलोक नाथ ने विनता को डराया-धमकाया था. पर कोर्ट ने आलोक नाथ को बेल देते हुए कहा है कि हो सकता है कि विनता ने आलोक नाथ के खिलाफ गलत आरोप लगाया हो.
हालांकि, विनता के वकील ध्रुवी कपाडिया ने सुप्रीम कोर्ट के कई स्टेटमेंट दिखाए कि ऐसे मामले में एफआईआर का देर से फाइल होना उसकी सत्यता पर सवाल नहीं खड़े कर सकता. पर फिर भी कोर्ट का यही फैसला था कि अगर एफआईआर देरी से दर्ज हुई है तो स्टेटमेंट में फर्क हो सकता है. और उसका कारण शंका के दायरे से बाहर नहीं हो सकता.
क्या वाकई देर से एफआईआर फाइल करना इतना खतरनाक है?
देर से शिकायत दर्ज करवाने वाले मामले में कई बार ऐसा होता है कि तथ्यों को एकदम सही साबित करना मुश्किल हो जाता है. दूसरी बात ये है कि एफआईआर दर्ज करवाने की कोई तारीख तय नहीं होती इसलिए पुराने केस की एफआईआर भी दर्ज करवाई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में समय सीमा निर्धारित नहीं की है.
ऐसे तो कई #Metoo केस अंजाम तक नहीं पहुंच पाएंगे-
भारत में #Metoo मूवमेंट के तेजी पकड़ने के साथ ही न जाने कितने मामले ऐसे हैं जहां विक्टिम ने सालों बाद आकर अपने साथ हुई घटना की जानकारी दी है.
1. तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर के खिलाफ 10 साल बाद बयान दिया था और घटना की जानकारी दी थी.
2. मिनिस्टर एमजे अकबर के मामले में भी कई जर्नलिस्ट ने दस साल से भी पुराने मामले बताए थे.
3. कॉमेडियन वरुण ग्रोवर पर एक महिला ने बीएचयू में 2001 में शोषण का आरोप लगाया था.
4. स्त्री फिल्म की एक्ट्रेस फ्लोरा सैनी ने प्रोड्यूसर गौरांग दोशी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने साल 2007 में शोषण किया था.
5. तनुश्री दत्ता ने ही फिल्ममेकर विवेक अग्निहोत्री पर आरोप लगाया था कि उन्होंने 2005 में तनुश्री का शोषण किया था.
6. क्वीन फिल्म के प्रोड्यूसर विकास बहल पर भी कंगना रानौत ने 2014 में फिल्म की शूटिंग के दौरान शोषण करने का आरोप लगाया.
7. कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती, चेतन भगत, रजत कपूर, कैलाश खेर, कॉमेडियन अदिती मित्तल, म्यूजिक कंपोजर अन्नू मलिक, डायरेक्टर साजिद खान और ऐसे न जाने कितने ही लोग हैं जिनपर पुराने मामलों के तहत ही आरोप लगाए गए हैं.
सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में ही नहीं, बल्कि लगभग हर फील्ड में #Metoo के पुराने मामले ही सामने आए हैं. लगभग सभी मामलों में आरोपियों ने अपने ऊपर लगे इल्जामों को झूठा बताया. इन आरोपों के खिलाफ मानहानि का दावा करते हुए कोर्ट चले गए. अब जिस आधार पर आलोक नाथ को जमानत मिली है, उसने बता दिया है कि सोशल मीडिया पर चलने वाली अदालत और कानून की अदालत में जमीन आसमान का फर्क होता है.
#Metoo अभियान से जिन महिलाओं ने सहानुभूमि बंटोरी थी, उन्हें अदालतों में अब वकीलों की कठोर जिरह का सामना करना पड़ेगा. इनमें से कई मामलों के सबूत न होने के कारण खत्म हो जाने की आशंका है. लेकिन, यदि कोर्ट की आशंकाओं पर गंभीरता से विचार करें तो यह भी माना जाना चाहिए कि यदि एक भी आरोप किसी शख्स को फंसाने की नीयत से लगाया गया होगा तो उससे इस #Metoo अभियान को ही हानि पहुंचेगी.
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