Amphan cyclone: तूफान से निपटने की तैयारियों में ओडिशा से बहुत पीछे है ममता का बंगाल
अम्फान तूफान (Amphan Cyclone) की चपेट में यूं तो पश्चिम बंगाल (West Bengal) और ओडिशा एक समान आए हैं, लेकिन बंगाल की तबाही की चर्चा ज्यादा है. 80 लोग जान गंवा चुके हैं. दोनों जगह रह चुके होने के अनुभव से बता रहा हूं कि इन दोनों राज्यों में तूफान से निपटने की तैयारी में फर्क क्या है...
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चक्रवातीय तूफान अम्फान (Amphan) ने पश्चिम बंगाल (West Bengal) के 7 तटीय जिलों में भयानक तबाही मचाई है. हुगली, कोलकाता (Kolkata), 24 उत्तर परगना, 24 दक्षिण परगना, पूर्वी मिदनापुर, पश्चिमी मिदनापुर और हावड़ा जिलों में जो तबाही देखने को मिल रही है, वैसी तबाही अब तक प्रदेश के लोगो ने नहीं देखी थी. शहरी क्षेत्रों में हजारों घर तबाह हो गए. तूफान ने घरों की छतें उड़ा दीं. कच्चे मकानों को धराशायी कर दिया. अकेले कोलकाता में करीब 5500 बड़े-बड़े पेड़ उखड़ कर घरों, गाड़ियों, बिजली के तार और सड़कों पर गिर पड़ें. मोबाइल फोन टावर को भी नुकसान पहुंचा है. तूफान (Cyclone) के चलते प्रभावित जिलों में बिजली और फोन सेवाओं को काफी ज्यादा प्रभावित किया है. ग्रामीण इलाकों में भी तबाही का ऐसा ही मंजर देखने को मिला है. अब तक 80 लोगों के मारे जाने की पुष्टि राज्य सरकार कर चुकी है. पूरे प्रदेश की 60 फीसदी, यानी करीब 6 करोड़ लोग इससे प्रभावित हुए हैं. इस तबाही को बताती हुई प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं- यह एक भयावह आपदा है. अपनी जिंदगी में ऐसी भयानक तबाही नहीं देखी. राज्य को एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है. हम स्थिति समान्य करने कोशिश में लगे हैं पर इसमें वक्त लगेगा.
अम्फान तूफान ने पूरे पश्चिम बंगाल को अपनी चपेट में लेकर जनजीवन अस्त व्यस्त कर दिया है
अम्फान तूफान ने 165 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कोलकाता और आसपास के जिलों में तबाही मचाई है. तेज आंधी के साथ-साथ मूसलाधार बारिश ने भी हालत को और बिगाड़ कर रख दिया. तूफान गुजर जाने के दो दिन बाद भी हालात समान्य नहीं हुए हैं. हावड़ा, हुगली, कोलकाता, 24 दक्षिण परगना के कई इलागों में अब भी बिजली, दूरसंचार और पेयजल आपूर्ति सेवा बहाल नहीं हो पाई है. हालांकि इसे बहाल करने में राज्य सरकार युद्ध स्तर पर जुटी हुई है.
अम्फान तूफान की इस तबाही ने मुझे को एक साल पहले ओडिशा में आए फानी चक्रवातीय तूफान की याद ताजा कर दी. तब मैं भुवनेश्वर में ही रह रहा था. 3 मई 2019 को भयंकर तूफानी चक्रवात फानी ने ओडिशा के तटीय जिलों, विशेषकर पुरी, खोर्धा, जगतसिंहपुर और कटक जिलों को तबाह कर दिया था. पुरी और भुवनेश्वर की हालात तो बेहद खराब हो गई थी. उस वक्त भी फानी तूफान ने अम्फान की तरह ही 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तबाही मचाई थी.
फानी तूफान के बाद हरियाली के लिए मशहूर भुवनेश्वर शहर पूरी तरह से बदल गया. लाखों की संख्या में पेड़ उखड़ कर गिर पड़े या टूट कर नष्ट हो गए. कोई सड़क, कोई पार्क इस तबाही से अछूता नहीं बचा था. पेड़ों के टूट कर गिरने से पूरी राजधानी में बिजली आपूर्ति तंत्र तहस नहस हो गई थी. चारों तरफ सड़कों पर टूट कर गिरे बिजली के खंभे, बिजली के तार दिख रहे थे.
इसी के साथ बिजली के खंभों से होकर गुजरने वाली केबल और दूर संचार के तार भी ध्वस्त हो गए. सबसे बड़ी समस्या जल आपूर्ति की पैदा हो गई. घरों की टंकियों तक पानी नहीं पहुंच रहा था. लोग किसी तरह किराए पर जेनरेटर सेट चला कर घरों की टंकियों तक लोग पानी ले जा रहे थे. एक एक घंटे के लिए 1200 से 1500 रुपये तक लिए जा रहे थे.
अम्फान को लेकर पश्चिम बंगाल की स्थिति बद से बदतर हो गयी है
यह प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहा था. अधिकांश लोगों के फोन बंद पड़े थे. जिसके चालू थे तो नेटवर्क नहीं होने पर बात नहीं हो पा रही थी. तूफान के 10 दिन बाद हमारे ऑफिस में बिजली आई थी. वह भी तब जब हमारा ऑफिस भुवनेश्वर स्टेशन के पास, मेन बाजार और इलाके के बीच स्थित था. राजधानी के लोग बताते थे कि 1999 के महा विनाशक तूफान जैसा ही फानी तूफान का भी कहर था.
हालात कोलकाता से कहीं अधिक भयावह थे. इससे भी ज्यादा भयावह हालात पुरी शहर और जिले के थे. मुझे याद है, राजधानी भुवनेश्वर में घरों की छतों पर लगे 90 फीसदी डीटीएच एंटिना उखड़ गए थे. इसे रि-इंस्टाल करने के लिए डीटीएच कंपनियों को बिहार, झारखंड, बंगाल से अपने टेक्निशियन बुलाने पड़े थे. राजधानी में लगे लगभग सभी फोन टावर क्षतिग्रस्त हो चुके थे।मेरे घर तक 12 दिन बाद बिजली आई थी.
शहर के आउटर इलाकों तक बिजली पहुंचने में 20 से 25 दिन लग गए. ये हालात तो राजधानी की थी. पुरी में तो इस तूफान की तबाही और उससे उपजी त्रासदी महीनों तक चली. इसके बावजूद, इतना साफ लगा अम्फान तूफान से जो तबाही कोलकाता और आसपास के इलाकों में देखने को मिली, उस तरह की तबाही ओडिशा में देखने को नहीं मिली.
मेरा आशय जनहानि को लेकर है. तूफान से निपटने में ओडिशा सरकार की तैयारी भी पश्चिम बंगाल सरकार से बेहतर लगी थी. अम्फान तूफान से प्रदेश में 80 लोगों के मारे जाने की पु्ष्टि हो चुकी है. लेकिन ओडिशा में जनहानि का आंकड़ा बहुत कम था. शायद इसकी एक वजह, चक्रवातीय तूफानों से लड़ने में ओडिशा का सतत और लंबा अनुभव हो सकता है.
ओडिशा हर साल एक से अधिक तूफान को झेलता आया है. इसके चलते, ऐसी प्राकृतिक आपदा का सामना करने में उसे एक तरह से दक्षता हासिल हो गई है. लगातार प्राकृतिक आपदा सह रहे ओडिशा ने तटीय इलाकों में आपदा आश्रय स्थलों की एक श्रृंखला तैयार कर ली है. आपदा से अगाह करने का कारगर तंत्र विकसित कर चुका है.
ऐसी किसी भी चेतावनी को सरकार गंभीरता से लेती है और उसके अनुसार काम भी करती है. इसी का नतीजा था कि फानी तूफान के समय ओडिशा सरकार ने करीब 11 लाख लोगों को खतरा संभावित इलाकों से निकाल कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया था. लेकिन इस संदर्भ में पश्चिम बंगाल सरकार की तैयारी थोड़ी कम दिखी.
ओडिशा की तुलना में कहीं अधिक जनसंख्या घनत्व होने के बावजदू पश्चिम बंगाल सरकार ने साढ़े 3 लाख लोगों को खाली करा कर दूसरी जगह शिफ्ट कराया. ऐसे संकट के लिए समर्पित आश्रय स्थलों का पर्याप्त संख्या में ना होना भी अधिक जनहानि का कारण बना. हालांकि, कोविड 19 और लॉकडाउन की वर्तमान स्थिति ने भी इस तूफान को और अधिक विनाशकारी बना दिया.
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