गांधी जी की मौत के बाद पाक में छपा एक संपादकीय...
गांधी जी दीर्घायु हों... हमने भी गांधी जी को विनम्र श्रद्धांजलि देने के लिए इस तरह का शीर्षक चुना है
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गांधी जी दीर्घायु हों...
एक ब्रिटिश परंपरा रही है. राजा की मौत की खबर कुछ इस तरह सुनाई जाती रही है- 'किंग अब नहीं रहे, दीर्घायु हों किंग...'. पच्चीस साल पहले गांधी जी ने स्व. सी.आर.दास के निधन पर भी चलते-फिरते ऐसा ही कुछ कहा था "देशबंधु नहीं रहे, दीर्घायु हों देशबंधु". हमने भी गांधी जी को विनम्र श्रद्धांजलि देने के लिए इस तरह का शीर्षक चुना है, क्योंकि हम दावा कर सकते हैं कि इस सदी में वे मानवता और दलितों के सच्चे सेवक थे. इस सम्पादकीय को लिखने के वक्त महात्मा गांधी को यह दुनिया छोड़े हुए 48 घंटे बीत चुके हैं. सुबह की धुंध की तरह सदमे का पहला असर धीरे धीरे कम हो रहा है, इस उम्मीद के साथ सूरज की किरण चमक रही है कि गांधी जी का बलिदान बेकार नहीं गया.
कम से कम हम भारत में रहने वाले अपने दोस्तों को तेज़ आवाज़ में बता सकते हैं कि गांधी जी का निधन पाकिस्तान के लिए भी उतना ही बड़ा झटका है जितना कि भारत के लिए. इस बात पर यकीन किया जाए कि उस दर्द की शिद्दत और नम आँखों का दर्द लाहौर शहर में भी देखा और महसूस किया जा सकता है. हमने भी यहां एक छुट्टी और हड़ताल की शक्ल में हमारे देशवासियों को दु:ख का इजहार करते हुए देखा है.
हम अपने हिंदुस्तानी दोस्तों को बता दें कि हम पाकिस्तानी भी सद्भावना में विश्वास रखते हैं, जो दोस्ती की निशानी है. हमारे यहां भी बहुत से इंसान हैं जो किसी भी दुख की घड़ी में दुखी होते हैं. सीमा के दूसरी तरफ होने वाले दुख से भी, किसी मतलब या सहयोग पाने की उम्मीद के लिए नहीं. हमारा मानना है कि जब से भारत में ये घटना हुई है, पूरे देश के दिल में त्रासदी ने जगह ले ली है.
भारत सरकार को भी इस बात का अहसास है कि वे लम्बे समय से एक ज्वालामुखी के मुहाने पर बैठे हैं. इन सब बातों से बढ़कर मुंबई की एक छोटी सी घटना है जहां हिंदू समुदाय की भीड़ ने शनिवार को पाकिस्तान विरोधी फ्रंट के कार्यालय खोले जाने पर उसे तोड़ दिया. और हम मानते हैं कि हम भारत का ही एक हिस्सा रहे हैं, बदकिस्मती से हम इस तथ्य को भूल जाते हैं. हम कोई भारत के दुश्मन नहीं है. हम मुसलमान हैं कोई पापी नहीं हैं. ये सिर्फ दिखावा है कि हिंदुओं के एक बड़े वर्ग ने ऐसी जगह बना दी जहां उनके दुश्मन रहते हैं.
अभी कुछ समय पहले लखनऊ में भारत के उपप्रधानमंत्री सरदार पटेल उन राष्ट्रवादी मुसलमानों के सामने उस आरएसएस और हिंदू महासभा की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे, जिसने इतिहास के सबसे बुरे अपराधी नाथुराम विनायक गोडसे जैसे लोग पैदा किए. सरदार पटेल उन लोगों से कांग्रेस के साथ मिलकर रहने की बात पूछ रहे थे. जबकि उस वक्त कांग्रेस प्रमुख पंडित नेहरू अमृतसर में थे जहां आरएसएस और हिंदू महासभा ने बड़े तरीके से एक बड़ी राजनीतिक त्रासदी को अंजाम दिया था, जो देश के लिए नुकसान दायक थी.
गांधी जी के व्रत धारण करने के ठीक एक दिन बाद ही विभिन्न राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने उनसे अनशन तोड़ने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने का वादा किया. लेकिन उस वक्त भी हिंदू महासभा के नेता देशपांडे और प्रो रामसिंह मुसलमानों को भारत से बाहर कर दिए जाने के लिए कह रहे थे. अगर उसी वक्त भारत सरकार इन सांप्रदायिक और आतंकवादी नेताओं को देश से बाहर करने की कोशिश की होती तो, शायद गांधीजी 125 साल जीते. पटेल का खुफिया विभाग अगर दिल्ली में निर्दोष मुसलमानों के घरों और भारत के अन्य भागों में बम और हथियार छिपाने की बजाय इस दुनिया के लिए अनमोल जीवन समान गांधी जी की हिफाजत करते तो शायद इस आपदा से बचा जा सकता था.
दूर होने के बावजूद इन त्रासदी और घटनाओं का ये जिक्र यहां इसलिए था कि पचास लाख मुसलमानों की किस्मत के तार भारत से जुड़े हैं और यही बड़ी बात हमें यह सब कहने को मजबूर कर रही है. हम भारत की सत्ता चलाने वाली सरकार से मांग करते हैं कि वो इन लोगों के साथ पक्षपात के बिना साफ तरीके से पेश आए.
लेकिन हम उन तथ्यों का पूरी कृतज्ञता के साथ प्रचार कर रहे हैं जिनमें भारतीय मुसलमानों के लिए न्याय व्यवस्था और निष्पक्षता का प्रावधान है और जिसके लिए उन्होंने अपने बलिदान दिया. हम उनकी आत्मा की शांति और खुशी के लिए यह जागरूकता फैला रहे हैं. महात्मा गांधी इन अनगिनत मुसलमानों के लिए हमेशा उम्मीद और साहस का प्रतीक बने रहेंगे. वो भले ही इस दुनिया में नहीं हों लेकिन वो सदियों अपने कामों की वजह से ज़िंदा रहेंगे.
-फैज अहमद फैज (2 फ़रवरी 1948, पाकिस्तान टाइम्स)
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