13 साल की बच्ची 8 महीनों तक हवस के 80 भूखे भेड़ियों के चंगुल में रही, और इतना 'सन्नाटा'?
आंध्र प्रदेश के गुंटूर में एक 13 साल की लड़की लगातार 8 महीनों तक हवस के 80 भूखे भेड़ियों द्वारा नोची गयी. भले ही पुलिस ने चुस्ती दिखाते हुए इन 80 वहशियों को दबोच लिया हो लेकिन जब वक़्त हर दूसरी बात को मुद्दा बनाने का हो, इस मामले पर किसी तरह की कोई बात ही नहीं हो रही और ये चीज परेशान करने वाली है.
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घर का कोई कोना या फिर अपना रूम... उस रूम में यहां वहां फैली किताबें. कुछ रंग. उन रंगों से किसी कागज पर या फिर दीवार पर बनाई गयी पेंटिंग. प्लास्टिक का चूल्हा. उस चूल्हे पर छोटे छोटे बर्तन. लकड़ी का छोटा सा बेलन पटरा. कुछ खिलौने शायद गुड्डे या गुड़िया या फिर डॉक्टर सेट. इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, स्कूल, ट्यूशन, पढ़ाई, ढेर सारी मस्ती और मां बाप का दुलार... एक 13 साल की लड़की की ज़िन्दगी कुछ ऐसी ही होती है. उसे नहीं पता कि रूस यूक्रेन में क्या कर रहा है. न ही किसी 13 साल की लड़की को इस बात से कोई मतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं? जिसका असर उसके पापा की जेब पर पड़ रहा है. उसकी अपनी ख्वाइशें हैं. अपनी जिद है. अपनी छोटी छोटी खुशियां हैं. मगर क्या हर 13 साल की लड़की की ज़िन्दगी ऐसी ही या इससे मिलती जुलती होती है? होती होगी. लेकिन सबकी नहीं. कम से कम उस 13 साल की लड़की की तो बिलकुल भी नहीं जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर से ताल्लुख रखती है और जिसका किसी एक या दो ने नहीं बल्कि 80 मर्दों ने बलात्कार किया है और पूरे 8 महीने तक किया है.
गुंटूर में जो कुछ भी 13 साल की लड़की के साथ हुआ है उसने अपने को इंसान कहने वालों पर सवालिया निशान लगा दिए हैं
गुंटूर में एक 13 साल की लड़की लगातार 8 महीनों तक हवस के 80 भूखे भेड़ियों द्वारा नोची गयी. भले ही पुलिस ने चुस्ती दिखाते हुए इन 80 वहशियों को दबोच लिया हो लेकिन जब वक़्त हर दूसरी बात को मुद्दा बनाने का हो किसी तरह की कोई बात ही नहीं. ध्यान रहे ये सब उस वक़्त में हुआ है जब देश अलग अलग तरह की बहस में फंसा हुआ है. कहीं जिक्र करौली, खरगोन और जहांगीरपुरी का हो रहा है. तो कहीं चर्चा का विषय हिंदू मुस्लिम की राजनीति या फिर कोरोना का बढ़ता संक्रमण है.
इंसान आज चांद पर जा रहा है. मंगल पर जीवन तलाश रहा है. नए ग्रहों पर नित नए शोध कर रहा है. समानता की बातें हो रही हैं. ग्लोबल वार्मिंग को मुद्दा बनाया जा रहा है. पर्यावरण के मद्देनजर हैशटैग चलाए जा रहे हैं और उस लड़की के बलात्कार पर कोई बात ही नहीं जिसके साथ धोखे में ऐसा बहुत कुछ हुआ जो मानवता और इंसानियत की बड़ी-बड़ी बातों के मुंह पर करारा तमाचा जड़ता है.
इंसान गिरा हुआ है और बेहद घिनौना है. ये बातें जिसने भी कहीं थीं उसमें कुछ भी फर्जी नहीं था. न ही तब सोशल मीडिया था कि किसी ने चंद लाइक, कुछ कमेंट और शेयर के लिए अपने मन की बात को किसी पब्लिक फोरम में डाल दिया हो. उस व्यक्ति ने शायद 2022 की कल्पना की हो और ये मान लिया हो कि वो समय भी आएगा जब मदद को बहाना बनाया जाएगा और एक ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाएगा जो रौंगटे खड़े करने वाली तो है ही साथ ही जो इंसानियत को शर्मसार करती है.
आखिर हुआ क्या था?
गुंटूर की जिस 13 साल की बच्ची के साथ ये घिनौनी वारदात हुई है वहां जो कहानी सामने आई है वो हैरान करने वाली है. मामले के मद्देनजर जो कुछ भी पुलिस ने बताया है अगर उसपर यकीन किया जाए तो मामले की मुख्य अभियुक्त एक महिला जिसका नाम सवर्ण कुमारी है. पीड़िता को सवर्ण कुमारी ने गोद लिया था, जिसने जून 2021 में कोविड -19 महामारी के दौरान एक अस्पताल में उसकी मां से दोस्ती की थी. लड़की की मां की कोरोना के कारण मौत हो गई थी और इसके बाद महिला लड़की के पिता की जानकारी के बिना लड़की को अपने साथ ले आई.
बात अगस्त 2021 की है. लड़की के पिता ने पुलिस से संपर्क किया और शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने सवर्ण कुमारी की पहचान की और इस मामले में पहली गिरफ्तारी जनवरी 2022 में की. पुलिस क्योंकि जांच में जुटी थी इसलिए इसी अप्रैल 2022 में गुंटूर पश्चिम से पुलिस ने बी.टेक के एक छात्र सहित 10 अन्य लोगों को गिरफ्तार किया और पुलिस द्वारा पीड़िता को भी बचाया गया.
पूछताछ में बच्ची ने पुलिस को जो कुछ भी बताया वो दिल को दहलाकर रख देने वाला है. पीड़ित बच्ची के अनुसार पिछले आठ महीने से उसे देह व्यापार के धंधे में लगाया गया है और उसे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के अलग-अलग वेश्यालय में भेजा गया. पुलिस ने भले ही मामले की जांच कर लड़की की निशानदेही पर तमाम गिरफ्तारियां की हों और अब भी पुलिस द्वारा अन्य लोगों की तलाश की जा रही हो लेकिन कई सवाल है जो अब भी जस का तस खड़े हैं और मानवता को मुंह चिढ़ाते हुए नजर आ रहे हैं.
हममें से तमाम लोग होंगे. जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर के इस सामूहिक दुष्कर्म को एक मामूली घटना मान कर अपनी अपनी रूटीन लाइफ में व्यस्त हो जाएंगे मगर एक समाज के रूप में हमें ऐसे मामलों पर अपना ध्यान जरूर आकर्षित करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि हम अपने को इंसान कह रहे हैं तो इस तरह के मामलों पर मुखर होकर बोलना ही हमारे दावों को मजबूती देगा. यूं तो तमाम चीजें हैं जिनको हम रोज इग्नोर करते हैं लेकिन 13 साल की बच्ची के साथ हुई ये घिनौनी वारदात ऐसी बिलकुल नहीं है जिसे इग्नोर किया जाए.
हम फिर इस बात को कहेंगे कि ऐसे मसलों पर मुखर होकर बोलिये नहीं तो कम से कम एक दो ट्वीट ही कर दीजिये. कम से कम ये तो रहेगा कि हमने अपने इंसान होने की जिम्मेदारी थोड़ी बहुत ईमानदारी के साथ पूरी की.
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