न कलाम से गौरवान्वित हैं मुस्लिम, न याकूब से शर्मसार
एपीजे अब्दुल कलाम एक भावना है, जो हमेशा अमर रहेगी. तो याकूब सिर्फ एक खबर. जो गुरुवार को ही खत्म हो जाएगी. हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए.
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चारधाम में से एक रामेश्वरम् गुरुवार को कलाम तीर्थ बन गया. पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम का यहां अंतिम संस्कार कर दिया गया. जहां कलाम की पार्थिव देह रखी थी, उस जगह तक पहुंचने वाली हर सड़क पर भीड़ ही भीड़ थी. हजारों की संख्या में लोग पैदल ही उस ओर चल पड़े. वे किसी धर्म विशेष के नहीं थे.
तो दूसरी ओर, नागपुर सेंट्रल जेल से 1993 मुंबई ब्लास्ट के मुजरिम याकूब मेमन का शव उसके परिजनों को सौंप दिया गया. गुरुवार सुबह ही उसे फांसी दी गई. शव लेने के लिए जेल में सिर्फ उसके कुछ परिजन ही मौजूद थे. वे उसे दफनाने के लिए मुंबई ले जाएंगे. पुलिस की मौजूदगी में परिवार के ही कुछ गिने चुने लोग होंगे. और कोई नहीं. किसी धर्म का नहीं.
याकूब को लेकर एक सियासी हवा चल रही है. यह बताने की कोशिश हो रही है कि उसे फांसी देकर ध्रुवीकरण किया जा रहा है. ताकि बिहार चुनाव में इसका फायदा लिया जा सके. दिग्विजय सिंह तो सीधे-सीधे कह रहे हैं कि संघ से जुड़े जिन लोगों ने मालेगांव और समझौता ब्लास्ट कराए, उन्हें भी फांसी दी जानी चाहिए.
क्या वाकई हिंदू-मुस्लिम के पैमाने पर ध्रुवीकरण हो रहा है? क्या वाकई याकूब की फांसी से हिंदू खुश हैं और मुस्लिम दुखी? फिर तो कलाम को लेकर सिर्फ मुस्लिमों को गौरवान्वित होना चाहिए और हिंदुओं को मायूस.
दरअसल, ध्रुवीकरण के लिए किसी कलाम या याकूब की जरूरत नहीं है. जो ध्रुवीकरण के शिकार होते हैं, वे हमेशा किसी न किसी ध्रुव पर ही रहते हैं.
याकूब की फांसी पर सबकी अलग-अलग राय हो सकती है. इस पर बहस होती रहेगी कि उसने क्या किया था, क्या नहीं. लेकिन एक बात हमेशा कायम रहेगी कि वह उन लोगों का साथी था, जिन्होंने बम कांड किया. याकूब की मौत नजीर है. हर व्यक्ति (किसी भी धर्म का हो) इससे यह सीख तो ले ही सकता है कि वह अपने परिजनों या दोस्तों को ऐसे किसी व्यक्ति का साथी बनने से रोके, जो बुरे काम करता है. वरना फांसी भी हो सकती है, भले ही वह चार्टर्ड अकाउंटेंट क्यों न हो.
बसि कुसंग चाहत कुसल, कह रहीम जिय सोस।
महिमा घटि समुद्र की, रावण बस्यो पड़ोस।।
(रहीम कहते हैं- बुरी संगत में रहते हुए कुशलता की कामना करने वाले के लिए अफसोस होता है. रावण के पड़ोस में रहने से तो समुद्र की महिमा भी घट गई थी.)
वहीं, दूसरी ओर कलाम है. उनका जीवन नजीर है. उनकी बातें नजीर हैं. मेहनत, मेहनत और मेहनत करने के लिए. ईमानदारी और सादगी लाने के लिए. दूरदर्शिता के लिए. सपने देखने के लिए. उन्हें देश पुरस्कार देता था तो वह जश्न नहीं मनाते, बल्कि कर्मठता के नए प्रतिमान गढ़ देते. हर व्यक्ति (किसी भी धर्म का हो) अपने बच्चे को कलाम बनने के लिए न कहे, लेकिन उस रास्ते पर चलने के लिए जरूर कहेगा जो कलाम ने दिखाया है.
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥
(रहीम कहते हैं- उत्तम प्रकृति वाले व्यक्ति का कुसंगति भी कुछ नहीं बिगाड़ सकती. वैसे ही जैसे, चंदन के पेड़ से सांप के लिपटे रहने के बावजूद उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता.)
कलाम एक भावना है, जो हमेशा अमर रहेगी. तो याकूब सिर्फ एक खबर. जो गुरुवार को ही खत्म हो जाएगी...
हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए.
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