तो क्या लोकतंत्र के लिए अनफिट है अरब-अफ्रीका ?
आतंकवाद के खिलाफ 15 साल तक लड़ाई लड़ने के बाद दुनिया इस नतीजे पर पहुंच रही है कि कुछ लोग- अरब, चीन और अफ्रीका वाले- लोकतंत्र के लिए तैयार ही नहीं हैं.
-
Total Shares
आतंकवाद के खिलाफ 15 साल तक लड़ाई लड़ने के बाद दुनिया इस नतीजे पर पहुंच रही है कि कुछ लोग- अरब, चीन और अफ्रीका वाले- लोकतंत्र के लिए तैयार ही नहीं हैं. कई लोगों को लगता है कि यदि यहां लोकतंत्र आ भी गया तो वह सोमालिया जैसी अराजकता, इराक जैसे गृह युद्ध या इरान जैसी सख्ती में बदल जाएगा.
इरान: 1979 में पहलवी राजवंश का अंत कर दिया गया. इरान के अंतिम शाह मोहम्मद रेजा शाह पहलवी को भाग कर अमेरिका की शरण लेनी पड़ी. और कट्टरपंथियों, वामपंथियों और छात्र संगठनों के समर्थन से सत्ता संभाली अयातुल्ला खुमैनी ने. राजतंत्र के खात्मे के बाद से अब तक इरान में बर्बर इस्लामी कानूनों का ही राज है.
इराक: तानाशाह सद्दाम हुसैन को हटा दिया गया, ताकि कुर्द और अन्य सत्ता विरोधी लोग सुरक्षित रह सकें. लेकिन शिया-सुन्नी ही लड़ने लगे. और अब तो सुन्नी बहुल उत्तरी इलाका आईएसआईएस ने हथिया लिया है. और देश टूटने का संकट बरकरार है.
मिस्र: होस्नी मुबारक के लंबे शासनकाल को तानाशाही कहकर एक आंदोलन शुरू हुआ. इस्लामी ग्रुप मुस्लिम ब्रदरहुड ने अगुवाई की. महीनों के संघर्ष के बाद नई सरकार बनी. लेकिन अराजकता फैल गई. आखिर में सेना को सत्ता संभालनी पड़ी. देश अब भी संघर्ष और असमंजस के दौर से गुजर रहा है.
सीरिया: पांच साल पहले शुरू हुई अरब स्प्रिंग के दौर में ही सीरिया की असद सरकार के खिलाफ भी आंदोलन हुआ. जो आज भी जारी है. लाखों लोगों की जान जा चुकी है. राजधानी दमिश्क में जहां असद रहते हैं, उसके आधे हिस्से पर उनका शासन नहीं चलता. आईएसआईएस का कब्जा है.
लीबिया: गद्दाफी के शासन और जीवन दोनों के खात्मे के साथ ही उम्मीद थी कि इस देश में लोगों का जीवन बदलेगा. लेकिन यहां भी हालात गृह युद्ध में फंसे अन्य अफ्रीकी देशों जैसे ही हो गए.
अरब और अफ्रीका के इन कुछ बड़े देशों के अलावा छोटे-छोटे देशों में भी कुनबे की लड़ाई सीधे सत्ता को चुनौती देती रहती हैं. यमन का कोहराम सबसे ताजा खबर है. अफगानिस्तान का पूरा इलाज नहीं हो पाया. ट्यूनिशिया आईएसआईएस का भर्ती कैंप बना हुआ है. सोमालिया किसी के हाथ में नहीं है और अलकायदा की नई पौध सबसे ज्यादा तेजी से यहीं विकसित हो रही है. ऐसे में कोई भी कह सकता है कि यहां के लोगों को लोकतंत्र की कद्र नहीं है या उन्हें यह हजम ही नहीं होता है. इतिहास तो यही कहता है कि यहां क्रूर शासक ही सफल हो पाए हैं. तो क्या अरब और अफ्रीका में शांति और खुशहाली के सपने देखना मृगमरीचिका की तरह है, जो दिखती तो है पर सच नहीं होती.
आपकी राय