शहादत पर चुप्पी और एनकाउंटर पर शोर
भोपाल एनकाउंटर पर राज्य सरकार के विरूद्ध जिस तरह की बयानबाजी विपक्षी दलों के नेता कर रहे हैं उससे उनकी राष्ट्रविरोधी मानसिकता ही उजागर हो रही है.
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30-31 अक्टूबर को मध्यरात्रि में जब सारा देश दीपावली मनाकर सोया ही था, भोपाल सेंट्रल जेल से सिमी के आठ आतंकवादी प्रहरी रमाशंकर यादव का गला रेतकर फरार हो गये. घटना के पंद्रह मिनट के अंदर ही प्रशासन सक्रिय हुआ और आठ घंटे बाद जेल से लगभग दस किमी. दूर खेजड़ादेव गांव के सरपंच की सूचना पर पुलिस ने हथियारबंद खुंखार आतंकवादियों को एनकाउंटर में मार गिराया. नृशंस आतंकियों की फरारी से लेकर उनके एनकाउंटर तक की कहानी अनेक प्रश्न खड़े करती है. व्यवस्था की लापरवाही भी सामने आई है और इन संदर्भों की पड़ताल के लिए समुचित जांच व्यवस्था संबंधी आदेश भी जारी हुए हैं जो कि उचित हैं और आवश्यक भी, किन्तु राज्य सरकार के विरूद्ध जिस तरह की बयानबाजी विपक्षी दलों के नेता कर रहे हैं उससे उनकी राष्ट्रविरोधी मानसिकता ही अधिक उजागर हो रही है.
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नृशंस आतंकियों की फरारी से लेकर उनके एनकाउंटर तक की कहानी अनेक प्रश्न खड़े करती है |
अनेक जघन्य अपराधों में लिप्त रहे कुख्यात आतंकवादियों के एनकाउंटर किए जाने के तत्काल पश्चात म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह एवं श्री कमलनाथ आदि ने आतंकवादियों के प्रवक्ता की तर्ज पर अप्रत्यक्ष रूप से एनकांउटर को फर्जी और संदेहास्पद बनाने का जो कूट प्रयत्न किया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसी बयानवाजी से लगता है कि हमारे इन गणमान्य समझे जाने वाले नेताओं की सहानुभूति अपराधियों आतंकवादियों के साथ है. इन दुर्दान्त शक्तियों के विरूद्ध राष्ट्र रक्षा में सन्नद्ध आत्मबलिदान को उद्यत देशभक्तों के साथ नहीं. यही कारण है कि शहीद रमाशंकर यादव की क्रूर हत्या पर दो शब्द भी इन कांग्रेसी नेताओं ने नहीं कहे.
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प्रश्न यह भी है कि क्या शहीद रमाशंकर यादव की शवयात्रा में सम्मिलित होने, शोक संतप्त परिवार को हिम्मत बंधाने की जिम्मेदारी भी केवल सत्तापक्ष की ही है? क्या विपक्ष को शहीद अथवा उसके परिवार से कोई सहानुभूति नहीं? यदि है, तो उन्होंने इस संबंध में विचार व्यक्त क्यों नहीं किये? जिन पर हत्या लूट डकैती और फरारी के एक से एक जघन्य अपराध दर्ज हैं उनके प्रति असीम करूणा तथा कर्तव्य की वेदी पर प्राण न्यौछावर करने वाले शहीद की निर्मम उपेक्षा निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है किन्तु जो कुख्यात अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी आतंकवादी ओसामा-बिन-लादेन को ‘ओसामा जी’ कहकर उसके प्रति आदर व्यक्त करते रहे हैं, बटालाकांड के एनकाउंटर को फर्जी बताकर उस पर जो आंसू बहाते रहे हैं उनसे और उम्मीद ही क्या की जा सकती है?
हेड कॉन्सटेबल रमाशंकर यादव का गला रेतकर फरार हो गये थे आतंकी |
यह रेखांकनीय है कि जो पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादियों के काले कारनामों को लक्ष्य कर उच्च स्वर से घोषित करते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, वे ही अपने राजनीतिक प्रतिपक्षियों की छवि बिगाड़ने के लिए ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे मुहावरे भी गढ़ते हैं. कश्मीरी-विस्थापितों के कष्टों पर, गोधरा कांड के शहीदों पर, आतंकवादी विस्फोटों में मारे गये निर्दोष नागरिकों की हत्याओं पर, उरी के सैन्य शिविर पर हुए आक्रमण पर और विगत एक माह से सीमा पर हो रहे सतत् बलिदानों पर जिनकी आंखों से कभी एक आंसू नहीं गिरता, जिनके मुख से सहानुभूति का एक बोल नहीं फूटता वे वोट बैंक की राजनीति के लिए जनता की सुरक्षा और राष्ट्रीय अस्मिता की गरिमा के प्रति किस सीमा तक उदासीन हैं इसकी साक्षी पहले सर्जिकल स्ट्राइक और अब इस एनकाउंटर पर उठाए गए सवालों में मिलती है. उ.प्र. में सत्ता प्राप्ति के लिए लालायित सुश्री मायावती भी इसी स्वर में बोल रही हैं. जिस देश का विपक्ष देशहित के स्थान पर दलीय हितों के लिए इस सीमा तक सक्रिय है उसकी आन्तरिक और बाह्य सुरक्षा का प्रश्न निश्चय ही अत्यंत जटिल है. यह हर्ष और संतोष का विषय है कि इस समय देश की जनता, सत्ता और सेना, तीनों ही पक्ष राष्ट्रीय-गौरव की रक्षा के लिए हर संभव प्रयत्न कर रहे हैं.
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म.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री प्रश्न उठाते हैं कि क्या कारण है कि सिर्फ ‘मुस्लिम कैदी ही क्यों भागते हैं जेल से कोई हिन्दू कैदी क्यों नहीं भागता?’ इस प्रश्न से क्या वे यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि हमारी जेलों में मुस्लिम कैदियों के साथ दुव्र्यवहार होता है और हिन्दू कैदियों को आराम से रखा जाता है. इसलिए मुस्लिम कैदी भागते हैं और हिन्दू कैदी वहां से नहीं भागते. इस प्रकार के अनर्गल प्रश्न उठाने वाले माननीय दिग्विजय सिंह जी ने क्या कभी विचार किया है कि कश्मीर से हिन्दुओं को ही क्यों पलायन पर विवश किया जाता है और सारे देश में कहीं से भी मुस्लिमों के पलायन की कभी कोई खबर क्यों नहीं आती ? पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं का प्रतिशत क्यों न्यूनतम होता जाता है जबकि भारत में मुस्लिम आबादी दिन दूनी रात चैगुनी गति से कैसे बढ़ रही है ? एनकाउंटर में मारे गए सिमी आतंकियों के लिए मानवाधिकारों का रोना रोने वाले ठीक दीपावली के दिन बांग्लादेश में पन्द्रह मन्दिरों के तहस-नहस किये जाने और सैकड़ों हिन्दू घरों में होने वाली हिंसा और लूटपाट के विरूद्ध दो शब्द क्यों नहीं बोलते ? क्या ये प्रश्न भारतीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर विचारणीय नहीं है ? यदि हैं तो इन पर गहन मौन क्यों और आतंकियों के एनकाउंटर पर इतना शोर क्यों ?
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