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Updated: 23 मार्च, 2018 05:01 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू. ये नाम भारतीय इतिहास के सबसे बड़े योद्धा और शहीदों में शुमार हैं. योद्धा क्यों? जनाब भारत के लिए लड़ने वाला हर वीर योद्धा ही कहलाएगा. 23 मार्च 2018 इन तीनों की 87वीं पुण्यतिथी है. भगत सिंह की बात करें तो उन्होंने अपने जीवन में गरीबी और दुख देखा. 27 सितंबर 1907 में जन्में भगत सिंह के जन्म के कुछ ही दिन के अंदर उनके पिता और चाचा को जेल से छुड़वा लिया गया. उनके पिता किशन सिंह और चाचा दोनों ही अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे.

भगत सिंह के परिवार के लगभग सभी बड़े आजादी की लड़ाई में किसी न किसी तरह का सहयोग दे रहे थे. उनके चाचा अजीत सिंह को भारत छोड़कर जाना पड़ा ताकि अंग्रेजी सरकार का टॉर्चर न झेलना पड़े.

जलियांवाला बाग कांड की छाप....

12 साल की उम्र में 1919 को बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग कांड हुआ. उस समय मौत का सरकारी आंकड़ा 379 था, लेकिन गैर सरकारी आंकड़ों की मानें तो कम से कम 1000 लोगों की मौत हुई थी. भगतसिंह ने वो मंजर देखा था. जलियांवाला बाग में भगतसिंह इस घटना के कुछ घंटों बाद ही गए थे. उसके बाद से ही भगतसिंह के मन में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ नफरत की भावना भर गई थी.

भगत सिंह, शहीदी दिवस, इंकलाब जिंदाबाद, आजादी, भारत छोड़ो आंदोलन, इतिहास

एक धमाका जिसने हिला दी सरकार...

1928 में साइमन गो बैक यानी साइमन वापस जाओ का नारा देकर लाला लाजपत राय ने साइमन कमिशन के खिलाफ रैली निकाली, उस समय लाठी चार्ज में लाला लाजपथ राय बुरी तरह ज़ख्मी हो गए और उनकी मृत्यु हो गई. चंद्र शेखर आज़ाद की लीडरशिप में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू ने उस ऑफिसर को मारने का प्लान बनाया जो लाला की मौत का जिम्मेदार था.

राजगुरू ने गोली चलाई, लेकिन गलत इंसान की मौत हो गई. इसके बाद ये लोग छुप गए. भारत का असहयोग आंदोलन तेज़ हुआ और इंकलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद.

अपनी आवाज़ और बुलंद करने के लिए 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली में उन लोगों ने बम फेंका. बम में कम बारूद इस्तेमाल किया गया था ताकि किसी की मौत न हो. बॉम्ब फेंकने के बाद ट्रायल के दौरान भगत सिंह और बीके दत्त अपनी बात पर डटे रहे. भगत सिंह को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ साजिश और एक अफसर की मौत की साजिश करने का दोषी पाया गया. और उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई.

क्या हुआ था आखिरी 12 घंटों में...

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फांसी पहले 24 मार्च को होनी थी और बाद में फांसी की तारीख बदलकर 23 मार्च कर दी गई. उनकी मौत के पहले सभी कैदियों को उनके बैरक में भेज दिया गया. शाम 7 बजे फांसी का समय निर्धारित किया गया. भगत सिंह ने जेल के मुस्लिम सफाई कर्मचारी बेबे से कहा था कि वो फांसी से पहले उनके लिए अपने घर से खाना लेकर आएं, लेकिन बेबे जेल तक पहुंच ही नहीं पाए और उससे पहले ही भगत सिंह को फांसी दे दी गई.

भगत सिंह, शहीदी दिवस, इंकलाब जिंदाबाद, आजादी, भारत छोड़ो आंदोलन, इतिहास

पंजाब सफाई मजदूर फेडरेशन ने 2016 में एक फोटो रिलीज की थी. इस फोटो में भगत सिंह और सफाई मजदूर बेबे थे जिनसे भगत सिंह ने खाना लाने को कहा था. चित्र में भगत सिंह को फांसी से पहले बैरक की सफाई करने वाली सफाई सेविका बेबे के हाथ से रोटी खाने की इच्छा प्रकट करते दिखाया गया है.

भगत सिंह ने अपने वकील प्राण नाथ मेहता द्वारा दी गई किताब पढ़ रहे थे, लेकिन कभी उसे खत्म नहीं कर पाए. भगत सिंह के लिए मेहता जी रिवॉल्यूशनरी लेनिन लेकर आए थे. इस किताब को भगत सिंह कितना पढ़ पाए ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन यकीनन वो इस किताब को खत्म करना चाहते थे.

भगत सिंह लेनिन से काफी प्रेरित थे. उनका मानना था कि भारत को सिर्फ आजादी दिलाना ही नहीं बल्कि मानव को हर तरह के अभिषाप जैसे धर्म, बेरोजगारी, भूख से मुक्ति दिलाना ही उनका मकसद था. मार्क्सवाद के आइकन लेनिन ने वर्किंग क्लास और बाकी दबी कुचली जातियों के उद्धार का बीड़ा उठाया था. अगर देखा जाए तो भगत सिंह अपने आप में भारत के लेनिन थे.

आर. के. कौशिक (IAS) के द्वारा लिखे गए आर्टिकल After hanging, rewards में एक और जानकारी दी गई है. भगतसिंह ने मरने से पहले चार आर्टिकल लिखे थे जो उनके वकील प्राण नाथ मेहता ने चोरी से जेल से बाहर निकाले थे. ये आर्टिकल बाद में भगत सिंह के दोस्त बिजॉय कुमार को दिए गए थे. बिजय कुमार क्योंकि देश में नहीं थे तो उन्होंने ये आर्टिकल अपने किसी दोस्त को जालंधर में दे दिए थे. उस दोस्त के घर पर भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के दौरान रेड पड़ने की आशंका थी और इसी हड़बड़ी में उन आर्टिकल्स को जला दिया गया था.

भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू को 23 मार्च 1931 शाम के करीब 7.30 बजे फांसी दे दी गई. अपनी किताब 'मैं नास्तिक क्यों हूं' में भगत सिंह ने लिखा, 'जिंदगी तो अपने दम पर ही जी जाती है, दूसरों के कंधों पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं.' वाकई भगत सिंह ने जिंदगी अपने दम पर जी और इतिहास के पन्नो में दर्ज हो गए.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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