फिरोज खान बनना आसान नहीं है, कलेजा चाहिए
देश की मौजूदा परिस्थितियों में जहां पर धर्म इंसान के लिए ईमान और इंसानियत से बड़ी चीज हो गई है. उस दुनिया में फिरोज खान (Feroz Khan) ने मुसलमान होते हुए भी मस्जिद के बगल में बने संस्कृत स्कूल में दूसरी कक्षा से संस्कृत (Sanskrit) पढ़ना शुरू किया था.
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बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी पाए फिरोज खान को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है कि आखिर कोई मुसलमान (Muslim) हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के बारे में संस्कृत (Sanskrit) का ज्ञान कैसे दे सकता है. जयपुर से 40 किलोमीटर दूर एक छोटे से कस्बे का बेहद गरीब परिवार का लड़का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित संस्कृत विभाग तक जा पहुंचा. फिरोज खान (Feroz Khan) के लिए यह कामयाबी कम नहीं है.
सही मायने में कहें तो फिरोज खान बनना आसान नहीं है. मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं, क्योंकि फिरोज खान पढ़ने में बेहद मेधावी छात्र रहा है. जयपुर में संस्कृत कॉलेज में पढ़ाने के दौरान बेस्ट टीचर के अवार्ड से सम्मानित किया गया है. यह बात मैं इसलिए भी नहीं कह रहा हूं, क्योंकि बेहद गरीबी में महज दो कमरे के मकान में 6 भाई-बहनों में उसने अपनी मेहनत के बल पर यह मुकाम हासिल किया है. दुनिया में ऐसे बहुतेरे लोग हैं, जो अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर इस तरह की और इस तरह से अच्छी उपलब्धियां हासिल की हैं.
फिरोज खान को जयपुर में संस्कृत कॉलेज में पढ़ाने के दौरान बेस्ट टीचर के अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.
फिरोज खान बनना आसान बात नहीं है. मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि फिरोज खान ने इस मुकाम को हासिल करने के लिए बहुत कुछ सहा है और बहुत कुछ खोया है. देश की मौजूदा परिस्थितियों में जहां पर धर्म इंसान के लिए ईमान और इंसानियत से बड़ी चीज हो गई है. उस दुनिया में फिरोज खान ने मुसलमान होते हुए भी मस्जिद के बगल में बने संस्कृत स्कूल में दूसरी कक्षा से संस्कृत पढ़ना शुरू कर दिया. मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि सात साल की उम्र से वह भगवान के भजन गाता है और गायों की सेवा में उसका मन लगाता है. मुसलमान होकर भी घर के बगल में बने मस्जिद को छोड़कर पड़ोस के मंदिर में जाकर भगवान की तस्वीर के सामने भजन गाना किसी मुसलमान के लिए आसान काम नहीं है वह भी तब जब वह एक मुस्लिम बस्ती में रहता हो. जो गर्व से कहो हम हिंदू हैं कहते रहते हैं, आज वह शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं कि उनसे बेहतर हिंदू एक मुसलमान बन गया है.
मगर अगर संस्कार अच्छा मिले तो दुनिया की हर मुश्किल हंसते-हंसते सहा जा सकता है. फिरोज खान के पिता रमजान खान कि पूरे बगरू कस्बे में इज्जत है. लोग इन्हें मुन्ना मास्टर के नाम से जानते हैं. इनके पिता गफूर खान ने सबसे पहले भजन गायकी का काम शुरू किया था. तब यह परिवार पालने के लिए भजन गाया करते थे और उसके बाद उनके बेटे रमजान खान ने इस वंशानुगत पेशे को अपनाया. हिंदू धर्म में लिखे भगवान के दोहे और चौपाइयों को समझने के लिए रमजान खान ने संस्कृत की पढ़ाई की. संस्कृत की पढ़ाई के दौरान इनके दोस्त मस्जिदों में जाते थे, मगर अपने पिता के साथ मंदिर में जाते थे. धीरे-धीरे भगवान की भक्ति में इनका भी हृदय परिवर्तन हुआ और भगवान में इनकी आस्था बढ़ती चली गई. इस इलाके में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बजरंग दल और हिंदू विश्व परिषद जैसे हिंदू संगठन काफी सक्रिय हैं. इन लोगों को लगा कि एक लिबरल मुसलमान मस्जिद को छोड़कर मंदिर में बैठता है तो इन हिंदू संगठनों ने अपने कार्यक्रमों में रमजान खान को बुलाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे जयपुर से लेकर बगरू तक संघ परिवार के सभी कार्यक्रमों में नियमित भजन गायक बन गए. अमावस्या पर बगरू में और हर रविवार को जयपुर में इनका भजन होने लगा.
फिरोज खान के पिता रमजान खान भजन गाते हैं. उनके दादा गफूर खान भी भजन गाया करते थे.
हिंदू धर्म के प्रति आस्था से रमजान खान गायों की भक्ति में लग गए और इनके एक दलित दोस्त भंवर बलाई ने रामदेव गौशाला खोला तो उसके साथ मिलकर गायों की सेवा करने लगे. भंवर बलाई के बच्चे की मौत सड़क हादसे में हो गई थी. बच्चे की मौत के बदले जो इंश्योरेंस का पैसा मिला, उसी पैसे से उसने गौशाला खोली था. आज भंवर बलाई और रमजान खान की यह गौशाला राजस्थान के बेहतरीन गौशालाओं में से एक है. सोहबत का असर होता है. बच्चे भी पिता के रास्ते पर निकल गए. दिवाली के दिन जब बिटिया पैदा हुई तो उसका नाम उन्होंने लक्ष्मी रखा. लोगों ने मुसलमान होकर बेटी का नाम लक्ष्मी रखने को इतना सराहा की अगली बार जब दूसरी बेटी हुई तो उसका नाम अनीता रखा.
मगर जैसा कि मैंने आपसे पहले कहा था एक मुसलमान होकर इस देश काल की परिस्थितियों में यह सब करना आसान काम नहीं है. मुस्लिम समुदाय में रमजान खान के परिवार के प्रति एक बेचैनी सी भर गई. जब रमजान खान अपने बेटे की शादी कर रहे थे तो शादी के कार्ड पर भगवान गणेश की तस्वीर छपवा दी. बस इनके नाराज मुस्लिम पड़ोसियों और रिश्तेदारों को एक बहाना मिल गया और उन्होंने कहा कि मुसलमान होकर तुम भगवान गणेश की तस्वीर छपी निमंत्रण भेजे रहे हो, हम नहीं आएंगे. यह तात्कालिक विरोध तो बहाना भर था, रमजान खान के परिवार के प्रति पड़ोसियों रिश्तेदारों में एक नाराजगी थी. पर प्रेम के पुजारी रमजान खान ने किसी को कुछ जवाब नहीं दिया बस हाथ जोड़कर कहा कि अगर आप आए तो स्वागत है. हिंदू धर्म के प्रति इस परिवार की आस्था मजबूत होती गई और यह अपने मुस्लिम साथियों से दूर होते चले गए. कोई दूसरा होता तो धर्म और समाज के दबाव के आगे झुक जाता, लेकिन मैंने जैसे पहले कहा था फिरोज खान का परिवार होना आसान काम नहीं है.
रमजान खान ने इनके विरोध की परवाह किए बिना अपने बेटे की शादी में साधु संतों को बुलाया. बच्चों की शादियों में भी जब यह जाते थे तो लोग इनको मंदिर में बैठकर भजन करने की बात की उलाहना देते थे. तब यह इसी प्रेमभाव से लोगों को समझाते थे कि हमारा उठना बैठना मुसीबत में साथ रहना सब हिंदुओं के साथ होता है, किसी धर्म से जुड़ाव रखने का मतलब अपने मजहब से नफरत करना नहीं होता है. आप कितना भी बड़ा दिल रख लीजिए, मगर यह सच है कि अपने समाज को छोड़कर दूसरे समाज के बीच रहना जितना कहने और सुनने में आता लग रहा है उतना आसान होता नहीं है. इसके लिए कलेजा चाहिए.
जरा कल्पना कीजिए कि आपका बेटा या बेटी मस्जिद में बैठकर कुरान का पाठ करने लगे और आपके घर आपके रिश्तेदार उलाहना देने आएं तो उन्हें आप भी यही समझाएं कि इस्लाम बुरा धर्म नहीं है यह भी मोहब्बत करना ही सिखाता है. हम दावे के साथ कह सकते हैं कि फिरोज खान का विरोध करने वालों के पास इतना बड़ा कलेजा नहीं हो सकता है. उनके पास तो तंग दिल और संकीर्ण मानसिकता है.
कहने को तो रमजान खान के चार बेटे और दो बेटियां हैं, मगर फिरोज खान वाली प्रतिभा किसी में भी नहीं है. सभी छोटे-मोटे बिजनेस करते हैं. फिरोज कुछ अलग ही मिट्टी का बना हुआ था. वह फिल्मी गानों को संस्कृत में लिखकर गाता था. संस्कृत में वेद और उपनिषद उसे ऐसे कंठस्थ हैं कि अच्छे अच्छे पंडित उसके आगे पानी भरते हैं. मगर ये हिंदू धर्म है. इस धर्म को अपनाने के लिए कट्टर पंडितों ने एक लाइन खींच रखी है. उस लाइन में हिंदू मां के गर्भ से निकला हुआ बच्चा या बच्ची हिंदू हो सकता है और वही संस्कृत में इनको ज्ञान देने का हक रखता है. यह बाबरी मस्जिद तोड़ कर राम मंदिर बना सकते हैं, मगर कोई दूसरे धर्म का इनके धर्म को अपनाना चाहे तो यह अपना दरवाजा बंद रखते हैं. मुसलमानों को पानी पी पीकर कोसते हैं कि ये सभी के सभी कन्वर्टेड हैं और कभी-कभी तो इनसे बात करो तो ऐसे रूमानी ख्याल भी इनके दिल में हैं कि रीकनवर्जन भी किया जा सकता है. मगर यह ख्यालात हैं. हकीकत तो यह है कि हिंदू धर्म अपनी कट्टरता में इतना अंधा है कि किसी को भी अपनाने को लेकर तैयार नहीं है.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में फिरोज खान के एंट्रेंस एग्जाम में 10 में से 10 नंबर आए और जो दूसरे नंबर पर हिंदू जनाब आए थे, उनको 10 में से दो नंबर आए थे. जरा सोचिए कि भला वह क्या संस्कृत पढ़ाएंगे और कौन सी हिंदू धर्म के कर्मकांड के बारे में जानकारी देंगे, जिनको 10 में से 2 नंबर मिले हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चे कहते हैं कि मुसलमान से धर्म के कर्मकांड के बारे में कैसे पढ़ेंगे. अरे निमूढों, यह तो पढ़ा भी सकता है, मगर जिस व्यक्ति के 10 में से 2 आए हैं, वह हिंदू होते हुए भी तुम्हें क्या पढ़ा सकता है.
तीन पीढ़ियों में 100 सालों से जो परिवार फर्स्ट राम भगवान के मंदिर में गुजारता हो, उस पर मुसलमान होने का तोहमत लगा कर शिक्षा के मंदिर से निकाला जाए तो उस पर वज्रपात होना स्वभाविक है. पिता रमजान खान ने हमसे बातचीत में कहा कि फिरोज का विरोध सुनकर उनके मन पर वज्रपात हुआ. थोड़ी देर के लिए उनकी भी मानसिकता विकृत हो गई कि हमने मुसलमान होकर संस्कृत की पढ़ाई क्यों की. मगर शिक्षा का असर कुछ तो होता है. भगवान के मंदिर में हमने समय यूं ही नहीं जाया किया है. भगवान श्री राम से हमें आत्मबल मिला है और भगवान श्रीकृष्ण से हमारे परिवार को धैर्य मिला है.
जयपुर में फिरोज खान के घर इलाके के बहुत सारे साधु-संत जुटे और सब ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के बाहर धरने पर बैठे लोगों को बस इतना पता है इसके नाम में फिरोज है और नाम के पीछे खान लगा है. अगर यह फिरोज से एक बार मिलें, तो शायद यही कहेंगे कि हमें टीचर तो फिरोज खान ही चाहिए.
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