प्रोफेसर को एन्टी-अटल टिप्पणी पर पीटा या कॉलेज की राजनीति के चलते?
जो शख्स आलोचनाओं को भी स्वीकार करते हुए बेहतर बनने की कोशिश करता रहा और इतना नाम कमाया, उसके नाम पर हिंसा करने का मतलब उसकी आत्मा को ठेस पहुंचाने के अलावा और कुछ नहीं है.
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अब अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका नाम लेकर बहुत से लोग अपना हित साधने में लगे हुए हैं. ताजा उदाहरण बिहार का है, जहां एक असिस्टेंट प्रोफेसर को बुरी तरह से पीटा गया. पीटने की वजह थी फेसबुक पर की गई एक पोस्ट और एक अन्य शेयर की गई पोस्ट. इन दोनों पोस्ट में अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लिखा था. यहां सोचने वाली बात है कि जिस अटल बिहारी वाजपेयी ने सांप्रदायिक होने के इल्जाम का भी विनम्रता से जवाब दिया, जो शख्स आलोचनाओं को भी स्वीकार करते हुए बेहतर बनने की कोशिश करता रहा और इतना नाम कमाया, उसके नाम पर हिंसा करने का मतलब उसकी आत्मा को ठेस पहुंचाने के अलावा और कुछ नहीं है.
अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ लिखी एक फेसबुक पोस्ट शेयर करने पर प्रोफेसर को बुरी तरह पीटा.
इस शख्स का नाम संजय कुमार है, जो बिहार के मोतिहारी स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की आलोचना करने वाला एक पोस्ट शेयर किया था और एक पोस्ट खुद लिखी भी थी. अपनी पोस्ट में संजय ने लिखा था- 'भारतीय फासीवाद का एक युग समाप्त हुआ. अटलजी अनंत यात्रा पर निकल चुके.'
ये पोस्ट संजय कुमार ने खुद लिखी थीं.
वहीं दूसरी ओर, जो पोस्ट उसने शेयर की थी उसमें लिखा था कि अटल बिहारी वाजपेयी एक संघी थे, नेहरूवियन नहीं. उनके भाषण के तरीके ने भारतीय मध्यम वर्ग में हिंदुत्व की राजनीति को एक सेक्सी चीज बना दिया. उन्हें नेहरूवियन बुलाना भी इतिहास की गलत व्याख्या होगी. इसी पोस्ट में पाश की मशहूर कविता की लाइनें भी लिखी थीं- 'मैंने उसके खिलाफ लिखा और सोचा है. अगर आज उसके शोक में सारा देश शरीक है तो उस देश से मेरा नाम काट दो!' ये पोस्ट किसी विजय किशोर की हैं, जिसे संजय ने अपनी वॉल पर कॉपी-पेस्ट किया था. हालांकि, अब ये दोनों ही पोस्ट उनके फेसबुक प्रोफाइल से डिलीट किए जा चुके हैं.
इस पोस्ट को संजय कुमार ने अपनी वॉल पर कॉपी पेस्ट किया था, जिसे किसी विजय किशोर ने लिखा है.
बस फिर क्या था. पहले तो उन्हें धमकी भरे फोन आने लगे और फिर खुद को आरएसएस और बजरंग दल का नेता बताने वाले कुछ लोगों ने उनके घर में घुस कर उन्हें जूतों और रॉड से खूब मारा. कोशिश तो ये भी की गई कि उन्हें पेट्रोल डालकर जला दिया जाए, लेकिन तभी संजय के कुछ दोस्त वहां पहुंच गए और बचा लिया. हालांकि, ये मामला सुनना में जैसा लग रहा है वैसा है नहीं. यानी अटल जी के खिलाफ टिप्पणी के अलावा भी कुछ है, जिसके चलते ये मार-पीट की गई है.
ये कौन थे जिन्होंने संजय कुमार को पीटा? खुद अटल बिहारी वाजपेयी अपनी आलोचना करने वालों से प्यार से बात करते थे. वह हमेशा चाहते थे कि शांति बनी रही और इसीलिए कविता भी लिखी थी- 'जंग नहीं होने देंगे.' लेकिन जिस तरह की हरकत खुद के बजरंग दल और आरएसएस का बताने वाले लोगों ने की है, उससे अटल बिहारी को बेशक दुख होता. इस समय अगर उनकी आत्मा को ये सब दिख रहा होगा, तो आंसू निकले जरूर होंगे. देखिए ये वीडियो जिसमें खुद पर सांप्रदायिक होने के आरोप का भी वह कितनी विनम्रता से जवाब दे रहे हैं.
जहां एक ओर संजय को मारने वाले लोग खुद को आरएसएस और बजरंग दल का बता रहे थे, वहीं दूसरी ओर संजय का कुछ और ही कहना है. उनके अनुसार इन सबके पीछे कुलपति का हाथ है, क्योंकि संजय समेत कई अध्यापक कुलपति का विरोध कर रहे थे. उन्होंने कई लोगों का नाम भी बताया है, जिन्होंने उनके साथ मारपीट की. दरअसल, संजय के बयान के बात यह मामला सिर्फ अटल विरोधी टिप्पणी का नहीं रहा, बल्कि कॉलेज पॉलिटिक्स की झलक भी इसमें साफ दिखने लगी है. कुछ लोग अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर अपना हित साध रहे हैं.
अटल बिहारी वो शख्सियत थे, जो अपने विरोधियों में भी लोकप्रिय थे. विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तो अटल बिहारी के भाषण से इतना प्रभावित हुए थे कि उन्हें भविष्य की पीएम तक बता दिया और उनकी बात सच भी हुई. अटल बिहारी वह पहले शख्स थे, जिन्होंने पाकिस्तान के साथ शांति कायम करने को लेकर बातचीत शुरू की. ऐसी महान शख्सियत का नाम लेकर किसी को मारना-पीटना और जिंदा जलाने की कोशिश कर के ये लोग अटल बिहारी को कोई सम्मान नहीं दे रहे, बल्कि उनके नाम पर कालिख पोतने का काम कर रहे हैं.
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