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Updated: 18 फरवरी, 2018 11:45 AM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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विश्व के सबसे बड़े रेल नेटवर्क में शुमार भारतीय रेल हम भारतीयों के गर्व का पर्याय है. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक तरफ ये एकल सरकारी स्वामित्व वाला विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नेटवर्क है तो वहीं दूसरी तरह ये एक लम्बे समय से हम भारतीयों के परिवहन का प्रमुख घटक रहा है. हममें से लगभग सभी लोगों ने रेल यात्राएं की होंगी साथ ही हमारे जीवन में कई ऐसे मौके आए होंगे जब हमें किसी जरूरी काम से जाना था और ट्रेन लेट हो गयी.

याद कीजिये आप उस पल को. अंदाजा लगाइए उस क्रोध का, जब सिर्फ इसलिए आपका काम नहीं हो पाया क्योंकि आपकी ट्रेन लेट थी और आप अपने गंतव्य पर समय रहते नहीं पहुंच पाए. हो सकता है ये बातें आपको विचलित कर दें और आप सोच में पड़ जाएं कि हम अचानक आपको ट्रेन के लेट होने की याद क्यों दिला रहे हैं तो इस बात को समझने के लिए आपको एक खबर समझनी होगी.

रेलवे, रेल, बिहार, गुजरात    नागरिकों के अलावा सरकार के लिए भी ट्रेनों का लेट होना एक बड़ी चुनौती है

ये खबर उनको अवश्य दुखी करेगी जो बिहार से जुड़े हैं साथ ही ये उन लोगों के गर्व कारण बनेगी जो गुजरात में रहते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के स्टेशनों से छूटने वाली, वहां से गुजरने वाली या इन स्टेशनों तक पहुंचने वाली रेलगाड़ियों ने लेटलतीफी के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं और लेट होने के मामले में इनकी हालत देश भर में सबसे बुरी है. रिपोर्ट के अनुसार बिहार में  रेलगाड़ियों की औसत लेटलतीफी सबसे अधिक आंकी गई है इसके विपरीत गुजरात में रेलगाड़ियों की लेटलतीफी सबसे कम है और यहां ट्रेनें समय पर पहुंचती हैं.

ज्ञात हो कि ये रिपोर्ट ऑनलाइन ट्रेवल पोर्टल रेलयात्री ने पेश की है जिसमें दावा किया गया है कि उसके पास एक करोड़ से अधिक मासिक उपयोक्ता हैं और ये अध्ययन उन्हीं से प्राप्त जानकारियों के आधार पर है. रिपोर्ट में ये बात भी निकल कर सामने आई है कि बीते दो साल में उत्तराखंड, बिहार और केरल में रेलगाड़ियों की लेटलतीफी में दहाई प्रतिशतांक की वृद्धि दर्ज की गई है.

रेलवे, रेल, बिहार, गुजरात    रेलयात्री की ये रिपोर्ट कई मायनों में हैरत में डालने वाली है

गौरतलब है कि औसत आधार पर 2017 में बिहार से चलने वाली या फिर बिहार जाने वाली रेलगाड़ियों में 104 मिनट का विलंभ दर्ज हुआ है. बात अगर 2016 की हो तो तब ये देरी 93 मिनट थी जबकि 2015 में औसत देरी 80 मिनट थी.ये बात अपने आप में आश्चर्य में डालने वाली है कि बीते तीन सालों में रेलगाड़ियों में औसत देरी में 30 प्रतिशत की बढोतरी दर्ज हुई है. ट्रेनों की स्थिति पर चिंता जताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि यह लेटलतीफी इसी तरह से चलती रही तो कुछ ही साल में इन स्टेशनों पर रेलगाड़ियों की औसत देरी दो घंटे से भी अधिक हो सकती है.

बहरहाल, एक तरह जब हम इंडिया को न्यू इंडिया की तरफ ले जाने और बुलेट ट्रेन की बात कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरह ऐसी ख़बरें हमारी वास्तविकता बताते नजर आती हैं. इस रिपोर्ट के बाद ये कहना शायद बिल्कुल भी गलत न हो कि सरकार भले ही बुलेट ट्रेन बाद में लेकर आए मगर पहले इस दिशा में काम करे. ऐसा इसलिए क्योंकि अभी भारत आर्थिक रूप से इतना मजबूत नहीं है कि वहां की जनता बुलेट ट्रेन का लुत्फ़ ले.

अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि, यदि वाकई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है. तो उन्हें हर उस छोटी बड़ी चीज की तरह देखना होगा जो देख के विकास की रफ़्तार को प्रभावित करती है. इस खबर के बाद यही कहा जा सकता है कि फ़िलहाल भारतीय रेलवे के ढीले ढाले रवैये को सुधारना भी पीएम मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती है.  

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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