गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल: बिहारी महिलाओं ने जनसंख्या विस्फोट का राज खोल दिया
डॉक्टर पुरुषों को कंडोम और नसबंदी की ही सलाह देते हैं, और महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों और IUD लगाने की. लेकिन सब कुछ उपलब्ध होने के बावजूद लोगों की सोच उन्हें इनका उपयोग करने से रोकती है.
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जनसंख्या की बात करें तो करीब 5 साल बाद भारत चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा. सवाल ये कि भारत में आबादी इतनी बढ़ क्यों रही है? जवाब- यहां लोगों की रुचि परिवार नियोजन में कम और सेक्स में ज्यादा है. अब दूसरा सवाल ये कि परिवार नियोजन क्यों नहीं करते? तो जवाब एक नहीं कई मिलेंगे.
परिवार नियोजन अभियान क्यों असफल हो रहा है ये जानने के लिए हाल ही में इंडिया स्पेंड ने बिहार में एक सर्वे किया. बिहार इसलिए क्योंकि ये राज्य देश का पांचवा सबसे गरीब और तीसरा सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है. बिहार की प्रजनन दर पूरे भारत में सबसे ज्यादा है. बिहार की प्रजनन दर 3.4 यानी एक महिला पर 3.4 बच्चे है, जबकि भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की प्रजनन दर 2.74 है. बिहार के 38 जिलों में से 36 जिले उच्च प्रजनन वाले जिले हैं, पटना और अरवल को छोड़कर. इस सर्वे में 900 महिलाओं से बात की गई और नतीजे हैरान करने वाले थे.
सर्वे में पाया गया कि-
* 15 - 49 वर्ष की 94% यौन सक्रिय महिलाओं को आठ में से एक गर्भनिरोधक तरीके के बारे में पता था.
* 5 में से सिर्फ 1 ही महिला गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर रही थी. यानी केवल 20.1% महिलाएं ही गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करती हैं.
* शादीशुदा महिलाओं की तुलना में अविवाहित महिलाएं गर्भनिरोधकर का इस्तेमाल करती हैं. यानी 42% अविवाहित और यौन रूप से सक्रिय महिलाएं गर्भ निरोधकों का उपयोग करती हैं. वहीं विवाहित महिलाओं का प्रतिशत केवल 27% है.
* 90% से अधिक महिलाओं ने अपने पतियों के साथ परिवार नियोजन पर चर्चा तो की, लेकिन उनमें से केवल 18% ही सफल हो सकीं.
* पसंदीदा गर्भ निरोधकों की बात की जाए तो अविवाहित महिलाओं ने गर्भनिरोधक गोली (11.2%) को वरीयता दी, जबकि विवाहित महिलाओं ने कॉपर आईयूडी (8.6%) को प्राथमिकता दी.
* शिक्षा से महिलाओं में गर्भनिरोधक के प्रति जागरूकता बढ़ी है.
गर्भनिरोध के बारे में जानते सब हैं लेकिन इस्तेमाल सिर्फ 5 में से 1 ही महिला करती है
गर्भनिरोधक इस्तेमाल न करने के कारण
सर्वे में ये जरूर पता चला कि महिलाएं पहले से ज्यादा जागरुक हुई हैं लेकिन सवाल ये कि अगर जागरुकता है तो फिर गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल कम क्यों है. सर्वे में इसके कारण भी पता लगे.
* साइड इफेक्ट का डर (15%)
* मां बनने की चाह- (11.5%)
* गर्भनिरोधक इस्तेमाल नहीं करने की इच्छा (8%)
* पार्टनर का विरोध (7.8%)
* बाकी कारण थे पहुंच में न होना, ज्ञान की कमी और धार्मिक ऐतराज.
गर्भनिरोध की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं की
ये सिर्फ बिहार की बात नहीं बल्कि पूरे भारत का यही हाल है. यहां परिवार नियोजन का पूरा भार महिला के ऊपर ही लाद दिया जाता है. पुरुषों को इससे कोई मतलब नहीं होता. इस मामले में वो अपनी जिम्मेदारी जरा भी नहीं समझते.
सर्वे में पाया गया कि महिलाओं द्वारा सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली विधि कॉपर IUD थी, जिसका उपयोग 4% यौन सक्रिय महिलाएं करती थीं. स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली के 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में बिहार में किए गए नसबंदी ऑपरेशन में 98.9% महिलाओं पर ही हुए थे. महिला नसबंदी भारत में गर्भनिरोधक का सबसे आम तरीका है.
गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने का निर्णय भी पतियों का
शादीशुदा महिलाओं के सर्वे में पाया गया कि 4.8% मामलों में पति ही आधुनिक गर्भनिरोधकों के बारे में निर्णय लेते हैं. 18% महिलाओं ने खुद ही निर्णय लिया. और इन महिलाओं ने गोलियां खाना ही चुना. सर्वे से एक और बात सामने आई, वो महिलाएं जिनका अपने घर पर नियंत्रण था या जो घर के ज्यादातर निर्णय खुद लेती हैं, उनके परिवार छोटे पाए गए. यानी वो सफल परिवार नियोजन कर पाईं. जाहिर है पति की सुनने वाली महिलाएं परिवार नियोजित नहीं कर सकीं और जो अपने निर्णय खुद लेती हैं, उनका परिवार छोटा और सुखी है.
परिवार नियोजन का पूरा भार सिर्फ महिलाओं पर , पुरुष अपनी जिम्मेदारी कब समझेंगे?
गर्भनिरोधकों के बारे में कितनी जागरुकता
सर्वे में पाया गया कि आधुनिक तरीकों के बारे में जागरुकता ज्यादा थी. यानी 94% महिलाओं को गर्भनिरोध के आधुनिक तरीके जैसे कंडोम और IUD आदि के बारे में जानकारी थी और 46.2% महिलाएं पारंपरिक तरीकों के बारे में जानती थीं. शहर में रहने वाली महिलाएं जिन्होंने माध्यमिक शिक्षा ली है और जो पति के साथ रहती हैं वो गर्भनिरोध के 8 में से कम से कम 1 तरीके के बारे में तो जानती ही हैं.
27.1% शादीशुदा महिलाएं सर्वे के वक्त भी गर्भनिरोधक का इस्तेमाल कर रही थीं. NFHS के 2015-16 के आंकड़ों से तुलना करने पर पाया गया कि दो सालों में 8% की गिरावट आई है.
15-19 वर्ष की 50% महिलाओं ने जब पहली बार गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया तो उनके पास पहले से एक बच्चा था.
बिहार में 3 में से केवल 1 महिला ही गर्भनिरोधकों तक पहुंच पाती है.
गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में कमी
अध्ययन से पता चला था कि 2008 से 2016 तक, भारत में गर्भनिरोधक का उपयोग 35% गिर गया था. 2015-16 में पुरुष नसबंदी दर भी 10 साल की तुलना में 1% से 0.3% तक गिर गई थी.
पिछले 10 सालों में बिहार में गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल में 10% की कमी आई है. पूरे देश के आंकड़ों की तुलना में सबसे कम है, यानी केवल 24%. राष्ट्रीय राष्ट्रीय औसत 54% है; पंजाब 76%, पश्चिम बंगाल 71% और चंडीगढ़ 74% पर है.
बिहार में कंडोम का इस्तेमाल 2.3% से1% तक गिरा है, पुरुष नसबंदी .6% से 0 पर आ गई है.
कुछ पुरुषों का मानना है कि कंडोम से यौन सुख नहीं मिलता और नसबंदी से पुरुषत्व कम हो जाता है. हालांकि पुरुष नसबंदी बहुत जल्द होने वाला एक सुरक्षित और स्वस्थ विकल्प है, लेकिन दुनिया भर में ये प्रचलन में नहीं है. जबकि महिला नसबंदी के साथ आंतरिक रक्तस्राव, संक्रमण, यहां तक कि एक अस्थानिक गर्भावस्था का भी जोखिम होता है.
आंकड़े बता रहे हैं कि लोग अब गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करने से बचते हैं
आज बिहार के हालात ये हैं कि बिहार में हर 3 में से 1 महिला के पास एक अनियोजित बच्चा है. टाइम्स ऑफ इंडिया की मार्च 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार राज्य का स्वास्थ्य विभाग लगभग 4 मिलियन जोड़ों को गर्भनिरोधक प्रदान करने में विफल रहा है.
इस सर्वे से यूं तो बिहार के बारे में बहुत कुछ पता चलता है लेकिन कुछ बहुत अहम बातें हैं जो निकलकर सामने आई हैं जो सिर्फ बिहार की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की समस्या बता रही हैं. वो ये कि गर्भनिरोध के मामले में पुरुष निष्क्रिय हैं, सारी जिम्मेदारी महिलाओं की. और महिलाएं अगर चाहें भी कि बच्चा न हो तो उसके लिए सारे प्रयास उन्हें ही करने होंगे. वैसे तो डॉक्टर पुरुषों को कंडोम और नसबंदी की ही सलाह देते हैं, और महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों और IUD लगाने की. लेकिन सब कुछ उपलब्ध होने के बावजूद लोगों की सोच उन्हें इनका उपयोग करने से रोकती है. खासकर पुरुष संबंध बनाते वक्त कंडोम का इस्तेमाल सिर्फ ये सोचकर नहीं करते कि उससे उन्हें मजा नहीं आता, भले ही उसके लिए महिला गर्भवती हो जाए. और नसबंदी से उनकी मर्दाना ताकत चली जाएगी इस सोच से वो आज तक उबर ही नहीं पाए हैं.
रही बात महिलाओं की तो इसमें कोई शक नहीं है कि UID और गर्भनिरोधक गोलियां खाने से देर सवेर कोई न कोई साइड इफेक्ट आता ही है. लेकिन पुरुषों के गर्भनिरोधक तरीके बहुत सरल और सुरक्षित हैं और इनके साइड इफेक्ट भी नहीं होते. फिर भी भारत के पुरुष अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं. बिहार राज्य में गरीबी का स्तर इस बात का सबूत है कि परिवार नियोजन होता तो परिवार खुशहाल और समृद्ध होता. और लोगों को ज्यादा कमाने के लिए राज्य से पलायन नहीं करना पड़ता. बिहार तो भारत का सिर्फ आईना है जो बता रहा है कि भारत के जनसंख्या विस्फोट की असल वजह जागरुकता की कमी नहीं बल्कि पुरुषों की मानसिकता है.
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