अपने बच्चे पर पैनी निगाह रखिये, फ़िलहाल ये वक़्त की ज़रुरत है!
इंस्टाग्राम (instagram) पर पहले बॉयज लाकर रूम (Bois locker Room) फिर गर्ल्स लॉकर रूम (Girls Locker Room) ने उन मा बाप को चिंता दे दी है जिनके बच्चे बड़े हो रहे हैं. कहा जा सकता है कि अब वो वक़्त आ गया है जब मां बाप अपने बच्चों पर पैनी नजर रखें.
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'मर्द को दर्द नहीं होता.' आज सुबह जब मैंने अपने 12 साल के बेटे से पूछा कि मर्द कौन होता है? तो यह जवाब मिला. जब पूछा कि ये कहां से पता चला तो उसने कहा टीवी में सुना. कल से हर जगह बॉयज लॉकर रूम (Bois Locker Room) की चर्चा हो रही है. मैं और मेरा परिवार नौकरी की वजह से अलग शहरों में रहते हैं. मैं आज सुबह अपनी पत्नी से विडियो कॉल पर इस बारे में बात कर रहा था तो मेरा बेटा जो उस समय ऑनलाइन क्लास अटेंड कर रहा था वो पूछने आ गया कि क्या हुआ instagram पर? मैंने उसे वापस क्लास में भेजा और बाद में कॉल करने को कहा. उसके जाने के बाद मैं इस उधेड़बुन में रहा कि क्या मुझे 12 साल के बच्चे को बताना चाहिए कि क्या हुआ. घर की दीवार पर उसकी 1 वर्ष की उम्र की तस्वीर लगी है. उसे देखते हुए मैं सोचने लगा कि अब मेरा बेटा ऐसा नहीं, वो बदल चुका है. बड़ा हो रहा है, चीजें समझने लगा है और उसकी अपनी सोच भी विकसित हो रही है. अगले 4 साल में उसकी मूछें आने लगेंगी, शरीर बदलेगा और वो बहुत कुछ और समझने और जानने लगेगा जिस बारे में मुझे खबर नहीं होगी, ठीक उसी तरह जिस तरह बॉयज लॉकर रूम के सदस्यों के घर वालों को नहीं पता कि उनके बच्चे क्या बातें करते हैं और क्या समझते हैं.
इंस्टाग्राम पर बॉयज लॉकर रूम मामले के बाद ये तो साफ़ हो गया है कि अब मां बाप को अपने बच्चों पर पैनी नजर रखनी चाहिए
इसी बीच एक खबर पढ़ी कि गुड़गांव में एक 14 वर्षीय लड़के ने आत्महत्या कर ली जो शायद इस ग्रुप का सदस्य था. एक खबर यह भी है कि लड़का इस ग्रुप में तो नहीं पर उस पर किसी लड़की ने मी टू का इल्जाम लगाया है. यह लेख लिखते समय पुलिस इसकी जांच कर रही है. बताया गया कि इस लड़के को दोस्तों ने कहा कि उसे भी पुलिस पकड़ेगी और घबरा कर उस लड़के ने यह कदम उठाया.
इस लड़के की उम्र मेरे बेटे से सिर्फ 2 साल ही अधिक है और इतना बड़ा कदम उसने इसीलिए उठाया होगा कि वह अपने घर में किसी से इस बारे में बात नहीं कर सका और दोस्तों ने उसे डरा दिया. यह सब सोचते में ही बेटे का विडियो कॉल आ चुका था और साथ ही मैं इस बात के लिए मानसिक रूप से तैयार था कि मुझे अपने बेटे को इस बारे में बताना है क्योंकि यह सिर्फ उसे एक अपराध के बारे में सचेत करने के लिए नहीं है बल्कि उसे विपरीत लिंग के प्रति संवेदनशील बनाने बनाने के बारे में भी है और संवेदनशील बनाने की कोई उम्र नहीं होती.
मैंने अपने बेटे को बताया कि इस लॉकर रूम में लड़के क्या कर रहे थे और यह सब किस तरह से न सिर्फ गलत है बल्कि अपराध भी है. वह सुनता रहा. मैंने पूछा कि तुम्हारे दोस्तों में भी ऐसी ही बातें होती है क्या? कहीं तुम लोग भी ऐसा कुछ तो नहीं करते? उसने दृढ़ता से जवाब दिया - नहीं. मैंने फिर पूछा - आगे जब और और बड़े हो जाओगे, instagram फेसबुक वगैरह चलाओगे तब तो ऐसा नहीं करने लगोगे? जवाब मिला - “अरे यार पापा, आप बिलीव (भरोसा) नहीं करते मेरा?”
ये जवाब स्टंप करने वाला था. सुनकर कितना अच्छा लगता है कि बच्चा बात समझ गया बल्कि आपको भरोसा भी दिला रहा है. बस यही जगह है जहां हम एक गलती करते हैं कि संवाद खत्म कर देते हैं. हां मुझे अपने बच्चे पर भरोसा है लेकिन क्या हर बच्चे पर, हर टेक्नोलॉजी पर, बाहर के वातावरण पर है? नहीं, बिलकुल नहीं है और यही सब तो एक बच्चे को प्रभावित करती हैं वर्ना कौन सा बच्चा बुरा होता है.
मैंने अपने संवाद को यहाँ ख़त्म नहीं किया. मैंने बेटे को कहा कि मुझे तुम पर पूरा भरोसा है लेकिन तुम आने वाले समय में बहुत से और लोगों पर भरोसा करोगे जो तुम्हारे दोस्त होंगे, क्लास के होंगे, स्पोर्ट्स के साथी होंगे. इसलिए संभव है कि जब वो तुमसे कुछ ऐसा कहें जो गलत हो तो तुम भरोसे में मान जाओ.
ये भी हो सकता है कि तुम उनकी बात न मानो तो वो लोग तुम्हें उकसायें और कहें - 'अबे फट्टू, डरपोक... अबे मर्द बन साले, कर दे कोई फर्क नहीं पड़ता.' वो तुम्हें उकसायेंगे और तुम्हें एक बार को लगेगा कि मैं मर्द हूं, अभी साबित करता हूं. बस यही एक पल तुमसे कोई गलती करवा सकता है. मैंने बेटे से पूछा जानते हो मर्द कौन होता है तो जवाब मिला कि मर्द वो होता है जिसे दर्द नहीं होता.
सुनकर मैं अवाक रह गया. मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था कि फिल्म में सुना एक डायलाग किस कदर बच्चे के मन में बैठा रह जाता है और किसी दिन वह उस पर यकीन करने लगता है. मैंने तुरंत उससे पूछा कि अगर तुम्हें चोट लगे, या बिना गलती के कोई डांट दे तो तकलीफ होती है? जवाब सकारात्मक था. मैंने उससे फिर पूछा कि अगर ऐसा है तो मर्द को दर्द कैसे नहीं होता.
मैं एक मर्द हूं, मुझे दर्द भी होता है, मुझे रोना भी आता है और जहां जरूरत है मैं मजबूत भी हूं. आज ये समझना ज्यादा जरूरी है कि मर्द भी इन्सान है और उसमें और एक स्त्री में शारीरिक संरचना के अलावा बहुत फर्क नहीं है. मैंने उसे मर्द की एक नयी परिभाषा बताई. MARD - Men Against Rape & Discrimination.
डिस्क्रिमिनेशन का अर्थ उसे नहीं मालूम था. डिस्क्रिमिनेशन बहुत प्रकार का हो सकता है और यह लिंग, जाति, आर्थिक आधार, रंग किसी भी तरह हो सकता है जो असली मर्द होता है वह यह भेदभाव नहीं करता. रेप के बारे में वह जानता है. एक दिन उसने अख़बार में रेप के बारे में पढ़ा और उसने मेरी पत्नी से पूछा तो मेरी पत्नी ने उस दिन तो नहीं पर उसके अगले दिन उसे बताया कि किस तरह यह एक अपराध है और मानवता के विरुद्ध है.
आप सोच सकते हैं कि 12 साल के बच्चे को यह बताना उचित कैसे है. मेरा यह मानना है कि अगर उसके मन में यह सवाल उठ गया है तो वह समझने की कोशिश कर रहा है. यदि उसे हम नहीं बताएँगे तो वह आगे से आपसे नहीं पूछेगा और अपने सवाल का जवाब किसी और से पूछेगा. उस समय आपको नहीं पता होगा कि जो उसे सवाल का जवाब दे रहा है वह उसे क्या बता रहा है.
मेरे एक मित्र की बताई एक घटना मुझे याद है. उसने एक पत्रिका में बलात्कार शब्द पढ़ा और अपने माता और पिता दोनों से उसके बारे में पूछा. जैसा होता आया है माता पिता दोनों ने उसे डांट कर चुप करा दिया और पत्रिका छीन कर रख दी. मेरे मित्र ने इस सवाल का जवाब अपने घर में काम कर रहे 18 साल के नौकर से पूछा. उस नौकर ने उसे कहा कि बलात्कार पति और पत्नी के बीच में जो कमरा बंद करके होता है वह कहलाता है.
अब कमरा बंद करके क्या होता है इसको जानने की जब मेरे मित्र की इच्छा हुई तो उस नौकर ने कमरा बंद करके मेरे मित्र को कहा कि अभी वह करके बताएगा कि बलात्कार कैसे होता है. क्या हुआ क्या नहीं यह आप समझ संकते हैं लेकिन माता पिता की एक संवादहीनता का परिणाम एक छोटे बच्चे के यौन शोषण के रूप में हुआ.
मैं नहीं जानता कि मेरी आज की इन बातों को वह कितना समझा है कितना नहीं पर इतना पक्का है कि अब उसे मर्द होने का विशेष गर्व नहीं है. यह भी काफी हद तक संभव है कि अगर वह कभी ऐसी बातें सुनेगा या ऐसे किसी ग्रुप का हिस्सा बना दिया जायेगा तो वह आकर मुझे या अपनी माँ को बताएगा. आज आवश्यकता एक खुले संवाद की है. हमारी पिछली पीढ़ियों ने अगली पीढ़ी से बातचीत करने में बहुत संकोच रखा. हमारा फर्ज है कि हम उस संवादहीनता को आगे न बढ़ाएं. यह सोच कर न चुप रहें कि अरे अभी तो बेटा मेरा छोटा है. संवेदनशील बनाने के लिए कोई उम्र नहीं होती.
आंख बंद करके बच्चों की बातों पर भरोसा न करें. उन पर बराबर नजर रखें. हो सकता है कि कोई कहे कि यह उनकी प्राइवेसी में दखल है. आपको पुलिस की तरह उन पर डंडा लेकर नहीं खड़े होना, उनसे मित्र की तरह संवाद करना है और एक इंटेलिजेंस एजेंसी की तरह उन पर नजर रखनी है ताकि वो अपनी राह से भटक न जाएं.
अगर आपके बेटे है तो उन्हें बचपन से संवेदनशील बनाइये और लगातार संवाद करिए. यदि आपकी बेटी है तो उसे भी डिजिटल दुनिया के खतरों से आगाह करिये और इतना आत्मविश्वास भरिये कि किसी संकट में वह आवाज़ उठाने से, अपराधी का विरोध करने से न चूके.
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