Rape की बात हो चुकी अब 'डीप लव' और 'धोखे' को परिभाषित कर दे कोर्ट
बलात्कार पर बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच का ये फैसला भले ही अदालत की नजर में एक स्वागत योग्य फैसला हो मगर जब हम इसे सामाजिक दृष्टि से देखें तो मिलता है कि आने वाले वक़्त में इस फैसले के परिणाम बहुत ही घातक होंगे.
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भारत जैसे देश में न्यायपालिका का अपना महत्त्व है. देश में आज भी ऐसे लोगों की एक बड़ी संख्या वास करती है. जो किसी भी मामले पर सामने वाले के सामने अपना पक्ष मजबूत करते हुए कहती है कि "अदालत में देख लेंगे." यदि इस कथन के पीछे के मनोविज्ञान पर नजर डालें तो मिलता है कि, वादी जज में ईश्वर का वास देखता है और मानता है कि जज जो भी फैसला करेंगे उसका आधार सच होगा और वो निष्पक्ष होगा.
फैसले प्रायः निष्पक्ष ही होते हैं. मगर कभी-कभी सोचने पर बाध्य कर देते हैं कि, आखिर जो बातें जज साहब कह रहे हैं. या जिस तरह का फैसला आया है उनके पीछे का अर्थ क्या है? किस आधार पर इस तरह का फैसला दिया जा रहा है? कभी इन फैसलों से लोग खुश होते हैं, तो वहीं कभी अदालतों के फैसले उन्हें आहत, बहुत आहत कर देते हैं. इस बात को समझने के लिए हमें बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच को देखना होगा जिसने एक ऐसा फैसला दिया है जिससे एक पक्ष खुश तो दूसरा बेहद दुखी है.
बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिया गया ये फैसला किसी को भी अचरज में डाल सकता है
बॉम्बे हाईकोर्ट की गोवा बेंच ने हाल ही में दिए अपने एक फैसले में एक अजीब सा तर्क दिया है. कोर्ट के मुताबिक किसी भी पुरुष को महिला के साथ यौन संबंध बनाने पर उसे रेप के लिए दोषी ठहराया नहीं जा सकता. कोर्ट ने कहा कि जब दोनों के बीच 'गहरे प्रेम संबंधों' के प्रमाण मौजूद हों, तब 'सबूतों की गलतबयानी' के आधार पर पुरुष को रेप का आरोपी नहीं माना जा सकता है.
खबर अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के हवाले से है. रिपोर्ट के अनुसार हाईकोर्ट ने यह फैसला योगेश पालेकर मामले में सुनाया है. मामला 2013 का है जहां ट्रायल कोर्ट ने योगेश पर एक युवती को शादी का झांसा देकर रेप करने के मामले में दोषी पाया था और उसे 7 साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया था. महिला ने आरोप लगाया था कि योगेश पालेकर नामक प्रेमी परिवार से मिलवाने के बहाने उसे अपने घर ले गया था. वहां जाने पर पता चला कि घर पर परिवार का कोई सदस्य नहीं है. महिला वहां रात में रुकी तो दोनों के बीच जिस्मानी संबंध कायम हो गए.
लड़की के अनुसार विवाह का झांसा देकर प्रेमी ने बाद में तीन से चार बार घर बुलाकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. फिर बाद में खुद को निचली जाति का बताकर शादी से इंकार कर दिया. जिसके बाद महिला ने पालेकर के खिलाफ बलात्कार का केस दर्ज कराया. महिला ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान स्वीकार किया कि उसने संभोग की सहमति दी थी लेकिन इस शर्त पर कि युवक उसके साथ शादी करेगा.
मामले की सुनवाई के दौरान ऐसे भी कई बिंदु सामने आए हैं जिनको देखकर पता चलता है कि पीड़िता ने कई मौकों पर पालेकर की आर्थिक सहायता की थी. फैसला सुनाते हुए जस्टिस सीवी भदंग ने कहा कि सुबूतों से पता चलता है कि सहमति केवल पालेकर के वादे पर ही नहीं आधारित थी, बल्कि इनके पीछे प्रेम संबंध भी एक अहम वजह थे. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की ओर से कई बार आरोपी को आर्थिक सहायता देने और तीन से चार बार सेक्स करने से पता चलता है कि प्रेम संबंध के चलते ही शारीरिक संबंधों के लिए पीड़िता सहमत हुई.
कह सकते हैं कि बॉम्बे हाईकोर्ट का ये फैसला किसी भी आम आदमी की समझ से बाहर है
हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं. मगर चूंकि यहां कोर्ट ने "डीप लव" को शारीरिक संबंधों का आधार बनाया है तो हम कोर्ट से अनुरोध करेंगे कि वो हमें लव के प्रकारों जैसे नार्मल लव, माइल्ड लव, डीप लव से परिचित कराए. साथ ही हम कोर्ट से ये भी पूछना चाहेंगे कि वो हमें बताए कि प्रेम के इन तीनों ही प्रकारों में व्यक्ति द्वारा की गई किस हरकत को अदालत नजरंदाज करेगी. ये सवाल हम बस इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि जिसे कोर्ट डीप लव बता रहा है वो धोखा है. अब बातें कितनी भी बना ली जाएं मगर लड़के ने लड़की के साथ जो किया वो और कुछ नहीं बस धोखा है. लड़के ने धोखे से लड़की की इज्जत को तार तार किया है.
गौरतलब है कि अन्य देशों के विपरीत भारत में लड़के और लड़कियों के लिए चीजें अलग अलग हैं. यहां लड़कों के लिए कोई बाध्यता नहीं है, वो किसी के साथ भी डीप लव को आधार बनाकर शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है. मगर जब बारी लड़की की आती है तो उसका डीप लव उसे सामाजिक रूप से चरित्रहीन बना देता है. ध्यान रहे हमारे देश में लड़का भले ही कितनों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाए मगर बात जब विवाह की आती है तो उसे ऐसी लड़की की तलाश रहती हैं जिसने किसी डीप लव के चलते अपनी वर्जिनिटी न खोई हो और वो पवित्र हो.
इस बार कोर्ट ने देश की जनता को अपने फैसलों से निराश किया है. उसने एक ऐसी बात को आधार बनाकर लड़के को दोष मुक्त किया है जिसका सामाजिक रूप से कोई आधार ही नहीं है. अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि कोर्ट को एक बार फिर से इस पूरे मामले का संज्ञान लेना चाहिए. साथ ही उसे ये भी सोचना चाहिए कि उसकी कही इस बात से समाज में बुरा असर पड़ सकता है जिसके दूरगामी परिणाम बहुत ही घातक साबित होने वाले हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि कोर्ट ने खुद देश की जनता को डीप लव जैसा बेबुनियाद बहाना दे दिया है.
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