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Updated: 06 अगस्त, 2019 05:36 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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1-7 अगस्त ब्रेस्टफीडिंग वीक है. पूरी दुनिया में स्तनपान को लेकर बात की जा रही है. एक तरफ लोगों को खुले में स्तनपान को लेकर जागरुक करने की कोशिशें की जा रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को स्तनपान करवाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. हालांकि आज की माताएं तो अपने बच्चों को लेकर इतनी सजग हैं कि उनकी परवरिश में कोई कमी छोड़ना नहीं चाहतीं. वो स्तनपान अहमियत देती हैं क्योंकि ये बच्चे के स्वास्थ्य से भी जुड़ा है और मां और बच्चे को भावनात्मक रूप से जोड़े भी रखता है.

लेकिन दुनिया में ऐसी भी माएं हैं जो अपने बच्चों को स्तनपान नहीं करवा सकी हैं. कारण चाहे जो भी रहे हों लेकिन उनमें इस बात को लेकर गिल्ट होता है. और एक डर भी कि कहीं उनके बच्चे उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ सकेंगे कि नहीं. ये डर कुछ-कुछ उसी तरह का है जो नॉर्मल डिलिवरी से मां बनी महिलाओं और ऑपरेशन से बच्चे को जन्म देने वाली माओं के बीच होता है.

breastfeedingमाताएं ब्रेस्टफीड को लेकर पहल ेसे ज्यादा सजग हैं

भारत में तो 'मां के दूध' को लोग व्यक्ति के हौसलों से भी जोड़ते हैं- 'मां का दूध पिया है तो ये कर के दिखा. ऐसे में क्या बीतती होगी उन माओं पर जो अपनी छाती से अपने बच्चों को दूध नहीं पिला पाईं. इनमें वो माएं भी शामिल हैं जिन्हें बच्चे को अपना दूध पिलाने में डर महसूस होता है. कुछ माताओं की बात सुनकर आप उनकी भावनाओं को समझ सकते हैं.

1. 'गर्भवती होने से पहले मैंने ब्रेस्टफीडिंग के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा था. लेकिन उस वक्त मेरा सारा ध्यान बच्चे के कपड़ों, उसके सामान, उसके पालने और खिलौनों पर ही था. क्योंकि  ब्रेस्टफीडिंग तो बच्चा होने के बाद ही होगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मैंने ऑपरेशन के जरिए बच्चे का जन्म दिया. मुझे बताया गया कि मेरा दूध नहीं बन रहा. और ऑपरेशन के बात ऐसा होता है. मैंने इसपर समझौता किया. लेकिन बाद में जब दूध बनने लगा, तो मेरा बेटा स्तनपान करना ही नहीं चाहता था. उसे बॉटल ही चाहिए थी. लेकिन मेरी मदद करने के बजाए डॉक्टर ने मुझे वो दवाई दी जिससे दूध बनना बंद हो जाए. मैं आज भी इस बात से परेशान हूं. मुझे गुस्सा भी है क्योंकि एगर मैं किसी दूसरे डॉक्टर के पास गई होती तो शायद परिस्थितियों कुछ और होतीं.'

2. भारत में तो 'मां के दूध' को लोग व्यक्ति के हौसलों से भी जोड़ते हैं- 'मां का दूध पिया है तो ये कर के दिखा. ऐसे में क्या बीतती होगी उन माओं पर जो अपनी छाती से अपने बच्चों को दूध नहीं पिला पाईं. इनमें वो माएं भी शामिल हैं जिन्हें बच्चे को अपना दूध पिलाने में डर महसूस होता है. कुछ माताओं की बात सुनकर आप उनकी भावनाओं को समझ सकते हैं.'मेरी बेटी जब दो महीने की हुई तभी उसने मेरा दूध पीना छोड़ दिया था. मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मैं उसे दूध पीने के लिए मना नहीं सकी. मैं कई हफ्ते रोई, लेकिन बाद में मैंने खुद को समझाया कि सिर्फ इस कारण से मैं एक बुरी मां नहीं हो सकती'

3. 'मैं एक नर्स हूं. इसलिए मुझे स्तनपान के फायदे किसी को बताने नहीं पड़े. जब मेरी बेटी मां बनी तो ये स्वाभाविक ही था कि वो भी स्तनपान करवाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. और ये कई हफ्ते चला. हमने बहुत सी नर्स और डॉक्टर की सलाह ली, बतरह तरह के तरीके अपनाए, लेकिन स्तनपा करवाना मेरी बेटी के लिए बहुत पीड़ादायक था. जब बच्चे को भूख लगती वो उसे दूध पिलाती तो बेटी के चेहरे पर मुझे डर और घबराहट दिखाई देती थी. तब मैंने उससे कहा कि वो अपनी दूध निकालकर उसे बोतल के जरिए दे सकती है. मेरी बेटी रोती थी कि वो एक अच्छी मां नहीं है. अब जब मेरी बेटी दोबारा मां बनने वाली है तो हमें पहले से ही पता है कि इस बार भी वो बोतल से ही दूध पिलाएगी. अगर बिना पीड़ा सहे वो अपना दूध निकाल कर बोतले से पिला सकती है तो ठीक है नहीं तो फॉर्मुला मिल्क ही सही.'

bottle feedingक्या बोतल से दूध पिलाने वाली माएं अपने बच्चे से कम प्यार करती हैं?

4. 'मैं ये पहले से ही तय कर चुकी थी कि मैं स्तनपान नहीं करवाउंगी. उसके बहुत से कारण थे. और मुझे इसके लिए खुद को सही साबित करने की भी जरूरत नहीं है. शुरुआत में तो मुझपर इस बात का बहुत दबाव था कि मुझे ये करना ही होगा, क्योंकि बच्चे के लिए स्तनपान सबसे अच्छा होता है. लेकिन रुकिए, सबसे अच्छा प्यार और एक खुश मां भी होती है. मैं मनती हूं कि बाद में मैंने ये कहना शुरू कर दिया कि मैं बच्चे को स्तनपान नहीं करवा सकी, बजाए इसके कि मैंने खुद स्तनपान नहीं करवाया. और तब मुझे दोषी मानने के बजाए लोग मुझसे सहानुभूति रखते थे. हां, मुझे दूध पिलाने में जर लगता था. मुझे लगता है कि माओं को भी इसे चुनने का अधिकार होना चाहिए.'

5. 'मैं जाब मां बनी तो, मुझे दूध नहीं बनता था. मैंने इसके लिए वो सभी चीजे खाईं जिससे दूध बनता है. मैं खूब पानी भी पीती थी. मैंने भरे हुए दूध की कल्पना कर ध्यान भी लगाती थी. लेकिन मेरे बच्चे का वजन गिरता गया. तब उसे सप्लिमेंट देने का निर्णय लिया गया. मैं रोई नहीं. मैं बच्चों के डॉक्टर के पास जाते हुए खीजती थी. मैं बच्चे के लिए बोतल का दूध बनाते हुए और उसे पिलाते हुए खीजती थी. मैं बाथरूम में जाकर चीखी. पति के कंधों पर सर रखकर चिल्लाती कि मैं किस तरह की मां हूं, जो खुद अपने बच्चे को दूध तक नहीं पिला सकती.'

6. 'ब्रेस्टफीडिंग को लेकर दबाव के चलते मुझे भी अपराध बोध होता है. लेकिन मुझे महसूस होता है कि मैं एक बुरी मां नहीं हूं. मैं अपने बच्चे से बेहद प्यार करती हूं, उसका ध्यान रखती हूं, उसके साथ खेलती हूं, उसके सात खूब बातें करती हूं. ऐसी बहुत सी माएं हैं जो अपने बच्चों को बोतल का दूध पिलाती हैं, और हम सब एक दूसरे की मदद कर सकती हैं.

ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे सामने हैं जहां माताएं स्तनपान को लेकर कभी मजबूर दिखीं तो कभी स्तनपान न करवाना उनकी चॉइस थी. ऐसे में सवाल ये खड़ा होता है कि क्या स्तनपान करवाने वाली महिलाओं की तुलना में बोतल से दूध पिलाने वाली माओं का भावनात्मक जुड़ाव अपने बच्चों से कम होता है?

बोतल से दूध पिलाने वाली माओं का बच्चों से जुड़ाव

करीब 60 साल पहले इसी बात को जानने के लिए एक प्रयोग किया गया था कि स्तनपान करना या बोतल से दूध पिलाने का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है. इस प्रयोग में पाया गया था कि मां और बच्चे के बीच का बंधन स्तन के चूसने से नहीं होता. मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो स्तनपान करवाना भोजन देने की एक विधी है. और उसी समय ये बच्चे के लिए सुखद भी होता है और इसी आनंद से एक प्यार का बंधन जुड़ता है. प्यार और जुड़ाव शिशु की प्राथमिक ज़रूरतें होती हैं. मां और बच्चे के बीच का बंधन इसबात पर निर्भर नहीं करता कि बच्चे को किस तरह खिलाया जा रहा है. दूध पिलाने से भूख शांत होती है, जबकि बंधन का मतलब है जुड़ाव, कोमलता, स्पर्श, संतुष्टि. बच्चे को इस बात का तो भरोसा होता है कि उसे आपकी जरूरत होती है तब आप उसके लिए हैं.

mother and babyबच्चे के लिए सबसे जरूरी उसकी मां का साथ है

जब आप बच्चे को बोतल से दूध पिलाती हैं तो क्या आप उसे कम प्यार देती हैं? नहीं. मां का प्यार तो वैसा ही रहता है. और रही बात खुद को दोष मानने की तो ये सिर्फ आपकी सोच है. इसमें कोई शक नहीं कि मां का दूध बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी और लाभदायक होता है. लेकिन जो बात सबसे जरूरी है वो ये कि आप अपने बच्चे को प्यार करें, उसपर ममता लुटाएं. बच्चे को जब आपकी जरूरत हो तो आप उसके साथ हों. जो जरूरी है वो आपकी मुस्कुराहट है, आपके प्यार भरे शब्द और ममता है, जरूरी आपका प्यार भरा स्पर्श है जिससे बच्चाखुद को आपके साथ सुरक्षित महसूस करता है.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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