बुलेट ट्रेनें तीन साल से दौड़ रही थीं, और हमें पता तक न चला!
यह पूरे देश के लिए हैरान होने वाली खबर है. एक ओर तो खबर आती है कि मुंबई-अहमदाबाद के बीच देश की पहली बुलेट ट्रेन चलाने की योजना है. दूसरी ओर कैग यह रहस्य उजागर करता है कि उत्तर प्रदेश में ट्रेनें 400 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से 'दौड़' रही हैं.
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मोदी सरकार भारतीय रेलवे के लिए बेहतरीन काम कर रही है. मतलब कहां एक बुलेट ट्रेन लाने की कवायत हो रही थी, लेकिन अब सरकारी कारनामा देखिए कि भारत में एक नहीं कई बुलेट ट्रेन 2016 से ही दौड़ रही हैं और आम लोग भी उनमें सफर कर रहे हैं.
चौंकिए मत. ये वाकई हुआ है और बाकायदा इसकी रिपोर्ट भी है. मामला कुछ ऐसा है कि भारत के सबसे अनोखे राज्यों में से एक उत्तरप्रदेश में एक ट्रेन ने 409 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ ली. घबराइए मत सिर्फ कागजों पर. इस ट्रेन ने अलाहबाद से फतेहपुर की 116 किलोमीटर की दूरी महज 17 मिनटों में पूरी कर ली. यानि गणित बैठाएं तो ये ट्रेन 409 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही थी.
ये बात सामने आई है CAG की ऑडिट रिपोर्ट में. साफ है कि ये आंकड़े गलत हैं, लेकिन इन्हें गलती से ऐसा लिखा गया है या जानबूझकर ये मामला अभी साफ नहीं हुआ है.
ऑडिट के समय तीन ट्रेनों की डेटा एंट्री में इस तरह की गड़बड़ी पाई गई. एक प्रयाग राज एक्सप्रेस, दूसरी जयपुर अलाहबाद एक्सप्रेस और तीसरी नई- दिल्ली दुरंतो एक्सप्रेस. यही तीन हैं जिनमें सबसे ज्यादा गड़बड़ियां पाई गईं.
इंटिग्रेटेड कोचिंग मैनेजमेंट सिस्टम (ICMS) में ये डेटा फीड किया गया था. ये सिस्टम ट्रेनों का रियल टाइम मैनेजमेंट देखता है. यही डेटा नैशनल ट्रेन एन्क्वाइरी सिस्टम (NTES) में भी देखा जा सकता था. ये गलत डेटा लोगों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है क्योंकि ऐसे में लोगों को ट्रेन का सही समय नहीं पता चलेगा.
CAG ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा कि 2016-17 के बीच में तीन ट्रेनें जो 354, 343 और 144 दिन (साल भर में) चली हैं उन्होंने 53 मिनट से कम समय (25, 29 और 31 दिन) अलाहबाद से फतेहपुर पहुंचने में लिया. यहां 53 मिनट का पैमाना इसलिए दिया जा रहा है क्योंकि तय स्पीड लिमिट के हिसाब से ये 116 किलोमीटर पूरे करने में कम से कम 53 मिनट लगेंगे. ये तब है जब ट्रेन पूरी स्पीड यानी 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलेगी. और तीनों ट्रेन में से एक ने 25 दिन, दूसरी ने 29 दिन और तीसरी ने 31 दिन ये सफर 53 मिनट से कम समय में पूरा किया.
CAG रिपोर्ट कहती है कि 9 जुलाई 2016 को अलाहबाद दुरंतो एक्प्रेस ने तो ये सफर सिर्फ 17 मिनट में तय कर लिया. सुबह 5:53 am पर फतेहपुर स्टेशन में थी और 6:10 am को अलाहबाद स्टेशन पहुंच गई. यानी ये ट्रेन 409 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चली. ये बिलकुल ही गलत डेटा है. ट्रेन इतनी स्पीड में चल ही नहीं सकती है.
ऐसा ही 10 अप्रैल 2017 को भी हुआ जयपुर अलाहबाद एक्सप्रेस के साथ. ये ट्रेन फतेहपुर स्टेशन पर सुबह 5:56 बजे पहुंची थी और अलाहबाद से सुबह 5:31 बजे निकली थी. यानि 25 मिनट में 116 किलोमीटर मतलब 279 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी ये ट्रेन.
ऐसा ही केस प्रयाग राज एक्सप्रेस के साथ मार्च 7, 2017 को भी नोट किया गया जिसमें ट्रेन अलाहबाद स्टेशन पर ट्रेन 6.50 बजे सुबह पहुंच गई थी. जब्कि रिकॉर्ड तो ये भी बताते हैं कि एक स्टेशन पहले यानी सबदरगंज में ही ट्रेन 7.45 बजे पहुंची थी. अब या तो ट्रेन अलाहबाद जाकर वापस सबदरगंज गई हो रिवर्स में या फिर डेटा गलत हो. दो में से एक ही चीज़ यहां सही हो सकती है. ट्रेन तो रिवर्स जाएगी नहीं तो हम डेटा को ही गलत मान लेते हैं.
डेटा में गलती सबसे बड़ी तो दुरंतो एक्सप्रेस के समय में ही दिखती है जो 409 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ गई. ये तो एक दुरंतो एक्सप्रेस की बात है. भारत में तो 28 दुरंतो ट्रेन और चलती हैं तो क्या सभी ट्रेनों में ऐसी कोई न कोई गलती निकाली जा सकती है. ऐसे अगर हर ज़ोन की ट्रेन को देखें तब तो कहा जा सकता है कि देश में एक नहीं कई बुलेट ट्रेन चल रही हैं.
कुल मिलाकर रेलवे की लापरवाही का एक और नमूना सामने आ गया. कहीं ट्रैक्स की मरम्मत नहीं होती, कहीं रेलवे की चाय में टॉयलेट का पानी मिलाया जाता है, कहीं टिकट को लेकर धांधली होती है तो कहीं 12-12 घंटे ट्रेनें लेट होती हैं, कहीं पुल गिर जाते हैं लेकिन भारतीय रेलवे का क्या वो तो बुलेट ट्रेन के सपने में इतनी मस्त है कि उसे और कुछ दिखता ही नहीं.
पर अब तो कमाल ही हो गया कि सरकारी कर्मचारियों को बुलेट ट्रेन चलाने की इतनी जल्दी थी कि कागजों पर ही चला दी. अब इतना तो समझ आ रहा है कि देश और यूपी दोनों ही तरक्की कर रहे हैं और बुलेट ट्रेन के लिए तैयार हैं.
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